जिले में राकांपा के तमाम बडे नेता अब भी शरद पवार के साथ
ग्रामीण क्षेत्र के सभी पदाधिकारी व कार्यकर्ता शरद पवार के समर्थन में
* अजित पवार गुट का शहरी क्षेत्र में खोडके की वजह से अस्तित्व
* पार्टी में दो फाड होने के बावजूद जिले में शरद पवार का एकतरफा वर्चस्व
अमरावती/दि.4 – दो दिन पहले राकांपा नेता अजित पवार ने पार्टी के 54 में से 40 विधायकों को अपने साथ लेकर राज्य की शिंदे-फडणवीस सरकार से हाथ मिला लिया था. इसके साथ ही राकांपा में दो फाड वाली स्थिति बन गई. जिसके तहत एक गुट पार्टी सुप्रीमो शरद पवार व उनकी बेटी सुप्रीया सुले के पक्ष में खडा दिखाई दे रहा है. वहीं दूसरा गुट अजित पवार के साथ खडा है. हालांकि फर्क यह है कि, अजित पवार के साथ पार्टी के 40 विधायक ही खडे दिखाई दे रहे है. वहीं शरद पवार गुट के साथ यद्यपि 54 में से अब केवल 14 विधायक ही बचे हुए है, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय व प्रदेश पदाधिकारियों के साथ-साथ पूरे राज्यभर में पार्टी के शहरी एवं जिला यानि ग्रामीण क्षेत्रों के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की फौज इस समय शरद पवार के साथ है. ऐसे में यद्यपि अजित पवार गुट द्बारा विधानमंडल में खुद को असली राकांपा बताया जा रहा है. परंतु जमीनी हकीकत यह है कि, राकांपा पर पार्टी सुप्रीमो शरद पवार की अब भी काफी मजबूत पकड बनी हुई है. जिससे अमरावती जिला भी अछूता नहीं है.
बता दें कि, जिस समय शरद पवार कांग्रेस के बडे नेता हुआ करते थे. तब भी महाराष्ट्र में उन्हें मानने वालों का एक बडा वर्ग हुआ करता था तथा पार्टी में उनके समर्थक नेताओं की भी अच्छी खासी संख्या थी. यहीं वजह है कि, जब वर्ष 1999 में कांग्रेस से अलग होकर जब शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था, तो उस समय पवार के साथ कई नेताओं ने कांग्रेस छोडकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में प्रवेश कर लिया था और विगत 24 वर्षों के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र में अच्छी खासी ताकत बनकर उभरी. पूरी तरह से शरद पवार के नियंत्रण में रहने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कभी भी शक्ति केंद्र का विभाजन नहीं हुआ. यही वजह है कि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में रहने वाले प्रत्येक नेता, पदाधिकारी व कार्यकर्ता को पार्टी सुप्रीमो शरद पवार का कट्टर समर्थक माना जाता है. हालांकि राकांपा में शरद पवार के भतीजे अजित पवार की मौजूदगी भी विगत लंबे समय से है और अजित पवार की तेज तर्रार व आक्रामक भूमिका को पसंद करने वाली राकांपा नेताओं का भी एक वर्ग है. इसके अलावा अजित पवार को राजनीतिक तौर पर बेहद महत्वाकांक्षी व्यक्ति माना जाता है. लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी में चाचा-भतीजे के अलग गुट रहने वाली स्थिति कभी नहीं बनी. परंतु अब पार्टी ने अजित पवार के बगावती तेवर की वजह से सीधे दो फाड वाले हालात बन गए है. जिसके चलते राकांपा के राजनीतिक भविष्य को लेकर आकलन किया जा रहा है.
