आखिर ‘उन’ तीनों कैदियों ने अपनी बैरक का ताला कैसे तोडा?
‘जेल ब्रेक’ की जांच करनेवाली समिती भी पडी हैरत में
अमरावती/दि.2– विगत 28 जून को तडके स्थानीय मध्यवर्ती कारागार में अपनी सजा काटने हेतु रखे गये तीन कैदी जेल से फरार हो गये. जिनका अब तक कहीं कोई अता-पता नहीं चला है. इस मामले की विगत तीन दिनों से जांच चल रही है और जांच हेतु चंद्रपुर के जेल अधीक्षक वैभव आगे के नेतृत्व में एक जांच समिती गठित की है. यह समिती खुद इस बात को लेकर हैरत में है कि, इन तीनों कैदियों ने अपनी बैरक के ताले को तोडने में सफलता कैसे हासिल की, क्योंकि बैरक के बाहर ताला कुछ इस तरह से लगाया जाता है, जहां पर बैरक के भीतर रखे गये कैदियों का हाथ नहीं पहुंच सकता. साथ ही यह ताला अपने आप में काफी मोटा और मजबूत रहता है. जिसे आसानी से तोडा नहीं जा सकता. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, आखिर ‘जेल ब्रेक’ की घटना को अंजाम देने के लिए तीनों कैदियों ने अपनी बैरक के ताले को कैसे तोडा? वहीं इस घटना को घटित हुए तीन दिन बीत जाने के बावजूद पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज को क्योें नहीं खंगाला, यह अपने आप में सबसे बडे हैरत का विषय है.
चंद्रपुर के जेल एसपी वैभव आगे द्वारा विगत दो दिनों से इस मामले की जांच की जा रही है और जांच से संबंधित सभी बातों को बेहद गोपनीय रखा जा रहा है, लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक तीनों कैदियों ने जेल से फरार होते समय अपने पीछे कोई सबूत नहीं छोडा है. जेल के भीतर बैरक में लगाये गये मजबूत ताले को बडी आसानी के साथ खोलते हुए इन कैदियोें ने करीब 21 फीट उंची दीवार को भी बडी आसानी के साथ पार कर लिया. यानी वे इस 21 फीट उंची दीवार पर बडी आसानी के साथ जेल के भीतरी हिस्से की ओर से चढे और फिर उतनी ही आसानी के साथ दूसरी ओर उतर भी गये, जिसके बारे में किसी को कानोकान खबर भी नहीं चली और जेल परिसर के भीतर व बाहर पूरा समय आंखों में तेल डालकर पहरा देनेवाले किसी भी जेल स्टाफ को ये तीनोें कैदी जेल से भागते समय दिखाई भी नहीं दिये. इन सब बातों को लेकर खुद जांच समिती भी हैरत में बतायी जा रही है.
उल्लेखनीय है कि, ‘जेल ब्रेक’ की घटना उजागर होते ही स्थानीय पुलिस द्वारा मामले की जांच करते हुए फरार कैदियों की तलाश करनी शुरू की गई. जिसके तहत डॉग स्कॉड को सेंट्रल जेल लाया गया और ये डॉग स्कॉड कारागार के पीछले हिस्से से होकर गुजरनेवाले सुपर एक्सप्रेस हाईवे पर थोडी दूर तक गया. जिससे साफ तौर पर अनुमान लगाया गया कि, जेल से फरार होने के बाद ये तीनों ही कैदी बडे आराम के साथ सुपर एक्सप्रेस हाईवे पर पहुंचे. जहां से किसी वाहन में सवार होकर भाग निकले.
* थोडी सतर्कता दिखाई जाती, तो पकडे जा सकते थे तीनों
बेहद उल्लेखनीय है कि, जिस समय ‘जेल ब्रेक’ की यह घटना घटित हुई, उसी समय पुलिस के पेट्रोलिंग वाहन में सवार कर्मचारियों को सेंट्रल जेल से बाहर मुख्य प्रवेश द्वार के पास तीन लोग दिखाई दिये. जिसके बाद रात्रीकालिन गश्त पर रहनेवाले इस पेट्रोलिंग वाहन से जेल प्रशासन को जेल के भीतर सभी कैदियों को देखने हेतु कहा गया. लेकिन जेल के बाहर दिखाई दे रहे तीन लोगों पर नजर रखने या उनका पीछा करने की जहमत नहीं उठाई गई और इसे लेकर वॉकीटॉकी पर किसी अन्य को भी कोई संदेश आगे प्रसारित नहीं किया गया. यदि पेट्रोलिंग वाहन में रहनेवाले कर्मचारियों द्वारा उसी समय उन तीन लोगों को रोककर उनसे पूछताछ की जाती और इतनी रात गये जेल परिसर के आसपास घूमने का कारण पूछा जाता, तो शायद समय रहते ही ‘जेल ब्रेक’ की इस घटना को रोका जा सकता था और फरार होने से पहले ही तीनों कैदियों को पकडा भी जा सकता था.
* ‘जेल ब्रेक’ की घटना के बाद भी खत्म नहीं हुई लापरवाही
मुंबई की ऑर्थर रोड जेल व पुणे की येरवडा जेल के बाद समूचे राज्य में सबसे अधिक सुरक्षित जेल अमरावती के मध्यवर्ती कारागार को माना जाता है. यहीं वजह है कि, इस जेल में कई संगीन अपराधों में लिप्त रहनेवाले खूंखार अपराधियों को भी रखा जाता है, लेकिन इस सेंट्रल जेल की फौलादी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए तीन कैदी यहां से फरार हो गये. जिन्हें पकडना किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन इतनी संगीन और सनसनीखेज वारदात के बाद भी जेल प्रशासन द्वारा जिस तरह को ढूलमूल रवैय्या दिखाया जा रहा है, वह हैरत पैदा करनेवाला है. जेल ब्रेक की घटना के उजागर होते ही जेल प्रशासन द्वारा सबसे पहले जेल के भीतर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वहीं जेल से बाहर निकलकर तीनों कैदी किस ओर और कैसे भागे, यह पता करने हेतु जेल परिसर के आसपास स्थित मकानों व दुकानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों को भी तुरंत खंगाला जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा भी नहीं किया गया. वहीं जब यह कैदी अपनी बैरक के मजबूत ताले को तोडकर और जेल की अभेद्य मानी जाती तमाम सुरक्षा व्यवस्थाओंं को धता बताकर जेल से बाहर निकले, तो इस दौरान वे किसी के नजर में भी नहीं आये. जबकि रात के समय जेल परिसर के भीतर व बाहर कडा पहरा रहता है. ऐसे में अब यह संदेह बेहद मजबूत होता जा रहा है कि, कहीं ‘जेल ब्रेक’ की इस घटना में कोई ‘भीतरी हाथ’ तो नहीं था. जिसे खोजना अब वैभव आगे के नेतृत्ववाली जांच समिती के लिए सबसे बडी चुनौती है.