शादी में कार्ड पहुंचाना एक संस्कृति
ऑनलाइन इन्विटेशन में मेहमानों का सम्मान नहीं
* महेश कार्ड हाउस के सुरज भुतडा का प्रतिपादन
* डिजिटलाईजेशन में पिछड रहा शादी कार्ड व्यवसाय
अमरावती/दि.30- शादी में मेहमानों को कार्ड पहुंचाना एक संस्कृति है. हमारे ऐसे कई रिश्तेदार रहते है, जिनके यहां जाने का हमें कभी मौका ही नहीं मिलता. लेकिन जब परिवार में शादी-ब्याह होता है, ऐेसे मौके पर सभी रिश्तेदारों को शादी का कार्ड देने के बहाने उनके घर जाने का व उनसे मिलने का मौका मिलता है. लेकिन इन दिनों शादी के कार्ड भी डिजिटल रुप से भेजे जाने लगे है. इसमें मेहमानों का उचित सम्मान नहीं होता. जिससे ऑनलाइन इन्विटेशन पर कई मेहमान शादी में नहीं आते है. बुजूर्ग लोग भी सोशल मीडिया पर मिले निमंत्रण का स्विकार नहीं करते है. इसलिए कार्ड संस्कृति का जतन करना पारिवारिक मेलमिलाप व सभी से संबंध कायम रखने के लिए जरुरी है. ऐसा प्रतिपादन शहर के प्रसिद्ध शादी कार्ड व्यवसायी महेश कार्ड हाउस के संचालक सुरज भुतडा ने किया. उन्होंने कहा कि, बदलते इस दौर में कार्ड का चलन कम होते जा रहा है. इससे आगामी कुछ वर्षों में यह शादी कार्ड व्यवसाय ठप होने का डर है.
पहले औसतन प्रत्येक ग्राहक 1 हजार से 1500 कार्ड छपवाता था. लेकिन अब औसतन 300 कार्ड ही छपवाएं जा रहे है. कार्ड छपवाने को कुछ लोग फिजूल खर्च मानते है. लेकिन यह उनकी मानसिकता गलत है. इन दिनों सोशल मीडिया पर शादी का कार्ड भेज दिया जाता है. लेकिन प्रत्येक व्यक्ति सोशल मीडिया पर आया, प्रत्येक मैसेज पढ नहीं सकता. उसी प्रकार घर के बुजूर्गों को यदि शादी में बुलाना है, तो उन्हें सोशल मीडिया पर कार्ड भेजना उनका अपमान करने जैसा ही है. इसलिए लोग कार्ड संस्कृति को बनाए रखे, यह अपील भी सुरज भुतडा ने की.
* 5 वर्ष से मंदी में चल रहा व्यवसाय
विगत 5 वर्ष से कार्ड व्यवसाय पर मंदी छायी है. इसमें महंगाई भी एक कारण है, पेपर के रेट बढ गये है, 12 प्रतिशत जीएसटी व इम्पोर्ट ड्यूटी के कारण पहले जो कार्ड 10 रुपए में आता था, अब उसकी कीमत बढ कर 20 रुपए हो गई है. अमरावती में कार्ड का माल दिल्ली व मुंबई से बुलाया जाता है. हेवी रेंज के कार्ड मुंबई से व विभिन्न प्रकार के आकर्षक कार्ड दिल्ली से लाये जाते है. विगत 2 वर्ष से कोरोना के कारण कार्ड व्यवसाय पूर्ण रुप से ठप हो गया था. लेकिन अब व्यवसाय पटरी पर लौटने लगा है. लेकिन सोशल मीडिया के कारण कार्ड छपवाने वालों ने कार्ड की संख्या कम कर दी है. अधिकांश लोगोें को डिजिटल रुप से शादी के कार्ड भेजे जा रहे है.
* 1 रुपए से 250 रुपए तक के कार्ड
इन दिनों बाजार में एक रुपए से लेकर 250 रुपए तक के विभिन्न वेरायटियों में कार्ड उपलब्ध है. आज भी कुछ लोग ऐसे है, जो पहले की तरह प्रत्येक रिश्तेदार तक शादी का कार्ड प्रत्यक्ष पहुंचाने में विश्वास रखते है. कुछ ग्राहक 5 हजार से 20 हजार कार्ड भी खरीदते है. लेकिन ऐसे ग्राहकों की संख्या सीमित रहती है. अधिकांश लोग औसतन 300 कार्ड में ही कार्ड विरतण की रस्म पूरी कर लेते है. जिसका असर कार्ड व्यवसाय पर दिखने लगा है.
* सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल हानिकारक
सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल हानिकारक ही है. उसके दुष्परिणाम भी समय-समय पर सामने आते रहते है. उसी कडी में अब शादी का निमंत्रण कार्ड भी सोशल मीडिया के माध्यम से ही भेजे जाने से कई रिश्तेदार इसमें अपना अपमान मानकर शादी-ब्याह में शरीक होना टाल रहे है. इसका असर पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों पर भी पडने लगा है. सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो, लेकिन प्रत्येक विषय में सोशल मीडिया पर निर्भर रहना उचित नहीं है. कुछ लोग अपने रिश्तेदारों की ब्राडकॉस्ट लिस्ट बनाकर उन्हें कार्ड सेेंड कर देते है, लेकिन यदि संबंधित व्यक्ति के पास कार्ड भेजने वालों का नंबर सेव नहीं रहे, तो उन्हें वह मैसेज मिलता ही नहीं. इसलिए कार्ड संस्कृति को जीवित रखना जरुरी हो गया है.
* 4 महीने का रहता है सीजन
कार्ड व्यवसाय वर्ष भर में केवल 4 महीने का होता है. नवंबर से दिसंबर, जनवरी से मार्च-अप्रैल व मई से जून इस कालावधि में विवाह के मुहूर्त रहते है. इसी कालावधि में कार्ड व्यवसाय पूरे चरम पर रहता है. वर्ष भर में जिले में 60 करोड रुपए का व्यवसाय शादी कार्ड का होने का अनुमान है. लेकिन अब यह व्यवसाय धीरे-धीरे कम होते जा रहा है. ऐसा ही रहा, तो कुछ वर्षों बाद कार्ड संस्कृति ही खत्म होने का डर है.