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शिवसेना नेता और कार्यकर्ताओं में कमाल का असंतोष

उद्धव ठाकरे ने क्यों छोडी अमरावती की सीट?

अमरावती/दि.21 – घोषित लोकसभा चुनाव में अमरावती की प्रतिष्ठापूर्ण किंतु आरक्षित सीट पर इस बार शिवसेना उबाठा का प्रत्याशी नहीं होने की बात शिवसैनिक तो छोडो अमरावती के सामान्य लोगों के भी गले नहीं उतर रही है. शिवसेना यहां से 6 में से 5 चुनाव जीत चुकी है. फिर भी पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा गठजोड में पश्चिम विदर्भ के मुख्यालय जिले अंबानगरी की लोकसभा सीट सहयोगी दल के लिए छोडे जाने का मुद्दा शिवसेना से लेकर वोटर्स तक में चर्चा का बडा विषय बना है. देखा जाये तो पार्टी के नेताओं और सामान्य शिवसैनिकों में उद्धव के फैसले से असंतोष दिखाई पड रहा है.
* सबसे कम फूट
अमरावती न केवल शिवसेना का अभेद्य दुर्ग रहा है. अपितु ठाकरे परिवार के प्रति यहां के लोगों में सदा ही स्नेहयुक्त आदर रहा है. इसी आदर की वजह से लगभग 2 वर्ष पहले हुए बडे विभाजन के बाद भी अमरावती के शिवसैनिक उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे के प्रति स्नेह और आदर के कारण शिंदे गुट में नहीं गये. सभी बडे पदाधिकारी और नेता फेवीकॉल के मजबूत जोड की तरह उद्धव ठाकरे से जुडे रहे. जिले में सबसे कम फूट रही. फलस्वरुप पार्टी मजबूत रही. बैंक घोटाले की मजबूरी के कारण जांच से बचने के लिए अडसूल अवश्य दूसरे पाले में चले गये. उनके अलावा कोई बडा नाम पार्टी से अलग नहीं हुआ.
* विदर्भ में सबसे मजबूत
शिवसेना मुंबई और मराठवाडा के बाद कही सबसे अधिक बलवान है, तो वह अमरावती जिला है. जहां पार्टी के पूर्व सांसद अनंत गुढे से लेकर दिनेश बूब, प्रीति बंड, सुधीर सुर्यवंशी, ज्ञानेश्वर धाने पाटील, श्याम देशमुख, सुनील खराटे, नरेंद्र फिस्के जैसे बडे नेता बने रहे. उबाठा शिवसेना यहां मजबूत रही. जिला संपर्क प्रमुख अरविंद सावंत ने भी यहां दौरे किये. लग नहीं रहा था कि, उबाठा सेना अमरावती से अपना क्लेम छोडेगी. फिर क्या वजह रही कि, उद्धव ठाकरे ने इतना बडा कदम उठा लिया?
* संभाग में अस्तित्व की लडाई
शिवसेना उबाठा के लिए अमरावती संभाग में वैसे भी अस्तित्व की लडाई वर्तमान हालात में कह सकते हैं. वाशिम-यवतमाल की सांसद भावना गवली और बुलढाणा के प्रतापराव जाधव ने उबाठा से अलग रहने का निर्णय किया. इससे भी लग रहा था कि, अमरावती क्षेत्र में उबाठा मशाल पर उम्मीदवार देगी. यहां से उसे अपने कडे प्रतिस्पर्धी को कडी टक्कर देने का बहुत अच्छा मौका था. बुधवार शाम दिनेश बूब के खापर्डे बगीचा कार्यालय के सम्मेलन में सेना नेता और कार्यकर्ताओं का जोश देखते ही बना. अरविंद सावंत ने 4 दिनों पहले उनसे मिलने गये अमरावती के शिवसेना नेताओं के प्रतिनिधि मंडल को ऐसा क्यों कहा कि, तुम्हारी कोई तैयारी नहीं थी, इसलिए सीट छोडी जा रही है?
* 2029 के चुनाव पर भी असर
अगले 2029 के चुनाव तक अमरावती क्षेत्र ओपन होना है. इसलिए वर्तमान चुनाव का प्रभाव अगले बार के चुनाव पर भी हो सकता है. इस बात को भी राजनीतिक दलों को ध्यान में रखना होगा. ऐसे में शिवसेना के नेता और कार्यकर्ताओं की हलचल अस्थिर दिखाई दे रही है. महाविकास आघाडी में कांग्रेस ने अमरावती से बलवंत वानखडे को प्रत्याशी बना दिया है. औपचारित घोषणा मात्र बची है. भाजपा को हराने शिवसैनिक भले ही कांग्रेस के साथ खडे दिखाई दे रहे हैं. फिलहाल तो उबाठा का शिवसैनिक मुंबई से लेकर अमरावती तक पार्टी नेताओं की गलती के कारण अपने को ठगा-सा महसूस कर रहा है.

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