अमरावती

मेडिकल पढाई के लिए 43 हजार करोड की विदेशी मुद्रा जा रही देश से बाहर

अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान

अमरावती प्रतिनिधि/दि.९ – देश में वैद्यकीय क्षेत्र में शिक्षाप्राप्त करने के इच्छूकों की संख्या काफी अधिक है. किंतु यहां पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों एवं उनकी सीटों की संख्या बेहद सीमित है. वहीं निजी मेडिकल कालेजों की फीस काफी भारीभरकम है. ऐसे में डॉक्टर बनने के इच्छूक कई विद्यार्थी मेडिकल क्षेत्र की पढाई हेतु सीधे विदेशों का रूख करते है. जिसकी वजह से प्रति वर्ष करीब 43 हजार करोड रूपयों की विदेशी मुद्रा देश के बाहर चली जाती है. जिसका सीधा नुकसान देश की अर्थ व्यवस्था पर पडता है. ऐसी जानकारी सामने आयी है.
उल्लेखनीय है कि, इन दिनों देश में मेडिकल पाठ्यक्रमों की पढाई काफी महंगी हो गयी है. जिसका खर्च उठाना हर किसी के बस में नहीं है. ऐसे में कई अभिभावक व विद्यार्थी विदेशोें में अपेक्षाकृत तौर पर सस्ते रहनेवाले मेडिकल कालेजों की ओर दौड लगाते है. जिसकी वजह से इस समय देश में मेडिकल पाठ्यक्रमोें की 2 हजार 400 सीटें रिक्त पडी है. वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों की विदेशी मेडिकल कॉलेजों में रूची को देखते हुए इस क्षेत्र में काम करनेवाले व्यवसायियों ने डेढ से दो लाख रूपये के वार्षिक खर्च की ऐवज में आठ से दस लाख रूपये वसूल करने की कालाबाजारी शुरू कर दी है. जिसके जरिये प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में विद्यार्थियों को रशिया, किर्गीस्तान, युक्रेन, कजाकिस्तान तथा चीन सहित अन्य कई देशोें में मेडिकल की पढाई के लिए भेजा जाता है. इस जरिये प्रतिवर्ष करीब 43 हजार करोड रूपयों की विदेशी मुद्रा देश से बाहर जा रही है और इस वजह से देश की अर्थ व्यवस्था के लिए काफी खतरा पैदा हो रहा है.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, भारत में वैद्यकीय शिक्षा की मुलभूत सुविधाएं बडे पैमाने पर मौजूद रहने के बावजूद भारत की तुलना में बेहद छोटे व पिछडी श्रेणीवाले देशों में जाकर यहां के विद्यार्थी मेडिकल की पढाई करने को मजबूर है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि, देश के सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश क्षमता को बढाने के साथ ही इस पढाई पर होनेवाले खर्च में कटौती की जाये. साथ ही गरीब एवं मध्यमवर्गीय परिवार के विद्यार्थियों को सरकारी व निजी मेडिकल कालेजों में नि:शुल्क शिक्षा देने का प्रावधान किया जाये. ऐसी स्थिति में ही स्थानीय विद्यार्थियों को विदेशी कालेजों में जाने से रोका जा सकेगा, और देश का विदेशी मुद्राकोष भी मजबूत होगा.

  • समान शिक्षा प्रणाली ही उपाय

भारतीय संविधान की धारा 45 पर प्रभावी क्रियान्वयन करते हुए यदि 14 वर्ष तक नि:शुल्क शिक्षा का प्रावधान रखा गया होता, तो देश की सभी शालाओं में समान स्तर की शिक्षा प्रणाली को लागू किया जा सकता था. इससे सभी विद्यार्थियों को एकसमान स्पर्धा के अवसर उपलब्ध हुए होते. किंतु इस समय देश में ग्रामीण व शहरी विद्यार्थियों के दो अलग-अलग गुट तैयार हो गये है. शहरी विद्यार्थियों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों के सामने कई समस्याएं है. और यदि ग्रामीण क्षेत्र का कोई विद्यार्थी अपवादात्मक रूप से माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो भी जाता है, तो आर्थिक समस्याओें व दिक्कतों के चलते उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाता है. ऐसे में यह मांग जोर पकड रही है कि, ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों को शैक्षणिक प्रवेश में आरक्षण देने के साथ ही उन्हेें नि:शुल्क तौर पर उच्च शिक्षा की सुविधा उपलब्ध करायी जानी चाहिए, ताकि वे भी पढाई-लिखाई के मामले में बराबरी के हकदार बन सके. साथ ही देश में समान शिक्षा प्रणाली को भी अमल में लाया जाना चाहिए.

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