संगाबा अमरावती विद्यापीठ के विनाअनुदानित अभ्यासक्रम को बंद करने की की जा रही साजीश
विद्यापीठ वैचारिक दायित्व को भूल कर अर्थ व्यवस्था के बारे में सोच रहा : प्राचार्य डॉ. मीनल भोंडे
अमरावती/दि.23– संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ में बिना अनुदानित तत्व पर शुरू रहने वाले अभ्यासक्रम हाल ही में हुए विद्यापीठ व्यवस्थापन परिषद के विषय क्रमांक 78 दिनांक 7 मई 24 को हुई सभा में संमत निर्णय के अनुसार व 14 मार्च 24 को हुई अधिसभा में अधिसभा सदस्य डॉ. विजय कापसे व डॉ. संतोष बनसोड व्दारा पुछे गए सवाल के अनुसार व्यवस्थापन परिषद व्दारा उपरोक्त विषय पर चर्चा करने के बाद उसके बाद विद्यापीठ में बिना अनुदानित तत्त्व पर शुरू रहने वाले राज्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास व वाणिज्य विभाग में अभ्यासक्रम में प्रवेश ुसत्र 2024-24 व संस्कृत, पाली व बुध्दिज्म, मानसशास्त्र, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर विचार धारा, प्रादर्षिक कला व वूमन स्टडी सेंटर में एम ए इन जेंडर वुमन स्टडीज प्रवेश सत्र 2025-26 से रोकने के या कैसे इस पर विचार विनिमय कर कुलगुरु डॉ. मिलिंद बारहाते को समिती गठन करने के अधिकार व्यवस्थापन व्दारा दिए गए. इसी तरह विद्यापीठ के आजीवन अध्ययन व विस्तार यह विभाग शुरू रहने से विविध पदवी, पदव्युत्तर, पदविका, प्रमाणपत्र इत्यादी अभ्यासक्रम की हालिया स्थिती व आवश्यकता, वित्तीय नियोजन इत्यादी संबंधित समीक्षा लेकर सिफारिश करने के लिए समिती गठीत करने के अधिकार व्यवस्थापन परिषद व्दारा कुलगुरु को प्रदान किए जाने की जानकारी मिली है.
उपरोक्त निर्ण का पुनर्विचार हो इसके लिए शिक्षण क्षेत्र के माध्यम से निरंतर कार्य करने वाली संगठन के रुप में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ निषेध करने के चलते तथा इसी तरह अभ्यास क्रम को सरल संबंध अर्थव्यवस्था से जोडकर शैक्षणिक विभाग को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के वैचारिक विरासत व मानव्य विद्या का गर्भस्थान विषय के अस्तित्व को नख लगाने का प्रयत्न करने वाली अधिसभा सदस्य डॉ. विजय कापसे व डॉ. संतोष बनसोड के विचारों को देखकर जाहिर होता है और कठोर निंदा करने की बात ज्ञापन में कही गयी. इस निंदनीय घटना के कारण मूलतः महाराष्ट्र सार्वजनिक विद्यापीठ अधिनियम, 2016 अनुसार विद्यापीठ के उद्देश्य के अधिनियम में नमूद लगभग 18 उद्देश्यों में से इस अनुसार महत्वपूर्ण रहने वाले प्रमुख पहले उद्देश्यों को ज्ञान की निर्मित जतन व प्रसार करने की अपनी जवाबदारी निभाने, उपरोक्त प्रमाण से महाराष्ट्र सार्वजनिक विद्यापीठ अधिनियम, 2016 अंतर्गत कलम 5(2) में विदित विद्यापीठ के अधिकार व कर्तव्य के अनुसार संसोधन व ज्ञानवर्धन व ज्ञानप्रसार के लिए प्रावधान करने व सर्वसाधारणतः (ललित कला व प्रायोगिक कला सहित) कला व शास्त्र, मानवविज्ञान, सामाजिक शास्त्र, लेखा व वाणिज्य, शुध्द व उपोजित शास्त्र, तंत्रज्ञान, व्यवस्थापन, औषध वैद्यक शास्त्र के नये नये तरीके, अभियांत्रिकी, कानून, शारीरिक शिक्षण व अध्ययन के अन्य शाखा व संस्कृती व उनके बहुविद्या शाखा की व आंतरविद्याशाखा के क्षेत्र का संवर्धन करना व उनका गति देना अपेक्षित है. इस कर्तव्य के अनुरुप विद्यापीठ ने लिए गए यह विशिष्ट निर्णय को बदलना यह दुर्भाग्य है.
