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अमरावती विमानतल को संत गुलाबराव महाराज का नाम

उद्घाटन अवसर पर नए नाम के साथ दिखा बोर्ड

अमरावती/दि.16 – आज 16 अप्रैल को राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा अमरावती विमानतल का उद्घाटन व अमरावती से मुंबई के बीच हवाई सेवा का शुभारंभ करने के साथ ही अमरावती विमानतल को ज्ञानेशकन्या व प्रज्ञाचक्षू कहे जाते संत गुलाबराव महाराज का नाम दिए जाने की बात भी तय हो गई जब उद्घाटन समारोह हेतु लगाई गई विशालकाय एलईडी स्क्रीन पर अमरावती विमानतल का नाम संत गुलाबराव महाराज अमरावती विमानतल लिखा हुआ दर्शाया गया. जिसके चलते अमरावती विमानतल के नामकरण को लेकर विगत लंबे समय से बना हुआ संभ्रम आखिरकार आज खत्म होकर दूर भी हो गया.
बता दें कि, जबसे अमरावती विमानतल के विकास व विस्तार कार्य ने रफ्तार पकडी थी तब से ही विमानतल के नामकरण के संदर्भ में कई महापुरुषों के नामों को लेकर दावे किए जाने लगे थे. जिसके तहत अमरावती विमानतल को देश के प्रथम कृषिमंत्री व शिक्षा महर्षी डॉ. पंजाबराव उर्फ भाऊसाहेब देशमुख अथवा निष्काम कर्मयोगी संत गाडगेबाबा में से किसी एक का नाम दिए जाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी. वहीं विगत 6 मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता के तहत अमरावती विमानतल के संदर्भ में हुई बैठक के दौरान अमरावती विमानतल को चांदुर बाजार तहसील के माधान गांव से वास्ता रखनेवाले संत गुलाबराव महाराज का नाम दिए जाने के निर्णय को मंजूरी दी गई. विशेष उल्लेखनीय है कि, भले ही संत गुलाबराव महाराज का पूरा जीवन माधान गांव में बीता था. लेकिन उनका जन्म अकोला रोड स्थित लोणी गांव में हुआ था. जिसकी दूरी बेलोरा स्थित अमरावती विमानतल से महज 5-6 किमी है. ऐसे में इस वजह को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार व एमएडीसी द्वारा अमरावती विमानतल को संत गुलाबराव महाराज का नाम देने का निर्णय लिया गया. जिसकी अधिकारिक घोषणा आज एक तरह से उस समय हो गई जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हाथों अमरावती विमानतल के उद्घाटन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान लगाई गई विशालकाय एलईडी स्क्रीन पर विमानतल का नाम संत गुलाबराव महाराज अमरावती विमानतल लिखा हुआ दिखाई दिया. जाहीर सी बात है कि, यह कार्यक्रम महाराष्ट्र सरकार एवं महाराष्ट्र विमानतल विकास प्राधिकरण की ओर से आयोजित किया गया था. ऐसे में कार्यक्रम के दौरान विमानतल के नाम को लेकर दर्शायी गई ‘स्ट्रीप’ को राज्य सरकार व एमएडीसी की अधिकारिक मंजूरी प्राप्त घोषणा माना जा सकता है.

