बिखराव के बाद अब शिवसेना में शुरू हो सकता है पलायन का दौर
कई पदाधिकारी उध्दव या शिंदे गुट के साथ रहने को लेकर पेशोपेश में
* चुनाव लडने के इच्छुकों द्वारा बदला जा सकता है पाला
* हर कोई चाहता है सत्ता पक्ष के साथ नजदीकी
* गद्दारी के ठप्पे से बचने की भी चल रही जद्दोजहद
अमरावती/दि.19- विगत कुछ समय से शिवसेना के भीतर भारी उथल-पुथल का दौर चल रहा है. विगत जून माह के दौरान शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे द्वारा अपने समर्थक विधायकों के साथ मिलकर बगावत करने और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लेने के बाद प्रदेश स्तर पर शिवसेना में दो फाड हो गई. इसके साथ ही पार्टी में संगठनात्मक स्तर पर भी बिखराव का दौर शुरू हो गया. जिसके तहत अब तक उध्दव ठाकरे के नेतृत्व को ही शिवसेना में सर्वोपरी माननेवाले कई जनप्रतिनिधि व सेना पदाधिकारी एकनाथ शिंदे गुट के साथ जाने लगे. वही शिवसेना के कई जनप्रतिनिधियों, पदाधिकारियों व शिवसैनिकों ने उध्दव ठाकरे के नेतृत्व में ही निष्ठा जताई. लेकिन ऐसे कई जनप्रतिनिधि, पदाधिकारी व आम कार्यकर्ता अब भी संभ्रम और उहापोह वाली स्थिति में है कि, आखिर उन्हें कहां रहना चाहिए और किस गुट के साथ जाना चाहिए. इनमें से अधिकांश की समस्या यह है कि, अगर वे एकनाथ शिंदे गुट के साथ जाते है, तो उन पर गद्दार होने का ठप्पा लग सकता है और यदि उध्दव ठाकरे गुट के साथ बने रहते है, तो राज्य में शिंदे गुट के जरिये एक तरह से शिवसेना के ही पास रहनेवाली सत्ता का उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पायेगा. बल्कि उध्दव गुट के साथ रहने के चलते एक तरह से सीधे-सीधे सत्ता पक्ष के साथ पंगा लेनेवाली स्थिति में वे रहेंगे. ऐसे में कई सेना पदाधिकारी इस समय बडे ही पेशोपेश में दिखाई दे रहे है.
बता दें कि, विगत लोकसभा व विधानसभा चुनाव तक भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना एकसाथ थे तथा पिछले करीब 25 वर्षों से युती के तहत एकसाथ रहनेवाले इन दोनों दलों की इससे पहले राज्य में सरकार भी थी. परंतु विगत विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लडने के बावजूद भी मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनोें दलों के बीच बेबनाव हो गया. जिसके चलते शिवसेना के पार्टी प्रमुख उध्दव ठाकरे ने अपने धूर प्रतिद्वंदी रहनेवाले कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास आघाडी बनाई, जिसके बाद महाविकास आघाडी की ओर से उध्दव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाते हुए राज्य में तीन दलों की मिली-जुली सरकार का गठन किया गया. यह सरकार जैसे-तैसे ढाई वर्ष तक चली और उस समय अचानक ही अल्पमत में आ गई, जब विगत जून माह में शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने अपने समर्थन में रहनेवाले 40 शिवसेना व 10 निर्दलिय विधायकों के साथ मिलकर बगावत कर दी. जिसके चलते करीब दस दिनों तक चली राजनीतिक उठापटक के बाद उध्दव ठाकरे की सरकार गिर गई और एकनाथ शिंदे गुट ने भाजपा के साथ हाथ मिलाकर नई सरकार बना ली. साथ ही एकनाथ शिंदे ने अपना गुट ही असली शिवसेना रहने का दावा करते हुए निर्वाचन आयोग के समक्ष शिवसेना का चुनाव चिन्ह ‘धनुष्यबाण’ अपने गुट को दिये जाने की गुहार लगाई है. जिसे लेकर इस समय निर्वाचन आयोग सहित देश की सर्वोच्च अदालत के सामने सुनवाई चल रही है और इस मामले में क्या फैसला आता है, इस ओर शिवसेना के दोनों गुटों सहित समूचे महाराष्ट्र राज्य का ध्यान लगा हुआ है. ऐसे में चूंकि उध्दव ठाकरे गुट और एकनाथ शिंदे गुट में बरसों बरस तक शिवसेना के ही साथ रहनेवाले सेना विधायक व नेता शामिल है. ऐसे में अब उनके समर्थक सेना पदाधिकारियों व शिवसैनिकों में इस बात को लेकर अच्छा-खासा संभ्रम है कि, वे किस गुट के साथ रहेंगे.
