सवा साल में 5 शासन निर्णय लिए गए पीछे
शिंदे-फडणवीस सरकार के ‘उत्तम संवाद’ पर विपक्ष को संदेह
मुंबई/दि.26– राज्य की शिंदे-फडणवीस सरकार पर विगत सवा वर्ष के दौरान करीब 5 सरकारी निर्णय पीछे लेने की नौबत बनी. हमारे बीच ‘उत्तम संवाद’ है, ऐसा दावा यद्यपि राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्बारा किया जाता है. परंतु इस दावे में कितना तथ्य है, यह सवाल अब पूछा जा रहा है. साथ ही विपक्ष द्बारा यहां तक कहा जा रहा है कि, सरकार में संवाद कम और विसंवाद अधिक है.
राज्य में सीएम एकनाथ शिंदे तथा डेप्यूटी सीएम देवेंद्र फडणवीस व अजित पवार की सरकार को ट्रिपल इंजन सरकार रहने का दावा किया जाता है. साथ ही कहा जाता है कि, महायुती की सरकार में सभी घटक दलों के बीच बेहतरीन संवाद है और आपसी सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाते है. परंतु विगत सवा वर्ष के दौरान ऐसा कई बार हुआ कि, किसी एक ने कोई निर्णय लिया और दुसरे ने आकर उस निर्णय को बदल दिया. राज्य के शक्कर कारखानों के लिए ही पर्याप्त साबित रहने वाले गन्ने का उत्पादन राज्य में होने का अनुमान कृषि विभाग द्बारा व्यक्त किए जाने के बाद सहकार विभाग ने गन्ने की अन्य राज्यों में विक्री करने पर प्रतिबंध लगा दिया था. परंतु किसान संगठनों की आक्रामक भूमिका के बाद सरकार को अपना निर्णय पीछे लेना पडा था. इससे पहले 6 शक्कर कारखानों को 539 करोड रुपए का कर्ज देते समय संचालकों को व्यक्तिगत जिम्मेदारी स्वीकारनी पडेगी, ऐसी शर्त तय की गई थी. जिसे लेकर भाजपा के हर्षवर्धन पाटिल, धनंजय महाडिक, अभिमन्यू पवार, विजयसिंह मोहिते पाटिल एवं रावसाहब दानवे ने डेप्यूटी सीएम फडणवीस के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई. जिसके चलते अजित पवार के वित्त विभाग द्बारा तय की गई इस शर्त को रद्द कर दिया गया.
इसके अलावा शिंदे गुट से रहने वाले शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर द्बारा लिया गया ‘एक राज्य, एक गणवेश’ वाला फैसला भी विवाद में फंसने के बाद बदल देना पडा. साथ ही राज्य सेवा परीक्षा में बदलाव करने को लेकर महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग द्बारा लिए गए निर्णय के खिलाफ विद्यार्थियों द्बारा आंदोलन की भूमिका अपनाएं जाते ही शिंदे सरकार ने नई परीक्षा पद्धति को वर्ष 2025 से अमल में लाने का निर्णय लिया. इसके अलावा राज्य में एमआईडीसी के भूखंड वितरण से एमआईडीसी को 12 हजार करोड रुपयों का फायदा होने वाला था. इस निर्णय को भी ऐन समय पर स्थगित कर दिया गया. इन तमाम बातों को देखते हुए कहा जा रहा है कि, तीन दलों वाली सरकार के नेताओं में आपसी संवाद के बदले विसंवाद काफी अधिक है. जिसके चलते सरकार पर बार-बार अपने निर्णयों को बदलने की नौबत आन पडती है.