अमरावती

चार माह में 346 किसानों ने लगाया मौत को गले

दिनोंदिन बढ रहे हैं किसान आत्महत्या के मामले

* संभाग में रोजाना औसत तीन किसान दे रहे अपनी जान
* फसल बर्बादी सहित सरकारी उदासिनता है जिम्मेदार
* प्रशासन सहित सर्वसामान्य भी हुए असंवेदनशील
अमरावती/दि.26- लगातार होनेवाली फसलों की बर्बादी और सिर पर चढते कर्ज के बोझ की वजह से उपजनेवाली निराशा के चलते किसानों द्वारा आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया जा रहा है और अमरावती संभाग में विगत चार माह के दौरान 346 किसानों ने अपने ही हाथों मौत को गले लगा लिया है. जिसका सीधा मतलब है कि, विगत चार माह के दौरान संभाग में रोजाना औसतन तीन किसानों द्वारा आत्महत्या की गई.
उल्लेखनीय है कि, अमरावती संभाग में विगत लंबे समय से किसान आत्महत्याओं का सिलसिला चल रहा है और तमाम प्रयासों के बावजूद इसे रोकने में असफलता ही हाथ लगी है. किसान आत्महत्याओें के लिए मौसम के लहरीपन की वजह से होनेवाले फसलों के नुकसान के साथ-साथ सरकारी नीतियों को भी जिम्मेदार कहा जा सकता है. वहीं आये दिन होनेवाली किसान आत्महत्याओं के चलते अब सरकार व प्रशासन के साथ-साथ जनसामान्यों की संवेदनाएं भी लगभग खत्म हो गई है. क्योंकि अब ऐसी घटनाओं के सामने आने पर कहीं से कोई सांत्वना या संवेदना भी व्यक्त नहीं होती. इसे दुनिया का अन्नदाता कहे जाते किसानों के लिए सबसे बडा दुर्भाग्य कहा जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि, किसी समय अपनी शानदार खेती-किसानी के चलते विदर्भ को सोने की खान कहा जाता था. किंतु आज यहीं विदर्भ प्रांत समूचे देश में किसान आत्महत्याओं के लिए कुप्रसिध्द हो गया है. इसमें भी सर्वाधिक किसान आत्महत्याएं अमरावती संभाग में हो रही है. जिसके तहत संभाग के अमरावती व यवतमाल जिले किसान आत्महत्याओं के मामले में सबसे आगे है. यद्यपि किसान आत्महत्याओं के लिए अनियमित बारिश और फसलों की बर्बादी को प्रमुख वजह माना जाता है, लेकिन इसके लिए सरकारी नीतियां भी लगभग उतनीही जिम्मेदार है. अपने द्वारा उत्पादित कृषि उपज के दाम तय करने का अधिकार किसानों के हाथ में नहीं है और ऐन फसल के हाथ में आते समय व्यापारियोें द्वारा बाजार में कृषि उपज के दाम गिरा दिये जाते है. जिससे किसानों को काफी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पडता है. अनियमित बारिश व फसलों के नुकसान से जुझनेवाले किसान के पास अपनी फसल बेचने के बाद खाद में कोई पैसा शेष नहीं रहता, ऐसे में उसे अपने परिवार व बच्चों के उदरनिर्वाह की चिंता सताती रहती है. जिसकी वजह से किसान हमेशा ही आर्थिक दुष्चक्र में फंसता चला जाता है और अंत में तनाव, निराशा व अवसाद का शिकार होकर अपने ही हाथों अपनी ईहलिला को खत्म कर लेता है.

