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9 वीं व 10 वीं कक्षा की पटसंख्या में काफी अधिक फर्क
अमरावती/प्रतिनिधि दि.१६ – इस समय कोविड संक्रमण के खतरे को देखते हुए किसी भी शाला में 1 ली से 9 वीं की कक्षाओं की परीक्षा नहीं ली जा रही है और सभी विद्यार्थियों को उत्तीर्ण करते हुए अगली कक्षाओें में प्रवेश दिया जा रहा है. किंतु इसके बावजूद जिले में कक्षा 9 वीं उत्तीर्ण करनेवाले विद्यार्थियों में से 5 हजार 221 विद्यार्थियों ने कक्षा 10 वीं की परीक्षा हेतु आवेदन ही नहीं भरा. ऐसे में 5 हजार से अधिक ये विद्यार्थी कहां लापता हो गये, यह सवाल शिक्षा विभाग के सामने उपस्थित हो गया है.
जानकारी के मुताबिक गत वर्ष अमरावती जिले में कुल 45 हजार 844 विद्यार्थी कक्षा 9 वीं में थे. जिनमें 23 हजार 830 छात्रों व 22 हजार 14 छात्राओं का समावेश था. इसमें से कक्षा 10 वीं की परीक्षा हेतु 40 हजार 663 विद्यार्थी प्रवेशित हुए और 5 हजार 221 विद्यार्थियों की ओर से कोई आवेदन ही नहीं मिला. ऐसे में शंका उपस्थित की जा रही है कि, या तो इन विद्यार्थियों ने पढाई छोड दी है, या फिर वे जिला छोडकर किसी अन्य शहर या जिले में चले गये है. साथ ही संदेह यह भी व्यक्त किया जा रहा है कि, कहीं कक्षा 9 वीं की पटसंख्या को जानबूझकर तो अधिक नहीं दिखाया जा रहा था. जिसकी वजह से कक्षा 10 वीं में प्रवेशित होनेवाले विद्यार्थियों की संख्या में अचानक कमी आ गयी है.
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पटसंख्या में गडबडी
– शाला की पटसंख्या पर विद्यार्थियों की कमी न दिखे, इस हेतु कक्षा 1 ली से ही जानबूझकर आंकडे अधिक दिखाये जाते है. जिसके चलते कक्षा 1 ली से 9 वीं तक विद्यार्थियों की संख्या लगभग एकसमान दिखाई देती है.
– कई विद्यार्थी शाला छोडकर जाने के बाद भी उनके नाम पटसंख्या पर बने रहते है. शिक्षकों की नौकरी को सुरक्षित रखने के लिए यह सारी उठापटक की जाती है.
– विशेष रूप से सरकारी शालाओं में पटसंख्या पर नहीं रहने के बावजूद विद्यार्थियों को शाला में प्रवेशित दिखाया जाता है. यह बात कई बार उजागर हो चुकी है.
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बालविवाह, आर्थिक दिक्कतें व स्थलांतरण हैं मुख्य वजह
– कक्षा 9 वीं के बाद पढाई छोड देनेवाले विद्यार्थियों की संख्या काफी अधिक है. कुछ परिवारों में आर्थिक दिक्कतें रहने के चलते रोजगार की खोज हेतु विद्यार्थी अपनी पढाई छोड देते है.
– कई माता-पिता अपनी बेटी के कक्षा 10 वीं में पहुंचते ही उनका 15 वर्ष की आयु में ही विवाह करते हुए अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते है. यह बालविवाह रहने के बावजूद समाज द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता. विशेष तौर पर दुर्गम व आदिवासी क्षेत्रोें में ऐसे मामले सर्वाधिक होते है.
– कई मजदूर परिवार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थलांतरित होते है. ऐसे में कक्षा 9 वीं के बाद 10 वीं में प्रवेश लेने की बजाय संबंधित परिवारों के बच्चे भी मेहनत-मजदूरी संबंधी काम में लग जाते है. ऐसे में उनकी पढाई बीच में ही छूट जाती है.
विद्यार्थियों की पटसंख्या ‘सरल’ प्रणाली में भरते समय कुछ त्रृटियां रह जाती है. इसका भी परिणाम विद्यार्थी संख्या पर दिखाई देता है. तबादले व स्थलांतरण के चलते बाहरगांव चले जानेवाले कक्षा 9 वीं के विद्यार्थियों द्वारा संभवत: उन स्थानों पर कक्षा 10 वीं में प्रवेश लिया गया हो.
– तेजराव काले
माध्यमिक शिक्षाधिकारी, अमरावती.