विद्यापीठ के व पर्याय व्दारा समाज के शैक्षणिक उत्थान के लिए विविध अध्ययन, अभ्साकेंद्र व अभ्यासक्रम स्थापित करने सही अर्थ में प्रगति के घोतक माने जाते है. इस पत्र के पीछे शैक्षिक महासंघ का मुख्य उद्देश्य शुरू रहने वाले शिक्षण संस्थान को बंद होने से रोकना है. हालिया स्थिती में उपरोक्त विभाग व अभ्साक्रम की प्रवेश मर्यादा व प्रवेशित विद्यार्थियों की संख्या बढाने के प्रयत्न न करते हुए सिर्फ विद्यार्थियों के अभाव में अभ्यासक्रम तडका फडकी में बद करने के निर्णय को रद्द किया जाए. ऐसी मांग शैक्षिक महासंघ ने की है.
राष्ट्रीय शैक्षणिक धोरण 2020 अंतर्गत विद्यार्थ्यांना आणि शिकण्याची इच्छा असलेल्या समाजातील प्रत्येक घटकाला त्याची ज्ञानार्जनाची भूक भागविण्यासाठी विविध अभ्यासक्रम व थोर पुरुषांची विचारधारा जपण्याकरिता अध्यासन केंद्रे सुरु करणे अभिप्रेत आहे. उच्च शिक्षणात मोठ्या प्रमाणात परिवर्तनात्मक सुधारणांच्या माध्यमातून समाज प्रबोधनाचे मुख्य केंद्र म्हणून विद्यापीठांना जबाबदारी स्वीकारायची आहे. सर्वांना संधी, निःपक्षपात, दर्जा, परवडणारे आणि उत्तरदायित्व या स्तंभा वर या धोरणाची उभारणी करण्यात आली असून 2030 च्या शाश्वत विकास स्वप्नाशी याची सांगड घालण्यात आली आहे.
यामध्ये संत गाडगेबाबांच्या विचारांची कास धरून त्यांचा वारसा पुढे नेण्याचे दायित्व स्विकारलेल्या आपल्या विद्यापीठाने ङ्गवित्तीय लाभङ्घ हेच प्रमुख उद्दिष्ट्य डोळ्यासमोर ठेवल्याचे या निर्णयातून प्रतीत होते, हे अत्यंत करंट्या विचारांचे प्रतिक आपल्या विद्यापीठाच्या माथी लागू नये हि माफफक अपेक्षा शैक्षिक महासंघ कुलगुरुंकडून करीत आहे. म्हणून अर्थाजनापेक्षा विचारधन प्राप्तीसाठी होत असलेला व्यय नकारात्मक दृष्ट्या पाहण्याचे पाप विद्यापीठाची धुरा सांभाळणा?्या धुरिणांनी करू नये अशी सूचना या माध्यमातून शैक्षणिक क्षेत्रात राजकारण घुसविणा?्या संबंधित शक्तींना आम्ही करीत असल्याचे निवेदनात सांगिले आहे.
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महाराष्ट्र सार्वजनिक विद्यापीठ अधिनियम, 2016 अनुसार विद्यापीठ के उद्देस्य का अधिनियम कही भी आर्थिक लाभ प्राप्त करने का अभिप्राय नहीं है. दुर्भाग्य से अधिसभा के सदस्यों के वैचारिक दिवालियाखोरी के कारण यह विविध अभ्यासक्रम यानी विद्यापीठ के कोष को लगे ग्रहम प्रेषित किए जाने की बात कही गयी. विद्यादान के सर्वश्रेष्ठ मंदिर समझे जाने वाले विद्यापीठ को आर्थिक लाभ न मिलने के कारण कभी कभार अभ्साक्रम या महापुरुषों की अध्यासन केंद्र बंद करना यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है.
डॉ. मीनल भोंडे, संयोजक शैक्षिक महासंघ
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