तीन वर्षों में अमरावती की वायु गुणवत्ता सुधरी
एनसीएपी की सूची में अमरावती भी शामिल
अमरावती/दि.11- केंद्र सरकार द्वारा तीन साल पहले शहरी इलाकों में बढती जहरीली व प्रदूषित हवा को नियंत्रित करने के लिए करोडों की लागतवाले राष्ट्रीय स्वच्छ वायू कार्यक्रम यानी एनसीएपी को शुरू किया गया था. किंतु तीन वर्ष बाद अधिकांश शहरों में हालात जस के तस है और वायु प्रदूषण के स्तर में कोई बदलाव या सुधार नहीं देखा गया. किंतु इन्हीं तीन वर्षों के दौरान महाराष्ट्र के सर्वाधिक 18 शहरों को वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए चुना गया है. इस सूची में अमरावती शहर का नाम भी शामिल है. इसे अमरावती शहर के लिए एक बडी उपलब्धि कहा जा सकता है.
बता दें कि, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा देश के ज्यादातर शहरों में गंभीर वायू प्रदूषण से निपटने के लिए 10 जनवरी 2019 को एनसीएपी कार्यक्रम शुरू किया गया था. जिसके तहत वर्ष 2024 तक 132 शहरों की हवा को साफ करने तथा पर्टीक्यूलेट मैटर (पीएम) को 20 से 30 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य तय किया गया था. इसके लिए वर्ष 2017 को आधार वर्ष के तौर पर ग्राह्य माना गया. इस दौरान सरकार के वायु गुणवत्ता आंकडों का विश्लेषण बताता है कि, अधिकांश नॉन अटेनमेंट शहरों में पीएम 10 पीएम 2.5 व पीएम 10 के स्तर में गिरावट हुई ही नहीं. बल्कि कुछ शहरों में इन स्तरों में वृध्दि दर्ज की गई. ज्ञात रहें कि, एनसीएपी को लागू करने की जिम्मेदारी पर्यावरण मंत्रालय के साथ-साथ केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड व निरी पर भी है. साथ ही राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को भी यह काम सौंपा गया है कि, वह इस कार्यक्रम के तहत अपने राज्यों के प्रत्येक शहर को प्रदूषण के स्त्रोत के आधार पर कार्यान्वयन के लिए अपनी कार्य योजना विकसित करे.
यदि महाराष्ट्र की बात की जाये, तो अन्य राज्यों के शहरों के मुकाबले में महाराष्ट्र के सर्वाधिक 18 शहरों को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत चुना गया है. जिनमें अमरावती सहित अकोला, नागपुर, चंद्रपुर, जालना, औरंगाबाद, जलगांव, कोल्हापुर, लातूर, बदलापुर, मुंबई, नासिक, नवी मुंबई, पुणे, सांगली, सोलापुर, ठाणे व उल्हासनगर शामिल है. वहीं राहतवाली बात यह है कि, देश के सबसे प्रदूषित शीर्ष 10 शहरों की सूची में यद्यपि महाराष्ट्र का कोई भी शहर शामिल नहीं है, लेकिन चिंतावाली बात यह है कि, एनसीएपी ट्रैकर के विश्लेषण के मुताबिक महाराष्ट्र के मुंबई सहित कई शहरों में पीएम 2.5 व पीएम 10 के स्तर में कोई गिरावट नहीं देखी गई. बल्कि इन तीन वर्षों के दौरान अधिकांश शहरोें में प्रदूषण कम होने की बजाय बढ गया है.