अमरावती/दि.2 – विगत वर्ष खरीफ सीझन के दौरान हुई अतिवृष्टि की वजह से सभी तरह की फसलों का उत्पादन घटा. जिसमें तिलहनों का भी समावेश था. वहीं अब पेट्रोल व डीजल की कीमतों में लगातार हो रही वृध्दि की वजह से मालढुलाई की दरे बढ गई है. जिसका सीधा परिणाम खाद्यान्न सहित तेलों के दामों पर पडा है और रोजाना प्रयोग में लाये जानेवाले तेलों के दाम आसमान छू रहे है. ऐसे में अब छौंक-बघार करने के साथ-साथ मंदिर में तेल का दिया लगाना भी काफी महंगा हो चला है.
बता दें कि, इन दिनों सब्जी बनाने तथा छौंक-बघार करने के काम में सोयाबीन तेल का सर्वाधिक प्रयोग होता है. साथ ही आर्थिक रूप से संपन्न लोग फल्ली तेल व जवस तेल का भी प्रयोग करते है. किंतु गत वर्ष हुई अतिवृष्टि के चलते सोयाबीन के साथ-साथ अन्य फसलों का भी बडे पैमाने पर नुकसान हुआ. वहीं अन्य देशों में भी तिलहनों का उत्पादन घट गया. अत: वहां से भी उंची दरों पर तेल आयात करना पड रहा है. ऐसे मूें इस वर्ष महंगाई अपेक्षा से कहीं अधिक बढ गई है. वहीं दूसरी ओर कोविड संक्रमण काल की वजह से लोगों की आय व रोजगार बुरी तरह प्रभावित हुए है. ऐसे में आय के घटते स्त्रोत व लगातार बढती महंगाई की वजह से लोगों का जीना मुहाल हो गया है.
पाम तेल का हो रहा जमकर प्रयोग
इंडोनेशिया व मलेशिया जैसे देशों से पाम तेल का भारत में आयात किया जाता है और खाद्यतेलों के भाव बढने की वजह से कई होटलों में जमकर पाम तेल का प्रयोग होने लगा है. ऐसे में अब पाम तेल के भी दाम बढने लगे है.
विदेशों से होनेवाला आयात भी घटा
भारत में प्रति वर्ष ब्राझील व अर्जेंटीना जैसे देशों से बडे पैमाने पर सोयाबीन की आवक होती है, ताकि तेल संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके. किंतु इस वर्ष विदेशों में भी सोयाबीन की उपज काफी कम हुई है. ऐसे में वहां से आयात काफी कम हो रहा है. साथ ही साथ वहां पर भी सोयाबीन की दरें काफी अधिक है. ऐसे में जगह से ही भाव अधिक रहने के चलते तेलों की दरों में उछाल आने लगा है.