* दो दशकों में मशहूर हो गए सर्वत्र
अमरावती/दि.30– अचलपुर मार्ग पर शहर से करीब 20 किमी दूर पूर्णानगर का पेढा न केवल ख्याति प्राप्त कर गया है. बल्कि पेढे ने अनेक लोगों ने रोजगार उपलब्ध करवाया है. 7-8 हजार की बस्ती वाले पूर्णानगर में रोज 2 हजार लीटर दूध से लगभग 500 किलो पेढे तैयार किए जाते है. तडके 6 बजे से काम शुरू होता है. दोपहर 4 बजे तक पेढे तैयार होते हैं. गांव के मुख्य मार्ग पर ही एक दर्जन से अधिक दुकानें लगी है. जहां ताजा पेढे मिलते हैं. यहां से गुजर रहे लोग इन पेढों को अवश्य चखते हैं. रोज नया माल तैयार होता है. जिससे ग्राहकों को ताजा मिठाई मिलती है. पेढा विक्रेता अभिजीत तिवारी ने बताया कि दूध और शक्कर के अलावा कोई अन्य चीज नहीं डाली जाती. शहर में यही पेढा 400- 450 रूपए की दर से मिलता है. परंतु पूर्णानगर में 360 रूपए प्रति किलो दाम है. यहां से आते- जाते लोग अवश्य खरीदी करते हैं. किसी रिश्तेदार के यहां भेंट स्वरूप सहर्ष ले जाते हैं.
* जगह पर बिक्री
शहर के किसी भी बडे मिठाई विक्रेता को पूर्णानगर के पेढे सप्लाई नहीं किए जाते. यहां मार्ग से जानेवाले लोगों पर ही पेढे दिए जाते है. त्यौहारों के समय ताजा पेढे की इस कदर बिक्री होती है कि दोपहर 3 बजे माल खत्म होत जाता है.
* शुध्दता ही पहचान
पूर्णानगर की इस मिठाई की विशेषता शुध्दता है और अपनी सादगी. यहां के पेढे में इलायची, रंग, मेवा अथवा स्वाद के लिए कोई फ्लेवर नहीं मिलाया जाता. यहां का पेढे का अपना अलग स्वाद है. दूध को 10 घंटे रडाकर लकडी,इंधन से पेढे तैयार किए जाते हैं. अपने आप केसरिया रंग आ जाता हैं.