* सरकारी नीतियां भी खतरनाक
हमेशा फसलों की बर्बादी होने के चलते किसान लगातार कर्जतले दबता चला जाता है, ऐसा किसान आत्महत्या के मामलों में उपरी तौर पर माना जाता है, लेकिन किसान आत्महत्याओं के लिए सरकारी नीतियां मुख्य तौर पर जिम्मेदार है. यह बात अब किसी से छिपी हुई नहीं है. खेती और किसानों को लेकर अस्तित्व में रहनेवाली नीतियां एक तरह से किसानों को गुलामी में धकेलनेवाली साबित हो रही है. किसानों को खुद अपनी उपज के दाम तय करने का अधिकार नहीं है. साथ ही बिजली और पानी के लिए भी किसानों को दुसरों पर आश्रित रहना पडता है. इन सभी बातों की वजह से किसान बुरी तरह प्रभावित व प्रताडित होते है.

* निराशा व अवसाद कर रहे है किसानों को खत्म
यूं तो किसानों के लिए हर नई सुबह नई समस्याएं व नई चुनौतियां लेकर आती है. जिससे किसान अपने पूरे जीवनकाल के दौरान जूझते रहते है. ऐसे मेें किसानों को पैदाईशी तौर पर जुझारू व संघर्षशील ही माना जाता है, लेकिन यहां पर संघर्ष और लडाई का स्वरूप कुछ अलग है और यह लडाई आर्थिक स्वरूप की है. ऐसे में किसानों का जुझारूपन व संघर्षशिलता यहां पर थोडे कम पड जाते है और हालात से हार मानने की टीस किसानों के भीतर काफी गहरी चोट करती है. जिसकी वजह से किसानों में तनाव व अवसाद घर करने लगते है और लगातार निराशा से घिरते चले जाने के बाद एक समय ऐसा भी आता है, जब किसानों को अपना जीवन बोझ लगने लगता है और वे आत्मघाती विचारों का शिकार होकर आत्महत्या कर लेते है.

* दो दशक में 18 हजार किसानों ने की आत्महत्या
वर्ष 2001 से वर्ष 2022 के दौरान दो दशकों में अमरावती संभाग के पांचों जिलों में कुल 18 हजार 7 किसानों ने आत्महत्या करते हुए अपने ही हाथों अपनी जीवनयात्रा को खत्म किया. जिसमें सर्वाधिक 5 हजार 203 किसान आत्महत्याएं यवतमाल जिले में हुई. वहीं अमरावती जिले में 4 हजार 693, बुलडाणा जिले में 3 हजार 607, अकोला जिले में 2 हजार 694 तथा वाशिम जिले में 1 हजार 810 किसानों ने आत्महत्या की है.

* दो दशक दौरान किसान आत्महत्याओं की स्थिति
जिला          संख्या   पात्र       अपात्र       जांच  प्रलंबित
अमरावती    4,693   2,254   2,376         63
यवतमाल    5,203    2,090   3,075        27
अकोला        2,694   1,568    1,087       39
बुलडाणा      3,607    1,573    1,971       63
वाशिम        1,810    724       1,063       23

* चार माह दौरान जिलानिहाय किसान आत्महत्या
जिला           मामले
अमरावती      99
यवतमाल      96
बुलडाणा        72
वाशिम          46
अकोला         43

* चार माह दौरान महिनानिहाय आत्महत्याएं
जनवरी –   91
फरवरी –   108
मार्च –       85
अप्रैल –    62

* पात्र-अपात्र के चक्कर में जूझते मामले
सरकार द्वारा आत्महत्या करनेवाले किसानों के परिजनों को विपरित स्थिति में आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु मुआवजा व अनुदान देने का प्रावधान किया गया है. जिसके लिए कई मानक तय किये गये है. जिसके आधार पर किसी भी किसान की आत्महत्या को सरकारी सहायता हेतु पात्र या अपात्र ठहराया जाता है और कई मामलों को अपात्र घोषित करते हुए सरकारी सहायता से वंचित भी रखा जाता है. ऐसे में आत्महत्या कर लेनेवाले किसान का परिवार दु:ख की घडी के बाद भी लालफीताशाही व सरकारी उदासिनता का शिकार बनता है.

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