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पिता के बाद अब दोनों भाइयों का जीवन संघर्ष

20 वर्षो से फुटपाथ पर व्यवसाय कर रहे हैं विक्रम बरसैया

* पोस्टर स्टाल से हुई थी शुरूआत
* अमरावती मंडल सडक किनारे जिन्दगी
अमरावती/ दि. 9 – देशभर में पढे लिखे युवक नौकरी के अभाव में अपने परंपरागत व्यवसाय करने का प्रयत्न करते हैं. कुछ युवाओं ने नये तरीके खोज निकाले. अंबानगरी में भी अनेकानेक युवक और कुछ मामलों में युवतियां भी नये जमाने की आंटरप्रेन्योर बनी हैं. नये क्षेत्र में मेहनत कर सफलता प्राप्त कर रही है. ऐसे लोगों के संघर्ष और सडक किनारे उनके व्यवसाय की दास्तां अमरावती मंडल अपने पुराने स्तंभ ‘सडक किनारे जिन्दगी’ को पुन: प्रारंभ करने का प्रयत्न कर रहा है. पहली कडी में प्रस्तुत है प्रभात टॉकीज के ठीक सामने पर्स, बेल्ट, कैप बेचने का धंधा करनेवाले संजय और विक्रम बरसैया भाइयों की स्टोरी.
* पिता ने किया था प्रारंभ
विक्रम उर्फ विक्की बरसैया ने बताया कि उनके पिता रामकिसन बरसैया ने करीब 6 दशक पहले स्थान पर व्यवसाय शुरू किया था. वे पोस्टर की दुकान लगाते थे. उस दौर में पोस्टर की विक्री भी खूब होती थी. देवी देवताओं के अलावा सिने स्टार्स के पोस्टर खूब बिकते थे.
* कालांतर में किया बदलाव
संजय और विकी बरसैया ने समय के साथ व्यवसाय में बदल किया. वे युवाओं की पसंद को ध्यान में रखकर बेल्ट, पर्स, कैप और कटलरी तथा स्टेशनरी सामान की विक्री करते हैं. इसे रिस्पॉन्स भी अच्छा रहने की बात विक्की ने कही. उन्होंने बताया कि कई ग्राहक मुख्य रूप से उनसे ही बेल्ट, पर्स, कैप और अन्य वस्तुएं खरीदते हैं.
* सबेरे जल्दी होती दिनचर्या शुरू
विक्की ने बताया कि सडक किनारे दुकान ठेले पर सजानी पडती है. इसलिए सबेरे 8 बजे से वे काम में जुट जाते हैं. प्रभात टॉकीज के बिल्कुल सामने उनकी दुकान सजाने में उन्हें डेढ से दो घंटे लगते हैं. रात 10.30 बजे तक दुकानदारी रहती है फिर उसे समेटना पडता है. माल की साज संभाल आवश्यक है. उसे करीने से बक्सों में भरकर गोदाम तक ले जाना पडता हैं. बडा मेहनत का काम है. सर्दी, गर्मी, बरसात की परवाह किए बगैर जीवन संघर्ष चल रहा है. चलाना पडता है.
* गर्मियों में सीजन, सहनी पडती धूप
विक्की बरैसया बताते हैं कि परिवार में बडे भाई संजय और बहन बहनोई भी है. उनके बडे भाई के दो पुत्र और उनका एक पुत्र है. कक्षा 12 वीं तक शिक्षित विक्की की मेहनत और लगन की सभी परिचित सराहना करते हैं. उन्होंने बताया कि गर्मियों में लग्नसरा का सीजन रहता है. उनकी भी ग्राहकी होती है. इसलिए कितनी भी तेज धूप हो उन्हें तो धूप से बचाव का उपाय कर ग्राहकी करनी पडती है.
* लोकल और बाहर गांव खरीदारी
ऑनलाइन के इस दौर में भी अपनी मेहनत के बूते गत कुछ दशकों से बरसैया परिवार दुकान चला रहा है. विक्की बताते हैं कि माल की खरीदारी वे कभी कभार लोकल थोक दुकानदारों से करते हैं. मुंबई और गुजरात भी जाकर स्वयं देखकर माल लाते हैं. दुकानों की तुलना में थोडा सस्ता देना पडता है. तभी ग्राहक आकर्षित होते हैं. इससे मार्जिन सीमित हो जाता है. सीमित मार्जिन में सडक किनारे छोटा मोटा व्यवसाय कर विक्की और बडे भाई संजय घर परिवार संभाले हुए हैं.

 

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