एपीएमसी में ‘गोलमाल है, सब गोलमाल है’
धडल्ले के साथ हो रही करोडों रूपयों की सेस चोरी
* मंडी अधिकारियों की मिलीभगत से चल रही गडबडी
* हर कोई सिक्कों की खनक से प्राप्त कर रहा ‘परम आनंद’
अमरावती/दि.15– स्थानीय कृषि उत्पन्न बाजार समिती के अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ ही कुछ मंडी संचालकों की मिलीभगत के दम पर फसल मंडी में सेस की चोरी को अंजाम दिया जा रहा है. जिससे फसल मंडी को लाखों-करोडों रूपयों के राजस्व का नुकसान उठाना पड रहा है. जिसके खिलाफ इक्का-दुक्का संचालकों के अलावा अन्य किसी के द्वारा कोई आवाज भी नहीं उठायी जा रही. साथ ही सेस चोरी के मामलों को लेकर अब तक कोई ठोस कार्रवाई भी नहीं की गई है. ऐसे में किसानों के हितों के लिए बनाई गई फसल मंडी किसानों के लिए नहीं, बल्कि खरीददार व्यापारियों के लिए फायदेवाली मंडी बनी हुई है.
बता दें कि, दो दिन पूर्व ही स्थानीय कृषि उत्पन्न बाजार समिती से सोयाबीन की खरीदी करनेवाले परमानंद अग्रवाल ने अपनी फर्म सिंघानिया ट्रेडर्स का सोयाबीन लदा ट्रक मंडी से बाहर भेजते समय ट्रक में चना लदा रहने की बात कहते हुए गेट पास फडवाई थी. चूंकि सोयाबीन के दाम अधिक है और चने के दाम कम है. ऐसे में सोयाबीन के नाम पर चने की गेट पास फडवाते हुए सेस की रकम बचाने अथवा सेस चोरी करने का प्रयास किया गया. हालांकि मंडी के प्रवेशद्वार पर तैनात कर्मियों की सतर्कता के चलते यह प्रयास नाकाम साबित हुआ. किंतु इसके जरिये सेस चोरी से जुडी कुछ पुरानी यादें एक बार फिर ताजा हो गई है और अब उन मामलों को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई है.
बता दें कि, इस समय चर्चा में रहनेवाले परमानंद अग्रवाल और उनकी फर्म सिंघानिया ट्रेडर्स व सिंघानिया ट्रेडिंग कंपनी का नाम इससे पहले वर्ष 2013-14 में भी सेस चोरी के मामले को लेकर सामने आया था, जब मंडी प्रशासन ने परमानंद अग्रवाल और उनकी फर्म को सेस चोरी का दोषी पाते हुए उन पर 1 करोड 26 लाख रूपये की रिकवरी निकाली थी. हालांकि यह रकम अदा करने की बजाय परमानंद अग्रवाल ने हाईकोर्ट में गुहार लगायी थी और यह मामला अब तक जस का तस प्रलंबित पडा है. यहीं से फसल मंडी में चल रहे सारे गोलमाल को समझा जा सकता है.
जानकारी के मुताबिक अमरावती फसल मंडी में खरीददार द्वारा अडत व्यवसाय से कृषि उपज की खरीदी की जाती है. पश्चात अडत फर्म द्वारा माल की वेरायटी और भाव को लेकर दिये जानेवाले बिल के आधार पर खरीददार को सेस के तौर पर मंडी का टैक्स अदा करना होता है. फसल मंडी की आय का सबसे मुख्य जरिया यही सेस होता है. जिसके लिए मंडी प्रशासन द्वारा मंडी परिसर में किसानोें के हितों को देखते हुए आवश्यक सुविधा उपलब्ध करायी जाती है. किंतु वर्ष 2013-14 में फरवरी माह के दौरान सेस अदा करने के समय परमानंद सिंघानिया ने अपनी फर्म को अडत व्यवसायियों द्वारा दिये गये बिल ही पेश नहीं किये. बल्कि मंडी को एक लिखीत पत्र जारी करते हुए सुचित किया कि, उनकी दुकान के बहिखातोें को चूहें खा गये है. ऐसे में मंडी के तत्कालीन प्रशासन ने सालभर के व्यवसाय का एक अनुमानित औसत निकालते हुए परमानंद अग्रवाल से कुल 80 लाख रूपये का सेस स्विकार किया. जबकि हकीकत में उस वर्ष मंडी प्रशासन को परमानंद अग्रवाल से कुल 2 करोड 40 लाख रूपये वसूल करने थे. जिसके लिए फसल मंडी के तत्कालीन सचिव दीपक विजयकर ने परमानंद अग्रवाल व उनकी फर्म के नाम पर नोटीस भी जारी की थी. किंतु बाद में कुछ घटनाक्रम बडे नाटकिय तरीके से घटित हुए और विजयकर के स्थान पर मंडी के प्रभारी सचिव के रूप में काम करनेवाले भूजंग डोईफोडे ने मात्र 80 लाख रूपये का सेस भरवाकर मामला ‘सलटा’ दिया. किंतु बाद में कुछ जागरूक संचालकों व इमानदार अधिकारियों की वजह से मामले की जांच हुई और परमानंद अग्रवाल पर 1 करोड 26 लाख रूपयों की रिकवरी निकाली गई.
