काफी अध्ययन के बाद अमरावती आरटीओ कार्यालय को किया टार्गेट
मुख्य सूत्रधार मणियार फर्जी कागजपत्र तैयार कर बेचता था दलाल को
* संपूर्ण फर्जीवाडा भाग्यश्री पाटिल और गणेश वरुठे की ड्युटी के दौरान हुआ
* इन दोनों आरटीओ अधिकारियों के ही कागजपत्रो पर हस्ताक्षर
अमरावती/दि. 9- अमरावती के प्रादेशिक परिवहन कार्यालय (आरटीओ) में चोरी के ट्रक के फर्जी कागजपत्र के आधार पर रजिस्ट्रेशन कर वाहनों की बिक्री करने के प्रकरण में नई मुंबई की क्राईम ब्रांच पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए मुख्य सूत्रधार जावेद अब्दुल्ला शेख उर्फ मणियार ने पहले अपने फंटरो की सहायता से विदर्भ के आरटीओ कार्यालय का अध्ययन किया. पश्चात अमरावती और नागपुर आरटीओ कार्यालय को टार्गेट कर बडे नियोजित ढंग से यहां से चोरी के ट्रको के नकली कागजपत्र तैयार कर रजिस्ट्रेशन कराया और उनकी बिक्री की. उजागर हुए 8 प्रकरणो की सभी फाईलो पर मोटर वाहन निरीक्षक गणेश वरुठे और सहायक मोटार वाहन निरीक्षक भाग्यश्री पाटिल के ही हस्ताक्षर है. उन्हीं की ड्युटी में यह फर्जीवाडा किया गया.
अमरावती आरटीओ कार्यालय में घटित हुए इस फर्जीवाडे में अन्यो राज्यो से आनेवाले वाहन की डाटा एंट्री 40 नंबर की खिडकी पर कार्यरत कर वसूली अधिकारी विजय गावंडे द्वारा की जाती थी. उसी की जिम्मेदारी थी कि, परप्रांतो से आनेवाले वाहनों के कागजपत्रो की पूरी जांच कर डाटा एंट्री करना. पश्चात एमएच 27 पासिंग करते समय वह फाईल अपने वरिष्ठ अधिकारियों के पास ले जाना. सूत्रों के मुताबिक इस प्रकरण के मुख्य सूत्रधार छत्रपति संभाजीनगर जिले के किराडपुर निवासी जावेद अब्दुल्ला शेख उर्फ मणियार ने पहले अपने फंटरो के जरिए विदर्भ के आरटीओ कार्यालय का अध्ययन कराया था और जानकारी ली थी कि, किस आरटीओ कार्यालय में दलालों के जरिए किए जानेवाले काम पर कौनसा अधिकारी बिना देखे हस्ताक्षर कर उसे मंजूरी देता है. तब अमरावती और नागपुर आरटीओ कार्यालय को टार्गेट किया गया और वर्ष 2023 से इस फर्जीवाडे की शुरुआत हुई. अमरावती के उजागर हुए 8 प्रकरणो में सभी कागजपत्रो पर मोटर वाहन निरीक्षक गणेश वरुठे और सहायक मोटर वाहन निरीक्षक भाग्यश्री पाटिल के हस्ताक्षर है. जावेद अब्दुल्ला शेख देश के विविध राज्यो से वाहनों की चोरी कर उसका चेचीस नंबर और इंजिन का नंबर बदलकर वाहन की निर्मिती करनेवाले कंपनी के मुताबिक एल्युमिनियम की इंजिन नंबर प्लेट बनवाता था. यह जांच में उजागर हुआ है. साथ ही उसने अपने कुछ साथी और फंटरो की सहायता से चोरी के वाहनों के मूल चेचीस नंबर बदलकर दूसरे चेचीस नंबर डालकर इन गाडियों को अमरावती, नागपुर व अन्य आरटीओ कार्यालय में रजिस्ट्रेशन करवाए थे. इस आरोपी ने वर्ष 2017 में बीड में यह कारनामा सर्वप्रथम किया था. तब से वह वांटेड था. लेकिन नई मुंबई पुलिस ने फिल्मी स्टाईल में उसे दबोचने में सफलता प्राप्त की. पश्चात यह संपूर्ण मामला उजागर हुआ. उसके बाद ही अमरावती आरटीओ कार्यालय के तीन अधिकारियों को दबोचा गया. लेकिन इस प्रकरण में यहां के आरटीओ कार्यालय के एक अधिकारी राज बागरी ने फरार रहते हाईकोर्ट से जमानत प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की. लेकिन नई मुंबई की क्राईम ब्रांच पुलिस की रडार पर अमरावती आरटीओ कार्यालय के कुछ अधिकारी व कर्मचारी अभी भी है. विशेषकर कर वसूली अधिकारी की कार्यप्रणाली की जांच की जा रही है. इस संबंध में मुंबई क्राईम ब्रांच के उपायुक्त अमित काले से संपर्क किया गया. तो वह उपलब्ध नहीं हो पाए. लेकिन सूत्रों ने यह बताया कि, इस प्रकरण के मुख्य आरोपी जावेद अब्दुल्ला शेख के पास अनेक पैन कार्ड और आधार कार्ड बरामद हुए है. वही चोरी के वाहनों के फर्जी कागजपत्र तैयार कर बेचता था. पश्चात आगे की प्रक्रिया यहां के एजंट और फंटरो के जरिए आरटीओ अधिकारियों के मार्फत पूर्ण की जाती थी.
* जांच किए बगैर हस्ताक्षर करना पडा महंगा
सूत्रों के मुताबिक पैसों की लालच में आकर मोटर वाहन निरीक्षक कागजपत्रों की जांच किए बिना हस्ताक्षर कर लेते थे. जो 8 प्रकरण उजागर हुए है उनमें स्थानीय खरीददारों के नाम और पते भी फर्जी है. शिवा गिरी के नाम 6 ट्रक बताए गए है. कहा जाता कि, उसके आधार कार्ड पर पथ्रोट जनुना का पता है. जबकि पथ्रोट अचलपुर तहसील में और जनुना नांदगांव खंडेश्वर तहसील में आता है. इस कारण यह आधार कार्ड भी फर्जी है. ऐसे ही पते सभी वाहनों के कागजपत्रो पर है. इतना बडा गोलमाल रहने के बावजूद यहां के अधिकारियों ने किसी भी तरह की जांच पडताल न करते हुए डाटा एंट्री के बाद उनका रजिस्ट्रेशन कर लिया. यह आश्चर्य की बात कही जा सकती है.
* भीड के समय होते थे ऐसे काम
सूत्रों के मुताबिक दलाल कहे अथवा मुख्य सूत्रधार के फंटर मौका यह देखते थे कि, अपने काम को निपटाने के लिए आरटीओ कार्यालय में कब भीड रहती है. इसी समय का लाभ उठाकर फंटर अधिकारी के पास पहुंचते थे और फाईल पर हस्ताक्षर करवा लेते थे. मोटर वाहन निरीक्षक और सहायक मोटर वाहन निरीक्षक ने अपने ही कार्यालय को कर वसूली अधिकारी के विश्वास पर और लालच में सभी फाईलों पर हस्ताक्षर किए और यही इनके लिए महंगा साबित हुआ. मामला उजागर होने के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड रही है.