अमरावती

बाजार में कृत्रिम रुप से पकाए गए फलों की भरमार

जांच के लिए एफडीआई के पास मनुष्यबल की कमी, साल भर में एक भी कार्रवाई नहीं

अमरावती /दि.9- इन दिनों पर्व एवं त्यौहारों तथा धार्मिक उत्सवों की शुरुआत हो गई है. जिसके चलते कई लोग उपवास करते है और उपवास वाले दिनों में केले सहित अन्य फलों का सेवन करते है. परंतु शहर में कई स्थानों पर कृत्रिम तौर पर पकाए गए फलों की धडल्ले के साथ विक्री होती है. जिसकी ओर अन्न व औषधी प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है.
उल्लेखनीय है कि, केले के सेवन को स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद कहा जाता है. परंतु यह केला यदि कृत्रिम तौर पर पकाया गया है, तो इसके सेवन करने से कई तरह की बीमारियां हो सकती है. इन दिनों फल विक्रेताओं द्बारा केलों को जल्द से जल्द पकाते हुए विक्री हेतु उपलब्ध कराने के लिए कई तरह के शॉटकट का अवलंब किया जाता है. जिसके तहत केलों को कार्बाइड से पकाया जाता है. कार्बाइड अथवा पाउडर से पकाए गए किसी भी तरह के फलों का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. यह बात पता रहने के बावजूद भी विगत 1 वर्ष के दौरान शहर में कृत्रिम तौर पर फलों की विक्री करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ काई कार्रवाई नहीं हुई है. पता चला है कि, एफडीआई कार्यालय में पूरे जिले के लिए केवल एक ही निरीक्षक की तैनाती है. जिस पर पूरे जिले में जांच पडताल का भार है. ऐसे में मनुष्यबल का अभाव रहने के चलते एफडीए की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही.
* केले 50 रुपए दर्जन
जिले में केलों का उत्पादन बेहद कम है. जिसके चलते अन्य जिलों से केलों को अमरावती लाया जाता है. इस समय पर्व एवं त्यौहारों सहित उपवास का दौर शुरु हो जाने के चलते केले के दाम 40 से 50 रुपए दर्जन के आसपास है.
* उपवास के चलते महंगाई बढी
इस समय श्रावण माह शुरु रहने के चलते कई लोगों का उपवास रहता है. इसी महिने में अन्य पर्व एवं त्यौहारों की भी शुरुआत होने के चलते बाजार में फिलहाल केलों की मांग बढ गई है.
* अधपके केलों से गले में तकलीफ
कार्बाइड के जरिए पकाए गए केले हकीकत में भीतर तक पूरी तरह से पकते ही नहीं है. ऐसे अधपके केलों का सेवन करने से गले में तकलीफ हो सकती है. साथ ही कैंसर होने का खतरा भी हो सकता है. इसके अलावा किडनी व लीवर पर भी इसका विपरित असर पड सकता है.
* कैसे पहचाने पाउडर से पके केलों को
प्राकृतिक तौर पर पके केले हल्के तपकीरी रंग वाले तथा काले छींटदार होते है. पूरी तरह से पके केलों के छिलके गहरे पीले रंग वाले होते है. जिन पर काले व कत्थई दाग होते है. वहीं प्राकृतिक तौर पर पकाए गए केलों के छिलके चमकदार पीले रंग के और बिना किसी दाग वाले होते है, जो यद्यपि दिखने में काफी आकर्षित दिखाई देते है. लेकिन भीतर से अधपके होते है और ऐसे केलों का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.
* बाहर से चमकदार, भीतर से काले
केमिकल पद्धति से पकाए गए केले कुछ हद तक नर्म होते है, जो ज्यादा दिन तक टिकते नहीं. साथ ही ऐसे केले कहीं पर ज्यादा पके और कहीं पर कच्चे होते है.
* साल भर में एक भी कार्रवाई नहीं
अन्न व औषधी प्रशासन विभाग द्बारा पूरे साल भर के दौरान एक भी कार्रवाई नहीं हुई है. एफडीए में मनुष्यबल की कमी रहने के चलते शिकायत प्राप्त हुए बिना एक भी कार्रवाई नहीं की जाती.
* दोषी पाए जाने पर कार्रवाई
गर्मी के मौसम में आम की आवक बडे पैमाने पर होने के चलते आमों की नियमित जांच की गई. साथ ही केलों की भी जांच की गई है. दो स्थानों से सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे गए थे. जिसमें कोई भी दोषी नहीं पाया गया.
– गणेश परलीकर,
सह आयुक्त अन्न व औषध प्रशासन विभाग.

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