सर्वाधिक हैरत और मजे की बात यह रही कि, फरवरी माह के दौरान मंडी का सेस अदा करते समय परमानंद अग्रवाल ने अपने बहिखाते चूहों के द्वारा कूतर दिये जाने की बात कही थी. लेकिन इसके पश्चात उसी वर्ष अगस्त से अक्तूबर माह के दौरान अपनी फर्म के लाईसेन्स का रिनिवल कराने हेतु उन्हीं बहिखातों का ऑडिट भी करवाया. ऐसे में सवाल उठता है कि, जब फरवरी माह में बहिखातों को चूहें खा गये थे, तो बाद में ऑडिट के लिए बहिखाते वापिस कैसे आये और जब बाद में बहिखाते वापिस आ गये, तो मंडी प्रशासन ने अपना सेस वसूल करने के लिए इन बहिखातों की जांच क्यों नहीं की.
यहां इस तथ्य की अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि, वर्ष 2015 तक परमानंद अग्रवाल खुद अमरावती फसल मंडल के संचालक हुआ करते थे और उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कई अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने साथ मिला रखा था. इसके बाद संचालक पद के चुनाव में परमानंद अग्रवाल को हार का सामना करना पडा और खरीददार निर्वाचन क्षेत्र के संचालक निर्वाचित होनेवाले सतीश अटल ने पूरे मामले को मंडी समिती की सभा में उठाया. साथ ही सन 2013-14 के आगे-पीछे पूरे पांच साल के व्यवहार की जांच करने की मांग उठायी. किंतु उनकी इस मांग को सभा की प्रोसेडिंग में ही नहीं लिया गया. जिसका सीधा और साफ मतलब है कि, अमरावती कृषि उत्पन्न बाजार समिती में कुछ लोग ऐसे जरूर है, जो परमानंद अग्रवाल से जुडे इस मामले को सामने नहीं आने देना चाहते.
सर्वाधिक हैरत इस बात को लेकर भी जताई जा सकती है कि, जब सिंघानिया ट्रेडिंग कंपनी का रिनिवल नहीं किये जाने के चलते परमानंद अग्रवाल का नाम अमरावती कृषि उत्पन्न बाजार समिती की मतदाता सूची से भी काट दिया गया है, तो भी इसके बावजूद परमानंद अग्रवाल द्वारा अपनी दूसरी फर्म सिंघानिया ट्रेडर्स के जरिये फसल मंडी में कृषि उपज खरीदी का व्यवहार कैसे किया जा रहा है. साथ ही एक नियम यह भी है कि, यदि किसी खरीददार पर मंडी की कोई रिकवरी निकलती है, तो संबंधित व्यक्ति को सबसे पहले वह भूगतान अदा करना होता है. जिसके उपरांत उसके खिलाफ अपील की जा सकती है. लगभग ऐसा ही कुछ जीएसटी से जुडे मामलों में भी होता है. किंतु वर्ष 2013-14 में निकाली गई 1 करोड 26 लाख रूपये रिकवरी अदा किये बिना परमानंद अग्रवाल अपील में भी चले गये. जिस पर अब तक फैसला आना बाकी है और उस बकाया सेस का भूगतान किये बिना परमानंद अग्रवाल विगत सात-आठ वर्षों से बडी आसानी के साथ अमरावती फसल मंडी में अपना व्यापार भी कर रहे है. वहीं अब उनके द्वारा एक बार फिर सेस चोरी का मामला सामने आया है. ऐसे में इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि, विगत सात-आठ वर्षों के दौरान मंडी का सेस नहीं डूबाया गया होगा, यानी कृषि उत्पन्न बाजार समिती में सबकुछ ‘गोलमाल’ ही चल रहा है और यहां के अधिकारी व कुछ संचालक आपस में मिलीभगत करते हुए सिक्कों की खनक के आगे ‘परम-आनंद’ को प्राप्त कर रहे है. लेकिन हैरत इस बात की है कि, मंडी अधिकारियों के साथ-साथ जिला उपनिबंधक कार्यालय सहित सहकार व पणन संचालनालय द्वारा भी इस बेहद संगीन मामले की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. इसे लेकर भी एक तरह से आश्चर्य व्यक्त किया जा सकता है.
अमरावती कृषि उत्पन्न बाजार समिती में होनेवाली सेस चोरी को लेकर आवाज उठानेवाले मंडी संचालक सतीश अटल ने इस बारे में दैनिक अमरावती मंडल से बात करते हुए बताया कि, उन्होंने पहली बार वर्ष 2015 के दौरान मंडी समिती की बैठक में यह मामला उठाया था. किंतु तत्कालीन प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था. मंडी में 1.26 करोड की सेस चोरी का यह अकेला मामला नहीं है, बल्कि उनकी जानकारी में ऐसे कुछ और मामले भी है. जिन्हें जल्द उजागर किया जायेगा. साथ ही वे अब इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग उठानेवाले है. जिसके तहत मामले से जुडे तमाम दस्तावेज व सबूत निबंधक कार्यालय तथा सहकार व पणन मंत्रालय एवं संचालनालय के सुपुर्द किये जायेंगे, ताकि सेस चोरी करनेवाले खरीददारों के साथ-साथ इस काम में मिलीभगत रखनेवाले मंडी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ भी आवश्यक कार्रवाई हो सके.