अमरावती

203 साल बाद जगमगाया अंबागेट

पूर्व पालकमंत्री पोटे की पहल आयी काम

  • ऐतिहासिक धरोहर का हुआ जीर्णोध्दार

  • पोटे ने सौंदर्यीकरण के लिए दी 10 लाख रुपए की निधि

अमरावती/दि.25 – अमरावती में विदर्भ की कुलस्वामिनी मां अंबादेवी का मंदिर रहने के चलते इस शहर की ख्याती अंबानगरी के तौर पर भी विख्यात है. साथ ही अंबादेवी मंदिर के पास स्थित है. करीब 200 से अधिक वर्ष पहले बनाए गए परकोट की दीवार और इस दीवार से अंबादेवी की ओर खुलने वाले दरवाजे को अंबागेट का ही नाम दिया गया. जो इन दिनों पूर्व पालकमंत्री प्रवीण पोटे पाटील व्दारा की गई पहल और मनपा आयुक्त व प्रशासक डॉ. प्रवीण आष्टीकर की संकल्पना के चलते जगमगा रहा है और शहर की सुंदरता में चार चांद लगा रहा है.
बता दे कि, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व अध्यात्मिक महत्व रखने वाले अमरावती शहर में 15 अगस्त 1983 को महानगर पालिका की स्थापना हुई. जिसके बाद वर्ष 1992 तक मनपा में प्रशासक राज चला और वर्ष 1992 में पहली बार मनपा के आम चुनाव हुए. इन 40 वर्षों के दौरान अमरावती शहर में विकास का पहिया कुछ इस तरह घुमा कि आज पूरे शहर का चेहरा-मोहरा बदल गया है. जिसके तहत आज शहर में सीमेंट-काँक्रिट से बनी सडकों के साथ ही उडानपुल, भूमिगत गटार योजना, स्वच्छतागृह, मार्केट, बस सेवा, सांस्कृतिक भवन, टाउन हॉल का समावेश है. नए निर्माण के साथ ही पुरातन का जतन करने की सोच के तहत विगत दिनों ऐतिहासिक परकोट का सौंदर्यीकरण किया गया, जिसके चलते करीब 203 साल बाद अंबागेट जगमगा उठा है और अब यह एक पर्यटन पिकनिक स्पॉट बन चुका है.
बता दे कि, पौराणिक और अध्यात्मिक रुप से अत्यंत महत्वपूर्ण अंबानगरी दो हिस्सों में बंटी है. पुरानी अंबानगरी और नए अंबानगरी को मिलकर अमरावती महानगर साकार हुआ है. करीब सवा 200 वर्ष पहले पुराने अमरावती शहर में प्रवेश करने के लिए और दुश्मनों से सुरक्षा होने की दृष्टि से 6 गेट का निर्माण किया गया था. जिसमें जवाहरगेट, अंबागेट, नागपुरी गेट, महाजनपुरा गेट, मदिना गेट, खोलापुरी गेट का समावेश रहा. हर बार विशालकाय गेट खोलने की नौबत ना आए, इसलिए गेट से संलग्न खिडकियां बनाई गई थी. एक-एक खिडकी प्रवेशव्दार ही कहलाती थी. इनमें साबनपुरा में दो, माताखिडकी व टांगापडाव, सक्करसाथ में दो, तारखेडा, तालापुरा, महाजनपुरा में यह खिडकियां थी. समय के साथ बदलाव होते गए और गेट के बाहर शहर का तेजी से विस्तार हुआ. ऐतिहासिक धरोहर भी दम तोडने लगी थी. उस जमाने में पिंडारियों के हमले से बचाव के लिए मजबूत गेट बनाएं थे. हर गेट में दो कमान मगर प्रमुख अंबागेट में तीन कमान बनी हुई है. यह पूरा गेट 31 फिट उंचा और 15.6 फिट चौडा है. लकडी के इस दरवाजे में लोहे के 91 नुकिले आरू बनाए गए है. 1821 में बने गेट का ऐतिहासिक महत्व बरकरार रखने के लिए पालकमंत्री प्रवीण पोटे ने 10 लाख रुपए की निधि अंगागेट के पुर्ननिर्माण हेतु प्रदान की. इस निधि से अंबागेट जगमगा उठा. अंबागेट का करीब दो शतक बाद कायाकल्प हो गया है. अब इस पंक्ति में आनेवाले अन्य गेट और खिडकियों का भी पुर्ननिर्माण अगर होता है, तो शहर की ऐतिहासिक धरोहर का सालोसाल जतन होगा. शहर की सुंदरता को चारचांद लगेंगे. पुरातत्व विभाग के समन्वय के साथ किया गया सौंदर्यीकरण मील का पत्थर साबित हो रहा है.

अतिक्रमण का मकडजाल

गौरतलब है कि अतिक्रमण की समस्या दीमक की तरह विकास और पुरातन धरोहर को खोखला कर रही है. पुरातन ऐतिहासिक गेट और परकोटे को भी अतिक्रमणकारियों ने नहीं बक्शा. अंबागेट के इर्द-गिर्द और ऐतिहासिक परकोटे को अतिक्रमणधारकों ने घेर लिया था. लेकिन अब अतिक्रमण हटाने के बाद अंबागेट का सौंदर्य निखर गया है. उसी तरह अन्य गेट और खिडकियों का अतिक्रमण हटाकर पुर्ननिर्माण किया जाता है, तो शहर की ऐतिहासिक धरोहर का जनत करने में सुविधा होगी.

प्रशासक राज में ही मुमकिन था काम

उल्लेखनीय है कि जब भी किसी विकास कार्य की बात होती है, तो विरोध की बाधा भी बार-बार सामने आती है. मगर इन दिनों मनपा में प्रशासक राज चल रहा है, अत: विरोध की कोई गुंजाईश ही नहीं है. ऐसे में मनपा आयुक्त डॉ. प्रवीण आष्टीकर व्दारा आजादी के अमृत महोत्सव में नया संकल्प कर शहरवासियों को सौगात दी जा रही है. जिसके चलते अंबागेट का कायाकल्प व सौंदर्यीकरण संभव हुआ. इसके पश्चात अब यदि अंबागेट की तरह अन्य पुरातन गेट का पुर्ननिर्माण और सौंदर्यीकरण किया जाता है, तो अमरावती शहर ऐतिहासिक महत्व बरकरार रहेगा. जानकारों के मुताबिक सौंदर्यीकरण का यह काम प्रशासक राज में ही संभव माना जा रहा है.

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