* भाजपा की स्थिति पर पैनी नजर
– मिशन-2024 पर अमल शुरू
– कुछ सेना पदाधिकारी बदल सकते हैं पाला
वही शिवसेना में एक वर्ग ऐसा भी है, जो विगत लंबे समय से चल रही इस सिरफुटव्वल से तंग आ चुका है और अब अपने लिये कोई अलग राह खोजने का प्रयास कर रहा है. ऐसे ही लोगों पर इस समय भाजपा की नजर है. जिन्हें भाजपा द्वारा मिशन-2024 के तहत अपने पाले में करने की पूरी कोशिश शुरू हो गई है. पता चला है कि, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में प्रदेश ईकाई को साफ तौर पर आदेश दिया है कि, विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस व शिवसेना के जो प्रत्याशी बेहद कम अंतरों से चुनाव हारे है, उन्हें भाजपा की ओर आकर्षित किया जाये. इसी कडी में अमरावती जिले के आठ विधानसभा क्षेत्रों में बेहद कम वोटों की मार्जीन से हारनेवाले अन्य दलों के दो-तीन प्रत्याशियों से इस समय भाजपा द्वारा लगातार संपर्क किया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि, शिवसेना में जिला प्रमुख, उपजिला प्रमुख तथा शहर प्रमुख स्तर का पदाधिकारी विधायक पद का चुनाव लडने के लिए इच्छुक और योग्य माना ही जाता है और इस समय इसी स्तर के पदाधिकारी शिवसेना में हुई दोफाड के बाद उध्दव गुट या शिंदे गुट में रहने को लेकर पेशोपेश में है. साथ ही अगले चुनाव में टिकट मिलने अथवा नहीं मिलने को लेकर भी संभ्रम में है. ऐसे ही कुछ पदाधिकारियों पर इस समय भाजपा की नजर है और पता चला है कि, अगले कुछ दिनोंं में ही अमरावती जिले में शिवसेना के एक-दो कद्दावर नेता पाला बदलकर भाजपा की राह पकड सकते है. जिनमें कुछ नामों को लेकर अच्छी-खासी चर्चा चल रही है.
* भाजपा में भी बह रही बदलाव की बयार
यहां यह उल्लेखनीय है कि, हाल ही में भाजपा में प्रदेशाध्यक्ष पद पर चंद्रकांत पाटील की बजाय चंद्रशेखर बावनकुले की नियुक्ति की गई. इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है कि, बहुत जल्द शहर एवं जिला स्तर पर भी काफी फेरबदल हो सकता है. ज्ञात रहे कि, आगामी अक्तूबर-नवंबर माह में भाजपा के अमरावती शहराध्यक्ष किरण पातुरकर तथा जिलाध्यक्ष निवेदिता चौधरी का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है. जिसके चलते स्वाभाविक रूप से इन दोनोें पदों पर नई नियुक्ति होनी है. हालांकि अभी मनपा सहित स्थानीय स्वायत्त निकायोें के चुनाव का मामला अधर में लटका हुआ है. ऐसे में फिलहाल यह तय नहीं कि, नई नियुक्तियां चुनाव से पहले ही हो जायेगी, या फिर चुनाव निपटने के बाद नई नियुक्तियोें की प्रक्रिया निपटाई जायेगी, लेकिन इन दोनोें पदों पर नये चेहरों को मौका दिये जाने की गतिविधियां अभी से तेज हो गई है. जिसके लिए भाजपा के अंदरखाने में जमकर लॉबींग व फिल्डींग हो रही है. शहराध्यक्ष पद के लिए तो भाजपा के पास दावेदारों की कोई कमी नहीं है और भाजपा के कई पदाधिकारी इस पद पर अपना नंबर लगाने हेतु कतार में है. परंतु जिलाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद के लिए केवल इक्का-दुक्का नामोें की ही चर्चा है. ऐसे में भाजपा को जिले के ग्रामीण इलाकों में अपनी मजबूत पकड बनाने के लिए किसी दमदार और चर्चीत चेहरे की जरूरत है. ऐसे में माना जा रहा है कि, अब तक शिवसेना में जिला प्रमुख जैसे पद पर रहते हुए जिले के केवल एक-चौथाई हिस्से को संभालनेवाले, लेकिन पूरे जिले के कार्यकर्ताओं पर अपनी मजबूत पकड रखनेवाले नेता को भाजपा में प्रवेश कराने के साथ ही उसे भाजपा के ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद का जिम्मा भी सौंपा जा सकता है. जिसे लेकर परदे के पीछे से हलचलें काफी तेज हो गई है और इस बारे में बहुत जल्द कोई खुलासा हो सकता है.
