* फिर भयावह हालात का अंदेशा
* दुर्भाग्य से अमरावती में सर्वांधिक 174 खुदकुशी
अमरावती/दि.3 – किसान आत्महत्या के लिए बदनाम पश्चिम विदर्भ में एक बार फिर भयावह हालात नजर आ रहे हैं. केवल जनवरी से जुलाई माह दौरान संभाग के 5 जिलों में 612 किसानों ने मौत को गले लगा लिया. इसमें भी संभाग मुख्यालय अमरावती जिला 174 किसान आत्महत्या के साथ सर्वांधिक वैफल्यग्रस्त नजर आ रहा हैं. बता दें कि, अगस्त में आंकडा और बढा हैं. जुलाई में हुई अतिवृष्टि की वजह से निराश किसानों ने मौत को गले लगाया. 2 रोज पहले कृषि मंत्री जिले में थे. मेलघाट के जिस गांव में कृषि मंत्री अब्दूल सत्तार ठहरे थे, उसके पास के ही गांव में युवा किसान ने जान दे दी थी.
* 6 जिले में स्थिति खराब
अमरावती संभाग के पांचों जिलों अमरावती, अकोला, यवतमाल, बुलढाणा, वाशिम के साथ वर्धा में भी किसानों की दशा काफी खराब कहीं जा रही हैं. जुलाई की अतिवृष्टि ने किसानों पर कहर बरपा दिया. हालांकि उपमुख्यमंत्री ने पीडित क्षेत्रों का दौरा किया. उचित मदद का आश्वासन दिया मगर परेशान किसान हिम्मत छोड रहे हैं. अगस्त के आंकडे अभी आने शेष हैं. मगर अमरावती में 10 और वर्धा में 9 किसान मौत को गले लगा चुके हैं.
* 2006 जैसे हालात
जानकारों ने बताया कि, पिछले साल 2021 में 1177 किसानों ने आत्महत्या की थी. अभी जनवरी से जुलाई के आंकडों से यह संख्या 700 को पार कर गई हैं. 2006 में 1200 से अधिक किसानों की खुदकुशी के कारण कभी कपास की पैदावार के लिए जाना जाता यह पश्चिम विदर्भ का क्षेत्र राष्ट्रीयस्तर पर चर्चित हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यवतमाल आकर किसानों को सांत्वना देने का प्रयास किया था. जिसके 2 वर्ष बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी आये थे. सरकारों ने किसान आत्महत्या के आंकडे तभी से जुटाने और जारी करने शुरु किये थे.
* 9300 मामलों में मुआवजा
पिछले 16 वर्षों से चल रहे किसान आत्महत्या के भयंकर दुष्चक्र में मुआवजे की मांग लगातार बढ रही हैं. अब तक 9300 प्रकरणों मेें पीडित परिवारों को मुआवजा दिया गया हैं. किसान आत्महत्या मुआवजें के भी कडे मापदंड सरकार लगा रही हैं. बहुत चर्चित प्रकरणों में ही सरकार तत्काल सहायता देती हैं. हजारों पीडित परिवार मुआवजा राशि से वंचित रहने का भी आरोप किया जाता हैं. पीडित परिवार को 5 लाख रुपए दिये जाने की मांग हैं.
* हर साल 1 हजार खुदकुशी
2006 से लगातार प्रति वर्ष 1 हजार से अधिक कृषक आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं. फसल बर्बाद होने, कर्ज न चुका पाने की चिंता और अन्य कारणों से किसान आत्महत्या का कदम उठा रहे हैं. 2011 से लेकर 2014 तक 700-800 किसानों ने मौत को गले लगाया. नहीं तो 16 वर्षों से 1 हजार से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे हैं.