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मराठा समाज के संयम से न खेले आघाडी सरकार

पूर्व पालकमंत्री प्रवीण पोटे पाटील ने दी चेतावनी

अमरावती/दि.12- केंद्र सरकार द्वारा संविधान में संशोधन करते हुए मराठा समाज को आरक्षण देने का अधिकार राज्य सरकार के जिम्मे सौंपा गया है. जिसके बाद आघाडी सरकार ने तुरंत ही मराठा समाज को आरक्षण देने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए थी, किंतु आघाडी सरकार मराठा समाज को आरक्षण देने की इच्छूक नहीं है. यहीं वजह है कि, आघाडी सरकार द्वारा टाईमपास की नीति पर काम किया जा रहा है. इस आशय का आरोप लगाने के साथ ही पूर्व जिला पालकमंत्री तथा विधान परिषद सदस्य प्रवीण पोटे पाटील ने चेतावनी दी है कि, आघाडी सरकार मराठा समाज के संयम और सहनशीलता की परीक्षा न ले, अन्यथा सरकार को मराठा समाज के जबर्दस्त रोष का सामना करना पडेगा.
पूर्व पालकमंत्री प्रवीण पोटे पाटील ने यहां जारी प्रेस विज्ञप्ती में कहा है कि, केंद्र सरकार ने संसद के अधिवेशन में संविधान संशोधन करते हुए मराठा समाज को आरक्षण देने का अधिकार राज्य सरकार को दिया है. जिसके बाद राज्य सरकार ने मराठा समाज को आरक्षण देने हेतु तत्काल सभी कानूनी प्रक्रिया शुरू करना चाहिए था. किंतु अब आघाडी सरकार 50 फीसदी की अधिकतम सीमा को लेकर अड गई है. जिसका सीधा मतलब है कि, आघाडी सरकार मराठा समाज को आरक्षण देने की इच्छूक नहीं है, बल्कि अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने की बजाय केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए टाईम पास करने की नीति पर काम कर रही है. पूर्व पालकमंत्री प्रवीण पोटे के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण के बारे में अपना फैसला सुनाते हुए गायकवाड आयोग की रिपोर्ट को नकारा है. इस स्थिति में राज्य पिछडावर्गीय आयोग द्वारा मराठा समाज के पिछडा रहने के संदर्भ में नये सिरे से रिपोर्ट देने तक मराठा समाज को आरक्षण देना संभव नहीं है. इसमें 50 फीसदी की अधिकतम सीमा का सवाल ही उपस्थित नहीं होता. ऐसे में आघाडी सरकार ने सबसे पहले राज्य पिछडावर्गीय आयोग से मराठा समाज के पिछडा रहने की रिपोर्ट भेजनी चाहिए. ताकि उस आधार पर मराठा आरक्षण का कानून बनाया जा सके. जिसके बाद 50 फीसद की आरक्षण सीमा पर बात की जानी चाहिए. किंतु आघाडी सरकार सबसे पहले 50 फीसद आरक्षण सीमा के मसले को आगे करते हुए अपनी जिम्मेदारी से बचना चाह रही है.
वरिष्ठ भाजपा नेता व विधान परिषद सदस्य प्रवीण पोटे पाटील ने याद दिलाया कि, तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्ववाली भाजपा सरकार ने जब कानून बनाकर मराठा समाज को आरक्षण दिया था, तब भी 50 फीसद की अधिकतम मर्यादा थी, लेकिन उसमें से अपवादात्मक स्थितिवाले मुद्दों के आधार पर फडणवीस सरकार ने न केवल मराठा समाज को आरक्षण दिया, बल्कि उसे हाईकोर्ट में भी टिकाये रखा. किंतु बाद में महाविकास आघाडी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सही ढंग से मराठा समाज का पक्ष नहीं रखा. जिसकी वजह से यह आरक्षण खारिज हो गया. ऐसे में आघाडी सरकार को चाहिए कि वह अगर-मगर की नीति को छोडकर मराठा समाज को आरक्षण देें और हमारी सहनशीलता की परीक्षा न ले. अन्यथा सरकार को इसके बेहद गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

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