* जिले में भी फूटी है शिवसेना
बता दें कि, राज्यस्तर पर शिवसेना में हुई दोफाड का असर कुछ हद तक अमरावती जिले में भी देखा गया. जब जिले के पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल तथा उनके बेटे व पूर्व विधायक अभिजीत अडसूल उध्दव ठाकरे गुट का साथ छोडकर शिंदे गुट में चले गये. इसके अलावा अडसूल पिता-पुत्र के समर्थक रहनेवाले शिवसेना के दर्यापुर तहसील प्रमुख गोपाल अरबट तथा पूर्व जिप उपाध्यक्ष दत्ता ढोमणे ने अपने कई समर्थकों के साथ उध्दव ठाकरे गुट को छोडकर शिंदे गुट में प्रवेश किया. वही शिवसेना के जिला प्रमुख सुनील खराटे व राजेश वानखडे तथा महानगर प्रमुख पराग गुडधे सहित उनकी कार्यकारिणी के सभी पदाधिकारी एवं स्थानीय जनप्रतिनिधि अब भी उध्दव ठाकरे गुट के साथ बने हुए है. जिसके चलते फिलहाल तक तो अमरावती शहर व जिले में शिवसेना को कोई खास नुकसान हुआ दिखाई नहीं दे रहा.
* विधानसभा चुनाव तक बदल सकता है चित्र
यहां यह याद दिलाया जा सकता है कि, वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लडने के बाद इसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के समय शिवसेना और भाजपा ने अलग-अलग होकर एक तरह से एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लडा था, लेकिन अमरावती जिले के आठ निर्वाचन क्षेत्रों में से किसी भी सीट पर सेना प्रत्याशी को जीत नहीं मिल सकी, जबकि उस समय भाजपा ने आठ में से पांच सीटों पर चुनाव जीता था. वहीं वर्ष 2019 में भाजपा और सेना ने एक बार फिर एकसाथ आते हुए युती के तौर पर चुनाव लडा. जिसमें अमरावती जिले की आठ में से पांच सीटें भाजपा और तीन सीटें शिवसेना के हिस्से में गई. चुनाव पश्चात भाजपा को पांच में से केवल एक सीट पर जीत मिली. वहीं शिवसेना तीनों ही सीटों पर चुनाव हार गई थी. अब आगामी वर्ष 2024 में एक बार फिर विधानसभा का चुनाव होना है, चूंकि उध्दव ठाकरे गुटवाली शिवसेना और भाजपा के बीच इन तीन-चार वर्षों के दौरान इतनी अधिक खटास और दूरी आ गई है, यह दुबारा इन दोनों दलों की युती होना संभव नहीं है. वही शिंदे गुट द्वारा भाजपा के साथ मिलकर उध्दव गुटवाली शिवसेना सहित कांंग्रेस व राकांपा के खिलाफ चुनाव लडा जायेगा. ऐसे में राज्य के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल जायेंगे. साथ ही अगली विधानसभा में कुछ अलग ही चित्र दिखाई देने की उम्मीद है.