* अमरावती मंडल का अनुमान व खबर निकले सही
– एक माह पहले 6 मार्च को ही प्रकाशित की थी खबर
उल्लेखनीय है कि, अमरावती विमानतल को संत गुलाबराव महाराज का नाम दिया जाएगा, यह खबर दैनिक अमरावती मंडल द्वारा एक माह पहले विगत 6 मार्च को ही प्रकाशित कर दी गई थी और आज 16 अप्रैल को अमरावती विमानतल के उद्घाटन अवसर पर नामकरण को लेकर की गई अप्रत्यक्ष घोषणा के साथ ही दैनिक अमरावती मंडल की खबर पूरी तरह से सही साबित हुई है. साथ ही एक बार फिर खबरों के मामले में दैनिक अमरावती मंडल की विश्वसनीयता बडी प्रखरता के साथ सामने आई है.
* कौन थे ज्ञानेशकन्या संत गुलाबराव महाराज?
महाराष्ट्र को संतो की भूमि कहा जाता है और महाराष्ट्र की संत परंपरा के तहत अमरावती जिले की चांदुर बाजार तहसील अंतर्गत माधान गांव के संत गुलाबराव महाराज का नाम भी प्रमुखता के साथ लिया जाता है. महज 9 माह की आयु में अपने आंखों की रोशनी खो देनेवाले और पूरा जीवन नेत्रहीन रहनेवाले संत गुलाबराव महाराज की प्रज्ञा इतनी अधिक प्रखर थी कि, उन्हें प्रज्ञाचक्षू यानी अपनी प्रज्ञा के दम पर सबकुछ देख सकने में सक्षम रहनेवाला व्यक्ति कहा जाता था. साथ ही संत गुलाबराव महाराज ने संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज को अपने पिता का स्थान देते हुए खुद को उनकी लाडली बेटी निरुपित किया था. जिसके चलते संत गुलाबराव महाराज को ज्ञानेशकन्या भी कहा जाता है. क्योंकि, उन्होंने संत ज्ञानेश्वर से शुरु हुई संत परंपरा को एक सुयोग्य सुपूत्री की तरह आगे बढाया और उन्हें पूरी ज्ञानेश्वरी कंठस्थ भी थी.
संतश्रेष्ठ तुकाराम महाराज को अपना आदर्श माननेवाले संत गुलाबराव महाराज को वर्ष 1901 में आलंदी दर्शन के समय संत ज्ञानेश्वर का साक्षात्कार हुआ था. जब संत गुलाबराव महाराज लगातार चार दिन ध्यानमग्न बैठे थे. संत ज्ञानेश्वर द्वारा प्रत्यक्ष दर्शन दिए जाने के चलते संत गुलाबराव महाराज ने उनके रुप का वर्णन अकोला के एक कलाकार के समक्ष किया था और महाराज के निर्देश पर ही उस कलाकार ने संत ज्ञानेश्वर का फेटा धारण किया हुआ छायाचित्र बनाया था और आज भी संत ज्ञानेश्वर का वही एकमात्र चित्र उपलब्ध है.
संत गुलाबराव महाराज की प्रज्ञाचक्षु जागृत रहने के चलते वे हिंदी, अंग्रेजी, जपानी, जर्मन, बंगाली, तेलगु, कन्नड आदी भाषा के साहित्य को पढ और समझ सकते थे. साथ ही उनकी प्रतिभा इतनी अधिक प्रगल्भ थी कि, किस किताब के किस पन्ने पर क्या लिया हुआ है, यह भी संत गुलाबराव महाराज बता दिया करते थे. महज 22 वर्ष की उम्र में कात्यायनी व्रत की दीक्षा लेते हुए संत गुलाबराव महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण के पत्नीत्व का अधिकार मिलने हेतु 33 दिनों का व्रत किया था और तब से ही उन्होंने स्त्रीवेष धारण करते हुए मंगलसूत्र, कुंकू, वेणी व चूडियों जैसे स्त्री श्रृंगार को धारण करना शुरु किया था. महज 34 वर्ष का लौकिक आयुष्य रहनेवाले संत गुलाबराव महाराज ने अपने अल्प जीवन में 134 ग्रंथ लिखे. जिनकी पृष्ठ संख्या 6 हजार के आसपास है. अपने इन ग्रंथो में महाराज ने डार्विन व स्पेन्सर के सिद्धांतो पर भाष्य करने के साथ ही ज्ञानयोग, भक्तियोग, वेदांत, उपनिषदे, मानसशास्त्र, आयुर्वेद, ब्रह्मसूत्र आदी विषयों पर भी शास्त्रशुद्ध लेखन किया तथा कई शास्त्रार्थो में अनेकों पंडितों व विद्वानों को भी पराजित किया. ऐसे महान संत का नाम अमरावती के विमानतल को दिया गया है.

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