अमरावती

अमरावती की अंबा व एकवीरा देवी को विदर्भ की कुलस्वामिनी का मान

दशहरे पर होगा दोनों देवियों का सीमोल्लंघन

अमरावती-/दि.4 अमरावती की श्री अंबादेवी व श्री एकवीरा देवा को विदर्भ की कुलस्वामिनी के रुप में मान्यता है. अश्विन शुद्ध प्रतिपदा यानि घटस्थापना से लेकर दशहरे तक के 10 दिन संपूर्ण अमरावती का वातावरण उत्साहभरा रहता है. नवरात्रि उत्सव में 10 दिन देवी को संपूर्ण स्वर्णाभूषण चढ़ाये जाते हैं. माता का वह रुप अत्यंत सुंदर होता है.
प्राचीन काल की उदुंबरावती, वह आज की अमरावती ऐसा इस नाम का प्रवास है. उस समय के उमरावती के पास कुंडीनपुर में रुक्मिणी माता के पिता भीष्मक राजा का राज्य था. इच्छा के विरुद्ध विवाह होने से रुख्मिणी अंबादेवी के दर्शन के बहाने आयी थी. उस समय श्रीकृष्ण ने मंदिर के बाहर से ही भातकुली मार्ग से रुख्मिणी का हरण किया. ऐसा यहां पौराणिक संदर्भ है. इसलिए अंबादेवी मंदिर का निश्चित कालखंड ज्ञात नहीं, फिर भी रुक्मिणी हरण की कथानुसार श्री अंबादेवी मंदिर पौराणिक काल से अस्तित्व में होने का संदर्भ है. बावजूद अंबादेवी की मूर्ति पुरातत्व विभाग के अंदाज के अनुसार पांच हजार वर्ष से अधिक पुरानी है. दोनों हाथ गोद पर रखे हुए. पद्मासन में आसनस्थ अर्धोन्मीलित आंखें ऐसी यह मूर्ति है. छत्रपति शिवाजी महाराज के विवाह की राज्याभिषेक की पत्रिका अंबादेवी में आयी थी. ऐसा बताया जाता है. 19 वें शतक के पूर्वार्ध में अंबादेवी की मूर्ति एक छोटे से हेमाडपंथी मंदिर में थी. आगे बड़ा मंदिर बनाया गया. इसके लिए अन्य दानदाताओं की तरह उस समय के गणिकों ने भी उनके गहने दान दिये. यह जानकारी अंबादेवी संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. आनंद पलसोदकर ने दी. दरमियान, दशहरे को एक ही पालखी से अंबादेवी व एकवीरा देवी सीमोल्लंघन के लिए निकलती है. उनकी पालखी के पीछे श्री बालाजी का रथ होता है. यहां सन 2005 से अंबादेवी संगीत महोत्सव शुरु किया गया है. अंबादेवी व एकवीरा देवी संस्थान की ओर से कीर्तन महोत्सव, भागवत सप्ताह, समाजोपयोगी विषय पर व्याख्यान, शास्त्रीय संगीत आदि कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. वहीं अंबादेवी संस्था की ओर से ग्रंथालय, हॉस्पिटल भी चलाये जा रहे हैं.

एकवीरा देवी के मंदिर की स्थापना
17 वें शतक के मध्य में इ. स. 1640 के करीब जनार्दन स्वामी अंबादेवी मंदिर के पास की तत्कालीन नदी के दक्षिण किनारे पर पर्णकुटी बनाकर रहने लगे. हर रोज देवी की पूजा करने के पश्चात अन्न ग्रहण करते थे. ऐसा उनका नियम था. एक बार बारिश के दिनों में नदी में बाढ़ आयी व तीन दिनों तक बाढ़ कम नहीं हुई. जिससे समी को तीन दिन उपवास हुआ. तब जगदंबा के एक दृष्टांतनुसार नदी के पास के कुएं पर की पाषाण जगह पर जनार्दन स्वामी ने एकवारी देवी की प्राणप्रतिष्ठा की. ऐसा कहा जाता है. वहां शंकर पार्वती या नराजन के स्वरुप की भी मूर्ति है. विशेष यह है कि मंदिर के बाहर के कुएं का पानी खारा तो जनार्दन स्वामी द्वारा खोदे गए यहां के ही कुएं का पानी मीठा होने का दावा ही संस्थान द्वारा किया जाता है. दरमियान एकवीरा संस्थान द्वारा भी फिलहाल होमिओपॅथिक अस्पाल शुरु किया गया है. नवरात्रि में निःशुल्क व अन्य समय में अत्यल्प शुल्क में भाविकों को हमेशा भोजन की सुविधा इस संस्थान द्वारा की गई है. यह जानकारी एकवीरा देवी संस्थान के सचिव शेखर कुलकर्णी ने दी.

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