अमरावती

हेल्दी रिलेशनशीप के लिए हमेशा दीजिए बड़ों को मान व छोटों को मन

अंबापेठ जैन उपाश्रय में परम विभूतिजी महासतीजी के बोध वचन

अमरावती/ दि.12 – श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ अंबापेठ के प्रांगण में राष्ट्रसंत परम गुरुदेव श्री नम्रमुनि महाराज साहेब के आज्ञानुवर्ती पूज्य श्री परम समाधिजी महासतीजी, पूज्य श्री परम ऋजुतीजी महासतीजी, पूज्य श्री परम विभूतिजी महासतीजी के पावन सानिध्य में आयंबिल ओली पर्व के चतुर्थ दिन ‘मेरा परिवार प्रभु का परिवार’ विषय पर प्रवचन माला का प्रारंभ करने से पूर्व ही परम महासतीजी के मार्गदर्शन से सेवकों व्दारा उपाश्रय में उपस्थित परिवारों को साथ-साथ बैठाया गया था.
दादा-दादी से लेकर पुत्र-पुत्रवधु , पोता-पोती, पति-पत्नी सबको परिवार के साथ धर्म श्रवण करवाते हुए परम महासतीजी ने कहा कि अभी जैसे समर जीवन चल रहा है तो आप गर्म वस्तुएं उपयोग में लेंगे या ठंडी वस्तुएं? परिवारों द्वारा उत्तर दिया गया कि ठंडी वस्तुएं. तब परम महासतीजी ने कहा कि जिस प्रकार ऋतुओं के परिवर्तन के अनुसार हम अपने जीवन, जीवन शैली को एडजस्ट करते हैं, ठीक उसी तरह हम अपने घर, परिवार में ऋतुओं के सीजन को पहचानना सीखे. हमारे घर में उदासीनता चल रही है या प्रसन्नता, सब खुश हैं या खिन्न. मनोभाव को जाने समझे, परिवार में कलह क्लेश ना हो, अतः स्वजनों के चेहरे के सीजन को पहचानों और उस अनुसार व्यवहार करों तो आपका परिवार भी प्रभु का परिवार बन सकता है. कभी-कभी नया कुछ सीख लेने का, आसानी से चीजें पा लेने का आग्रह अहंकार का कारण बन जाता है और हम बात-बात पर स्वजनों का अनादर कर देते हैं. अतः ऐसे अहंकार को त्याग दें. बहुत बार बच्चों को अपने मन का करना होता है और दादा-दादी के हस्तक्षेप करने पर उनसे कह देते हैं अरे, अरे रहने दो आपको यह कुछ नहीं आएगा. यही बात आदर के साथ करें तो परिवार बड़े बुजुर्गों का मान भी रह जाएगा और प्रेम भी बढ़ेगा. बहुत बार बच्चे घर की सीढ़ियों से उतरते वक्त जल्दबाजी में उतर जाते हैं और घर के बड़े बुजुर्ग भी उसी समय उतर रहे होते हैं उस समय जल्दबाजी में उन्हें ठोकर लग जाती है, तब बच्चे बोल देते हैं, देखकर चलिए, एक तो गलती खुद की और ऊपर से वास्तव में उस वक्त सॉरी बोलना तो दूर, दो बातें सुनाना क्या योग्य है? हेल्दी रिलेशनशीप के लिए हमेशा दीजिए बड़ों को मान और छोटो को मन. परिवार में छोटों ने भी बड़ों की सलाह, सजेशन प्यार से सुन लेने चाहिए, क्योंकि बड़े अपने जीवन के अनुभव से उन्हें प्रेरित करते हैं. परिवार में जो व्यक्ति बड़ों की बात जी कहकर सुन लेते हैं, उन्हें जीवन में कभी अनादर नहीं मिलता. छोटे भी अपना कोई भी डिसीजन परिवार के साथ एक हेल्दी डिस्कशन करके लें तो वे कभी भी राँग जायरेक्शन में नहीं जाएंगे. संसारी संसारी स्वजन से मिलते हो तब आप दो की बात ज्यादा करते हो कि किसी तीसरे की बात ज्यादा करते हो? यदि तीसरे की बात ज्यादा करते हो तो परनिंदा के कर्म बंधनों से बचिए और इस सूत्र को स्मरण रखे, इस कान से उस कान और चेहरे पर मुस्कान. संबंध स्वार्थ पर टीके होते हैं. संबंध इस भव के होते हैं. अतः परिवार में बन सके तो धर्म स्वजन बने ताकि भव तक जाए जैसे कि प्रभु नेम और राजुलजी धर्म स्वजन बनें तो भगसागर से तर गए. आओ हम भी अपने परिवार को प्रभु का परिवार बनाएं और भवसागर से पार पाएं. रविवार को अंबापेठ उपाश्रय में छोटों ने बड़ों का चरण पूजन और बड़ों ने छोटों का चरण पूजन किया. सबको सॉरी कहकर अदभुत दृश्य के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.

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