जहां तक अमरावती जिले का सवाल है, तो अमरावती जिले में पूर्व मंत्री हर्षवर्धन देशमुख, जिप की पूर्व अध्यक्षा सुरेखा ठाकरे, पूर्व मंडी संचालक व राकांपा के जिलाध्यक्ष सुनील वर्हाडे, जिप के पूर्व उपाध्यक्ष संतोष महात्मे तथा राकांपा महिला आघाडी की जिलाध्यक्ष संगीता ठाकरे को पार्टी के स्थानीय बडे नेताओं में गिना जाता है. इसमें से शिवाजी शिक्षा संस्था के अध्यक्ष रहने वाले हर्षवर्धन देशमुख कांग्रेस के जमाने से शरद पवार के साथ ही रहे है और शरद पवार के मुख्यमंत्री रहते समय हर्षवर्धन देशमुख उनकी कैबिनेट में मंत्री के तौर पर ही शामिल थे. वहीं जिप के पूर्व सदस्य एवं राकांपा के जिलाध्यक्ष सुनील वर्हाडे का पूरा परिवार लंबे समय से कांग्रेसी रहने के साथ-साथ शरद पवार का समर्थक रहा और पवार द्बारा नई पार्टी का गठन किए जाने पर सुनील वर्हाडे ने भी पवार के नेतृत्व पर विश्वास जताते हुए कांग्रेस छोडकर राकांपा में प्रवेश किया था, जो अब भी पूरी तरह से शरद पवार के साथ बने हुए है. जिप की पूर्व अध्यक्षा सुरेखा ठाकरे को शरद पवार की सुपुत्री व सांसद सुप्रिया सुले गुट का माना जाता है. सुरेखा ठाकरे भी लंबे समय से शरद पवार के साथ जुडी हुई है तथा इस समय भी वे पार्टी नेतृत्व के साथ दिखाई दे रही है. इसके अलावा राकांपा की महिला जिलाध्यक्ष संगीता ठाकरे, पार्टी के वरिष्ठ नेता व राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख की नजदीकी रिश्तेदार है. चूंकि अनिल देशमुख का शुमार शरद पवार के बेहद निकटतम व विश्वास पात्र नेताओं में होता है. ऐसे में संगीता ठाकरे भी पूरी तरह से शरद पवार गुट के साथ बनी हुई है. जहां तक जिप के पूर्व उपाध्यक्ष संतोष महात्मे का सवाल है. तो भले ही युवा नेता होने के नाते उनका झुकाव कई बार अजित पवार की ओर दिखाई देता रहा. लेकिन जिस तरह से संतोष महात्मे और सुरेखा ठाकरे के बीच जिले के राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में आपसी तालमेल व समन्वय के साथ काम किया जाता है. उसे देखते हुए माना जा सकता है कि, संतोष महात्मे भी शरद पवार गुट के साथ ही बने रहेंगे. यानि जिले के तहसील एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी 90 से 95 फीसद तक राकांपा सुप्रीमो शरद पवार का ही प्रभाव और असर दिखाई दे रहा है.
जहां तक अमरावती के शहरी क्षेत्र का सवाल है, तो अमरावती शहर में विगत करीब 20-25 वर्षों से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व संजय खोडके द्बारा किया जा रहा है, जो हमेशा से ही शरद पवार की बजाय अजित पवार की ओर ज्यादा झुकाव रखते आए है और इस समय भी संजय खोडके पूरी तरह से अजित पवार गुट के साथ है. यही वजह है कि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष जैन पाटिल ने पार्टी सुप्रीमो शरद पवार के आदेश पर अमल करते हुए संजय खोडके को प्रदेश उपाध्यक्ष पद से निलंबित करने के साथ-साथ पार्टी से निष्कासित भी कर दिया है. अमरावती में संजय खोडके के समर्थकों को कुछ हद तक अजित पवार गुट का समर्थक कहा जा सकता है. लेकिन उनमें से कितने लोग वाकई खोडके के प्रति समर्पित रहते हुए अंतत: अजित पवार गुट के साथ बने रहते है और कितने लोग पार्टी नेतृत्व के प्रति समर्थन जारी रखते हुए शरद पवार के साथ बने रहते है. यह देखना दिलचस्प होगा. याद दिला दे कि, संजय खोडके को इससे पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव दौरान भी पार्टी नेतृत्व का आदेश नहीं मानने के चलते पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. यद्यपि उस समय खोडके समर्थकों ने खोडके के पक्ष में जमकर आवाज उठाई थी. लेकिन राजनीति की बदलती हवा के बीच कई खोडके समर्थक आगे चलकर अलग-अलग दलों व नेताओं के गुटों में शामिल हो गए थे. जिसकी वजह से किसी समय अमरावती शहर और स्थानीय महानगरपालिका पर एकछत्र राज करने वाले संजय खोडके के समर्थकों का गुट पूरी तरह से तितर-बितर हो गया था. पश्चात वर्ष 2019 में एक बार फिर राकांपा में वापिस लौटने के बाद संजय खोडके ने अमरावती शहर में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को नये सिरे से खडा करने का प्रयास करना शुरु किया था. जिसमें वे काफी हद तक सफल भी हुए थे. परंतु अब एक बार फिर संजय खोडके ने पार्टी नेतृत्व के प्रति बगावती तेवर अपनाए है और अजित पवार द्बारा की गई बगावत का समर्थन किया है. जिसके चलते उन्हें एक बार फिर पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. ऐसे में अब यह देखना भी दिलचस्प होगा कि, संजय खोडके द्बारा अमरावती शहर सहित जिले में अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को किस तरह से खडा किया जाता है. विशेष उल्लेखनीय है कि, राकांपा में प्रदेश उपाध्यक्ष रहने के साथ-साथ संजय खोडके को अमरावती संभाग का समन्वयक भी नियुक्त किया गया था और उन पर पूरे संभाग में पार्टी को संगठित रखने का जिम्मा सौंपा गया था. इन तमाम पदों से संजय खोडके निलंबित होने के साथ ही पार्टी से निष्कासित भी हो चुके है. ऐसे में अब अपना अस्तित्व बनाए रखने के साथ-साथ अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए संजय खोडके द्बारा कौन सा कदम उठाया जाता है. इसकी ओर सभी का ध्यान निश्चित रुप से लगा रहेगा.