* युवतियां चाहे तो इंस्पायर हो जाए
अमरावती/दि.25-अनेक समाज में यह मान्यता प्रचलित है कि बेटियां अपना भाग्य साथ लेकर आती है. ऐसे में अनीता कोतवाल जैसी युवतियां भी है जो परिस्थितियों से संघर्ष कर अपनी राह और मुकाम खुद बनाती है. अपना भाग्य स्वयं रचती है. जीवन में आयी नाना प्रकार की मुश्किलात का सामना करते हुए अनीता ने समय-समय पर दृढ निश्चय का परिचय दिया. अपने जिन्दगी के फैसले खुद किए और निर्णय पर कायम रहकर उन्हें सही साबित करने के लिए अनीता दिन रात परिश्रम कर रही है. आज शिलांगन रोड जिसे नये दौर में अंबादेवी पालखी मार्ग कहा जाने लगा है, अनीता अपना फलों का ठेला सफलता से संचालित कर रही है. दोनों संतानों नैतिक और स्वरा को अपने दम पर शिक्षित संस्कारित करने का उनका प्रयत्न है.
* गागर में सागर है ठेला
अनीता के फलों के ठेले पर सभी प्रकार के मौसमी फल उपलब्ध रहते हैं. जिससे कई वरिष्ठ ग्राहक उसे गागर में सागर कहते हैं. आम के सीजन में आम, संतरे के सीजन में संतरे और अभी तो गर्मियों के दिन है तो रसवाले खरबूजे, तरबूज, लीची सभी फू्रट उपलब्ध है. दाम भी अनीता हिसाब से लेती है. जिससे उसके ग्राहक नित्य बंधे हुए हैं.
* पति शराबी, छोड दिया तत्काल
अनीता ने अमरावती मंडल को बताया कि उनके ससुराल में दिक्कत थी. पति ड्रींक करते थे. जल्द ही अनीता ने डीसीजन ले लिया. अपने दोनों बच्चों नैतिक और स्वरा के साथ वह माता-पिता नामदेवराव एवं कल्पना के पास आ गई. किंतु अपने माता- पिता पर भी वह बोझ नहीं बनना चाहती थी. उनके कामकाज में हाथ बंटाने के साथ उसने एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका की जॉब स्वीकार की.
* अध्यापिका से फल विक्रेता
कोरोना महामारी ने जिस तरह लाखों करोडों लोगों को प्रभावित किया. ऐसे ही अनीता कोतवाल का जीवन भी प्रभावित हुआ. शालाएं बंद होने से उनकी जॉब चली गई. घर परिवार संभालना मुश्किल हो गया. किंतु अनीता नाम के अनुरूप हैं. उन्होंने देखा कि कोरोना दौरान सब्जियां, दूध अथवा फलों का धंधा करने की छूट है. अनीता ने फलों का ठेला लगाकर काम शुरू किया. इसमें भी नाना प्रकार की दिक्कतों से दो चार होना पडा. किंतु अनीता अडिग रही. अनीता ने सभी परेशानियों का डट कर मुकाबला किया.
घाटा लगा किंतु डटी रही
अनीता कोतवाल ने बताया कि शुरूआत में वे स्वयं फल मंडी में खरीदी के लिए जाती. कई बार उनके साथ ठगी हो जाती. कम अधिक रेट में उन्हें घटिया फल थमा दिए जाते. जिससे आरंभ में उन्हें कई बार घाटा सहन करना पडा. चाव से लाए गये फल फेंकने पडे. इससे मिली सीख आज अनीता को बडी काम आती है. आज उनके ठेले को तीन चार बरस हो चुके हैं. उनके कई नित्य कस्टमर्स हो गये हैं. जो अब आम रहे या अमरूद अथवा अनार. दाम पूछे बगैर खरीद कर ले जाते हैं. अनीता को बाजार में किन फलों के रेट बढने या घटनेवाले हैं, इसका भी अनुमान हो चुका है. जिससे वे अपने नियमित ग्राहकों को उचित दाम पर फल दे सकती है.
* खुद के भरोसे आगे बढें
अनीता कोतवाल बताती है कि अब इस पडाव पर वे आ गई है. उसी प्रकार उन्होंने देखा है कि कोई किसी की मदद नहीं करता. स्वयं ही हिम्मत रखनी पडती है. खुद के भरोसे आगे बढा इंसान ठोकरों से बच जाता है. अब कोल्ड स्टोरेज लेने का भी विचार वे कर रही हैं. ताकि फलों को अधिक समय तक सहेज कर रखा जा सके. सडक किनारे रोज फलों की दुकान सजाना और रात को उसे समेटना बडा मशक्कत का कार्य यह महिला अपनी जिम्मेदारियों के कारण उत्साह डिगाय बगैर कर रही है तब जाकर दो पैसे कमा पाती है.