वझ्झर आश्रम को देखने के बाद आपके मन में भी जाग उठेगा सेवाभाव
पद्मश्री शंकरबाबा पापलकर ने जताया विश्वास
अमरावती /दि. 12– सामाजिक सेवा की भावना के चलते साल 1990 में दिव्यांग अनाथ बच्चों के लिए परतवाडा के वझ्झर में आश्रम की स्थापना की गई. आज इस आश्रम में 125 से ज्यादा दिव्यांग लडके-लडकियों का पालनपोषण किया जा रहा है. आप खुद यहां आओ, देखो. यहां की वास्तविकता देखने के बाद आपके भी मन में तथा जीवन में सेवाभाव जरुर निर्माण होगा एवं सेवा की भावना जाग उठेगी, ऐसा विश्वास पद्मश्री शंकरबाबा पापलकर ने व्यक्त किया. वे महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग मुंबई द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस समारोह में बोल रहे थे. मंगलवार को मुंबई के राज भवन में सुबह 11 बजे से कार्यक्रम का आयोजन शुरु हुआ था.
इस अवसर पर प्रमुख अतिथि के रुप में राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन, मुंबई हाईकोर्ट के निवृत्त मुख्य न्यायाधीश एन.एच. पाटिल, राज्य मानवाधिकार आयोग के प्रमुख निवृत्त न्यायाधीश के.के. तातेड, राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य एम.ए. सईद, संजय कुमार, सचिव नितिन पाटिल तथा विशेष निमंत्रित के तौर पर पद्मश्री शंकरबाबा पापलकर, सौ. वैशाली कोल्हे, डॉ. श्रीरंग बिजुर, डॉ. वैशाली पाटिल, संतोष चव्हाण, संजय पाटिल आदि विविध क्षेत्रों में सेवा देनेवाले दिग्गज उपस्थित थे. उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए.
हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. इस साल भी मंगलवार को राज भवन में मानवाधिकार दिवस मनाया गया. जिसमें सर्वप्रथम 10 दिसंबर 1948 को पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकार स्वीकारने की घोषणा की. वंश, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि के आधार पर मनुष्यों को अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता. मानवी हक्क हर व्यक्ति का बुनियादी अधिकार है. मानवी हक्क में स्वास्थ, आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा का समावेश है. जन्म से ही यह अधिकार मनुष्य को उपलब्ध है. जो उपलब्ध कराने में कोई बाधा नहीं है. लोगों को उनके अधिकारों की जानकारी देना यही इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है. भारत देश में 28 दिसंबर 1993 से मानवी हक कानून लागू हुआ और सरकार ने 12 अक्तूंबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की.