होली के बाद अब मेलघाट में मेघनाथ यात्रा की धूम
खंबे को बांधकर अनेको ने पूरी की मन्नत
* आदिवासी संस्कृति का जतन
चिखलदरा/दि. 28– आदिवासियों के सबसे बडे त्यौहार होली निमित्त पांच दिन फगवा की धूम शुरु रहते होली जलाने के बाद दूसरे व तीसरे दिन से मेघनाथ यात्रा की शुरुआत हो गई है. तहसील के जिन बडे गांव में साप्ताहिक बाजार भरता है, उस गांव में यह यात्रा होती है. मंगलवार को जारिदा में यात्रा हुई. पश्चात अब काटकुंभ में होनेवाली है. सैंकडो आदिवासी परंपरागत तरिके से मेघनाथ यात्रा में पूजा-अर्चना कर मन्नत पूरी करते है.
मेलघाट के आदिवासियों की संस्कृति की अलग दुनिया है. बडे उत्साह से और खुशी के साथ वें रहते है. होली यह उनका सबसे बडा त्यौहार और संपूर्ण परिवार इस त्यौहार को एकसाथ घर आते है. होली के अवसर पर मेघनाथ के नाम से मेलघाट में आज भी परंपरागत यात्रा भरती है. जारिदा व काटकुंभ में परिसर के डोमा, काजलडोह, बामादेही, बगदरी, कणेरी, कोयलारी, पांचडोंगरी, खंडुखेडा, चुनखडी, खडीमल, माखला, गंगारखेडा, कोटमी, दहेंद्री, पलस्या, बुटिदा, चुरणी, कोरडा, कालीपांढरी, भंडोरा, जारिदा, महेरीआम, कामिदा, हतरु, रायपुर, राहू तथा मध्यप्रदेश के खामला, देढपणी, पाटाखेडा, धार, महू, भैंसदेही, बडगांव, सावलमेंढा, कवड्या आदि गांव में आदिवासी और गैरआदिवासी हजारो की संख्या में यात्रा में शामिल होते है. जारिदा, हतरु, काजलडोह, बीबा, कारा ऐसे अनेक स्थानो पर भी मेघनाथ की यात्रा भरती है.
* मुरली की बली और श्रद्धा मन्नत की
मेलघाट के आदिवासियों की आज भी देवी-देवताओं पर अपार श्रद्धा है. घर के छोटे से लेकर बडो तक बीमार रहे तो भी गांव के तांत्रिक के पास जाकर पहले उपचार किया जाता है. इसी तरह मेघनाथ यात्रा में मन्नत कबूल किए मुताबिक सैंकडो द्वारा मुर्गी की बली दी जाती है.
* खंबे को बांधकर प्रदक्षिणा
जिन्होंने मन्नत कबूल की वह पूर्ण होने के बाद मेघनाथबाबा के पास बैठे भूमका के पास पूजा-अर्चना की जाती है. वहां हैसियत के मुताबिक मुर्गी अथवा बकरा दिया कि मेघनाथ के आडे खंबे को मन्नत कबूल करनेवाले को बांधा जाता है. निचे दो व्यक्ति रस्सी की सहायता से तीन बार सीधे और विपरित दिशा से उसे प्रदक्षिणा करवाते है.