अमरावती

अमर शहीद भगत कंवर रामजी की 137 वीं जयंती पर कोटी-कोटी शत-शत नमन

13 अप्रैल को सिंध के ऐसे संत महापुरुष अमर शहीद संत कंवररामजी की जयंती है जो त्याग, तपस्या की प्रतिमूर्ति जीवन के मर्ग को जानने वाले ऋषि दया के सागर दीन दुखियों, विकलांगों के मसीहा थे. उनके मुख मंडल पर ऋषि सा तेज झलकता था. वहीं उनके नेत्रों से नूर बरसता था. मानस सेवा ही उनका मुख्य उद्देश्य था नेत्रहीनों, रोगियों की सेवा करना अपने हाथों से करके वे स्वयं को धन्य मानते थे. वे अहंकार, काम, क्रोध से सदैव दूर रहने वाले संत थे. सेवा के क्षेत्र में संत कंवरराम साहेब का नाम सर्वोच्च स्थान पर आता है. आपके परोपकारी एवं आध्यात्मिक जीवन ने समाज को नई दिशा प्रदान की है. सिंधु की पावन भूमि अनगिनत साधु, संतो एवं दरवेश की जन्मभूमि रही है. अमर शहीद संत कंवररामजी का जन्म भी सिंध की भूमि पर ही हुआ है मृदुभाषी संत कंवररामजी बचपन से ही साधु स्वभाव के थे. उनके मन में कभी अभिमान, कटूता, छल,कपट या लोभ, लालच जन्म नहीं ले सकी संतजी की बोलचाल अत्यंत सरल थी. सफेद खादी की धोती, कुर्ता कंधे पर गमछा, सिर पर गोल टोपी या पगडी, पैरों में जैसलमरी जूती धारण करते थे. संत कंवररामजी ने सिंधी लोक संगीत के माध्यम से जीवनभर प्रभु भक्ति में लीन होकर संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया. गायन के समय प्रभु भक्ति में लीन होकर नृत्य करते हुए श्रद्धालुओं को चैतन्य महाप्रभु का सजीव दर्शन कराते थे. उनके हृदय में मधुरता का झरना था उनकी आवाज सुरीली व कोमल थी. गायन दर्द व तडप थी उनकी आवाज में अत्याधिक मिठास थी. इस महापुरुष की अमर वाणी से भारत की सत्ता की अमर वाणी सिंध के गांव-गांव, शहर-शहर में पहुंची और गूंजी. संत कंवररामजी ने अपने भक्ति के कार्यक्रम के माध्यम से सत्य, अहिंसा, सांप्रदायिक सोहद्र विश्व बंधुत्व ईश वंदना मानवीय प्रेम, समता व नैतिक आचरण का संदेश आम और खास तक पहुंचाया. 1 नवंबर 1939 का दिन मानवता इतिहास के लिए अति कलंकित दिन था. उस दिन सदैव सामाजिक समरसता, एकता व भाईचारे का प्रचार करने वाले सांप्रदायिक सद्भाव का प्रचार करने वाले संत का कट्टरपंथी लोगों ने एक षडयंत्र रच कर उनकी हत्या कर दी. इस हत्या के पीछे सिंध के एक कट्टरपंथी पीर का हाथ था.भारत के कोने-कोने में संत कंवररामजी की स्मृती में सिंधु जनों ने सामाजिक संगठनों ने सेवार्थ मानव कल्याण केंद्र, गौशाला, धर्मशालाएं, शिक्षण संस्थाएं, अस्पताल, विश्रामगृह उनकी स्मृति में स्थापित किए हैं. भारत का कोई ऐसा नगर नहीं होगा जहां सिंधी निवास करते हो वहां संत भगत कंवररामजी की स्मृति में स्मारक का निर्माण नहीं किया गया हो. कट्टरपंथियों ने संतजी की हत्या तो कर दी परंतु उनके व्दारा दिए गए संदेश को वे आज भी समाप्त नहीं कर पाए हैं. उनके व्दारा समाज को दिखाए हुए मार्ग पर आज भी समाज उनका अनुसरण करते हुए चल रहा है.
13 अप्रैल को उनकी 137 वीं जयंत पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए
-सिंधु सभा टाइम्स के प्रधान संपादक

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