विधान परिषद में सभी दलों को मौका
कांग्रेस के दो, राकांपा भाजपा एक-एक तथा एक निर्दलीय
* शिंदे-फडणवीस सरकार को माना जा रहा तगडा झटका
अमरावती/दि.3- उच्च सदन अर्थात विधान परिषद की प्रतिष्ठापूर्ण लडाई में छह माह पहले सत्तारुढ हुई शिंदे-फडणवीस सरकार को करारा झटका लगा है. यह गठजोड पहले भी मुंबई अंधेरी के विधानसभा उपचुनाव में मात खा गया था. इस बार तो भाजपा को एकमात्र सीट पर कोकण में सफलता मिली. उसने अपनी अमरावती और नागपुर की दोनों सीटें गंवा दी. दोनों ही स्थानों पर उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का रुतबा दांव पर था. नागपुर जहां उनका गृहक्षेत्र है वहीं फिलहाल वे अमरावती और अकोला जिले के पालकमंत्री भी हैं.
विधान परिषद की पांच सीटों पर चुनाव हुए. औरंगाबाद में राकांपा के विक्रम काले ने लगातार चौथी बार बाजी मार ली. इसके अलावा चारों स्थानों पर परिवर्तन की जोरदार बयार चली है. नाशिक हो या नागपुर, अमरावती हो या कोकण मतदाताओं ने नए प्रत्याशियों पर विश्वास दर्शाया है. चारों स्थानों पर नए युवा उम्मीदवार चुने गए. कोकण में भाजपा के ज्ञानेश्वर म्हात्रे ने शेकाप के बाबाराव पाटिल को मात दी. इसे शिंदे गुट की सफलता अधिक माना जा रहा है. यहां शिंदे गुट के दीपक केसरकर सहित नेता प्रभाव रखते है.
नाशिक में भाजपा ने ऐन नामांकन दाखिल करने से पहले खेला किया. सत्यजीत तांबे के निर्दलीय रहने पर भी पार्टी ने समर्थन घोषित किया. जिससे अपने पिता सुधीर तांबे की विरासत को सहजने के अंदाज में सत्यजीत ने विजय दर्ज की. तभी कांग्रेस युवक प्रदेशाध्यक्ष रहे तांबे ने शिवसेना समर्थित शुभांगी पाटिल को हराया. एक प्रकार से यहां बदलाव हुआ.
भाजपा को नागपुर में सबसे बडा धक्का लगा. जब उसके समर्थित शिक्षक विधायक नागो गाणार मविआ के सुधाकर अडबोले से बुरी तरह पराजित हो गए. नागपुर से ही प्रदेशाध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री रहने से बीजेपी को यह करारा झटका बताया जा रहा है. ऐसा ही धक्का स्नातक वोटर्स ने अमरावती मेंं भी दिया. पार्टी के दो बार विधायक रहे डॉ. रणजीत पाटिल नवोदित धीरज लिंगाडे से मात खा गए. इसके साथ स्कोर राकांपा 1, कांगे्रस 2, भाजपा 1 और निर्दलीय 1 रहा. किंतु आने वाले समय में राजनीतिक समीकरण पर इन चुनाव का असर देखने मिलेगा, ऐसा मानने वाले राजनीतिक जानकारों की संख्या अधिक है. उनका प्राथमिक आंकलन है कि कांग्रेस के विश्वास में उच्च सदन की चुनावी सफलता से इजाफा होगा. जानकारों ने यह भी कहा कि पुरानी पेंशन योजना का मुद्दा हावी रहा.