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अमरावती संस्कारधानी, बरबस आकृष्ट करती

पद्मश्री पं. व्यंकटेशकुमार का कहना

* अमरावती मंडल से विशेष बातचीत
* अंबादेवी संगीत सेवा समारोह में अविस्मरणीय प्रस्तुति
अमरावती/दि.28- अंबानगरी में संस्कारवान लोगों की बहुतायत है. यहां संगीत के जानकार बड़ी संख्या में हैं. इसीलिए यहां बार-बार आने का दिल करता है. अंबादेवी संगीत सेवा समारोह सचमुच अपने आप में बड़ा अलग है. यहां का श्रोतावर्ग भी ऐसा है कि बरबस आकर्षण होता है. प्रत्येक कलाकार यहां से श्रोता के प्रतिसाद से संतुष्ट होकर जाता है. इन शब्दों में पद्मश्री पं. व्यंकटेशकुमार ने अंबानगरी की शास्त्रीय कलाओं की समझ का गुणगान किया. वे गत शाम होटल मानसरोवर में अमरावती मंडल के लक्ष्मीकांत खंडेलवाल से बातचीत कर रहे थे. अभी-अभी वे कीर्तन सभागार में अविस्मरणीय प्रस्तुति देकर लौटे थे. बावजूद उनके चेहरे पर तनिक भी थकान न थी और बड़े ही सहज भाव से उन्होंने अमरावती मंडल से वार्तालाप किया. इस दौरान उनके साथ धारवाड से पधारे प्रसिद्ध तबला वादक पं. सतीश कोल्ली और केशव जी जोशी तथा अमरावती के प्रसिद्ध हिंदी लेखक कवि पवन नयन जायस्वाल भी उपस्थित थे.
* ऐसा श्रोता वर्ग नहीं मिलता
अमरावती की पुनः प्रशंसा करते हुए पं. व्यंकटेशकुमार ने कहा कि पुणे, बैंगलोर, चेन्नई, धारवाड़ पश्चात अमरावती में ऐसे गुणीजनों का श्रोतावर्ग मिला है. वे इसी कारण चौथी बार अमरावती पधारे हैं. 69 बरस के पंडितजी ने बाल सुलभता से कहा कि अंबादेवी के सेवा समारोह में वे बारंबार आना चाहेंगे.
* संस्कार से बड़े बनते हैं
भारतवर्ष में अनेक बड़े शहर-महानगर हैं. वहां शास्त्रीय संगीत की बैठकें होती है. किन्तु गुणीजन बहुत कम देखने मिलते हैं. अमरावती में आना देखा जाये तो कलाकार का भाग्यशाली होना है. यहां के संस्कारों ने अमरावती को बड़ा किया है. आयोजन भी प्रशंसनीय है. दूसरे भीमसेन जोशी माने जाते पं. व्यंकटेशकुमार अनेक वर्ष पूर्व अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर देशों के दौरे बंद कर चुके हैं. उनका अब भारतवर्ष में ही बैठकों को प्राथमिकता रहती है.
* गुरु की महत्ता को श्रेय
पंडित व्यंकटेशकुमार ने अपनी गायन सफलता के लिए गुरु के आशीष को श्रेय दिया. उनके गुरु पद्मभूषण डॉ. पुत्तराज गवईजी हैं. उनका कर्नाटक के वीरेश्वर में पुण्याश्रम है. उन्होंने बताया कि जैसा कि नाम से संकेत मिलता है, यह पुण्याश्रम ही है, जहां नेत्रहीन, दिव्यांग की प्रतिभा को तराशने का प्रयत्न होता है. कोई शुल्क नहीं लिया जाता, किन्तु वहां का शिष्य बनने के लिए बड़ी मेहनत और लगन तथा प्रतिभा की आवश्यकता होती है. उन्होंने बताया कि उनके गुरु संस्कृत, कन्नड और हिंदी के विद्वान थे. उसी प्रकार वायलिन बजाते थे. 13 वर्ष की आयु में संगीत साधना हेतु गुरु के संपर्क में आये व्यंकटेशकुमार अगले 45 वर्षों तक गुरुवर के सतत संपर्क में रहे. गुरु के आशीष और प्राप्त ज्ञान आदि को वर्णनातीत बतलाया.
* एक तप की साधना आवश्यक
महान शास्त्रीय गायक कुमार ने कहा कि शास्त्रीय संगीत, नृत्य सीखने के लिए कम से कम एक तप की साधना आवश्यक है. एक तप अर्थात् बारह वर्ष. इससे भी कम से कम 6 वर्ष तो अवश्यक अपनी गुरु की देखरेख में गाना चाहिए. तभी ज्ञान की प्राप्ति होगी. भरपूर अभ्यास होने के बाद ही कार्यक्रम हेतु हां कहना चाहिए. उन्होंने प्रचार के पीछे नहीं पड़ने तथा गुरु की आज्ञा से ही कार्यक्रम का मंगलाचरण करने की सलाह युवा गायकों-वादकों को दी. आपने ने कहा कि गुरु की आज्ञा से ही गाना, बजाना, सोना, उठना, बैठना आदि रुप से समर्पण पर ही सिद्धि प्राप्त होती है. सिद्धि पश्चात प्रसिद्धि स्वयंमेव आती है. उन्होंने कहा कि प्रतिभा के साथ मेहनत, लगन, कठोर परिश्रम करने वालों के लिए बढ़िया करियर की संधि यह क्षेत्र उपलब्ध करवाता है.
* नवसालकर जी की प्रशंसा
अमरावती में पंडित किशोर नवसालकर की संगीत क्षेत्र की विशेषज्ञता का बड़ा गौरवपूर्ण उल्लेख पं. व्यंकटेशकुमार ने किया. उसी प्रकार उन्हें अमरावती भूषण बतलाया. 15-20 वर्षों से हो रहे संगीत सेवा समारोह को अमरावती के लिए वरदान होने की संज्ञा दी.

भीमसेन जोशी के प्रिय
शास्त्रीय संगीत के पुरोधा गायक भीमसेन जोशी का पं. व्यंकटेशकुमार पर बड़ा स्नेह रहा. खुद कुमार ने बताया कि पुणे के सवई गंधर्व उत्सव में पूज्य जोशी के आग्रह पर ही उन्हें आमंत्रित किया गया था. उपरांत अनेक उत्सवों में उन्होंने पुणे में प्रस्तुति दी. एक प्रस्तुति बड़ी चिरस्मरणीय है. जब महाराष्ट्र शासन की तरफ से विलासराव देशमुख के मुख्यमंत्रित्व काल में भीमसेन जोशी का गौरव करना था तो गायन महफिल के लिए व्यंकटेशकुमार को न्यौता दिया गया था. इस अवसर को उन्होंने अपनी धरोहर बतलाया.

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