अमरावतीमहाराष्ट्र

5 हजार साल पुरानी सिंधू संस्कृति पर संशोधन

जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल सायंस रिपोर्ट में तीन माहराष्ट्रीयन का संशोधन प्रकाशित

अमरावती/दि.23– राज्य के तीन प्राध्यापकों ने एल्सेवीयर प्रकाशन के ‘जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल सायंस रिपोर्ट’ नामक प्रतिष्ठित जर्नल में 5 हजार वर्ष पुरानी सिंधु घाटी की संस्कृति से संबंधित एक संशोधन प्रकाशित किया है. इस संशोधन में अमरावती स्थित शासकीय ज्ञान, विज्ञान संस्था के सहयोगी प्राध्यापक डॉ. मुमताज बेग भी शामिल है, जो फिलहाल कनाडा में रहते हुए संशोधन कर रहे है. साथ ही यवतमाल स्थित अमोलकचंद महाविद्यालय में प्राणी शास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अश्विन अतकुलवार तथा पुणे स्थित डेक्कन कॉलेज ऑफ आर्कियोलॉजी की प्रा. डॉ. आरती देशपांडे-मुखर्जी ने भी इस संशोधन में सहयोग प्रदान किया है

बता दें कि, मानवीय संस्कृति की उत्पत्ती व प्रसार को समझने हेतु सिंधू घाटी सबसे पुराने व बेहद महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है. शिकार एवं अनाज जमा करने वाली स्थिति में हजारों वर्ष जुटाने के बाद केवल 10 हजार वर्ष पहले ही मनुष्य खेती-किसानी के साथ जुडा. भारतीय उपमहाद्वीप के वायव्य हिस्से में सिंधु सभ्यता के स्थान काफी विस्तीर्ण है तथा विगत कुछ समय के दौरान हरियाणा राज्य का हीराणा गांव भी सिंधू सभ्यता के एक महत्वपूर्ण अध्ययन केंद्र के तौर पर उभरकर सामने आया है. जहां पर 7 हजार वर्ष पहले ही हडप्पा संस्कृति पूर्व वसाहत के तौर पर वर्गीकृत है.

हाल ही में प्रा. डॉ. आरती देशपांडे-मुखर्जी ने जिराणा गांव का दौरा करते हुए विभिन्न स्थानों पर उत्खनन कर विविध प्राणियों की हड्डियां प्राप्त की और इन हड्डियों का आकार शास्त्रीय आधारित अध्ययन करने के बाद अमरावती के शासकीय ज्ञान-विज्ञान संस्था में स्थित लेबॉरेटरी ऑफ मॉलीक्यूलर एण्ड कंजर्वेशन जेनेटीक नामक प्रयोगशाला में इन हड्डियों को डीएनए आधारित अध्ययन हेतु भेजा गया. पुरातत्विय स्थानों पर उत्खनन के दौरान रहने वाली प्रमुख दिक्कतों में से एक दिक्कत हड्डियों के छोटे टूकडों के जरिए किसी प्राणी की पहचान करना होता है. ऐसे में डॉ. बेग व डॉ. अतकुलवार ने 3 हजार वर्ष से अधिक पुराने जानवरों की हड्डियों में से डीएनए हासिल करने एवं उनका वर्गीकरण करने हेतु डीएनए मार्फत एवं नया जणुकीय प्रोटोकॉल तैयार किया. हजारों वर्ष पुरानी हड्डियों में से डीएनए निकाल पाने में दुनिया के बेहद कम संशोधक सफल हो पाये है और इस काम में विदर्भ क्षेत्र से वास्ता रखने वाले दो संशोधकों सहित महाराष्ट्र के तीन संशोधकों को सफलता मिली है.

शोध निबंध के प्रकाशन पश्चात दुनिया के विविध हिस्सों से वास्ता रखने वाले संशोधकों ने इस शोध निबंध की प्रति मांगी है. विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन व संशोधन के लिए काफी अधिक संयम व प्रयासों की जरुरत पडती है. हमें इस शोध निबंध को प्रकाशित करने हेतु लगभग 6 साल का समय लगा.
– डॉ. मुमताब बेग,
संशोधन दल प्रमुख.

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