बच्चों को स्मार्टफोन देकर कहीं गलती तो नहीं कर रहे हम
मानसिक महामारी का संकट निर्माण होने का खतरा
* समय रहते जरुरी कदम उठाए जाने की मांग
अमरावती/दि.2– इन दिनों किशोरवयीन बच्चों द्वारा स्मार्टफोन का प्रयोग बडे पैमाने पर बढ गया है, जिसके चलते बडे प्रमाण में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संकट निर्माण होने का खतरा बना हुआ है. इसे लेकर सामाजिक मानसशास्त्रज्ञ जोनाथन हैडट ने अपनी किताब ‘द एंक्शियस जनरेशन’ में चेतावनी जारी करते हुए स्मार्टफोन के प्रयोग को लेकर तत्काल कदम उठाए जाने की मांग की है. साथ ही इस वैश्विक महामारी से निपटने हेतु समय रहते तमाम आवश्यक व ठोस कदम उठाए जाने की जरुरत भी प्रतिपादित की है.
सामाजिक मानसशास्त्रज्ञ जोनाथन हैडट ने अपनी इस किताब में सवाल उपस्थित किया है कि, यदि आपके 10 वर्षीय बच्चे को मंगल ग्रह पर रहने का मौका दिया जाए, तो क्या आप उस अवसर को अपने बच्चे के लिए लेना पसंद करेंगे. जाहिर तौर पर आपका जवाब नहीं में रहेगा. ठीक इसी तरह अभिभावको ने स्मार्टफोन के खतरो को भी ध्यान में रखना चाहिए. आज से करीब 10 वर्ष पहले अभिभावको को शायद इस बात का एहसास नहीं था कि, वे अपने बच्चों को जो स्मार्ट फोन दे रहे है, उसके खतरे क्या हैं. लेकिन विगत 10 वर्षो के दौरान धीरे-धीरे यह स्पष्ट हो गया कि, बडे होनेवाले बच्चे स्मार्टफोन की वजह से कई तरह के संकटों में फंसे हुए हैं. वर्ष 1997 के बाद जन्मे कई बच्चे बडे पैमाने पर मानसिक महामारियों से ग्रस्त हैं, जिसके लिए मुख्य तौर पर स्मार्टफोन ही जिम्मेदार है, ऐसा भी हैडट द्वारा कहा गया है.
* वर्ष 2010 में किशोरवयीन बच्चों ने मानसिक स्वास्थ्य की समस्या 5 से 10 फीसद जो अब बढकर दोगुनी अधिक हो गई है.
* स्मार्टफोन के दुष्परिणाम
– खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति.
– आत्महत्या का प्रमाण बढा.
– मानसिक विकार बढे.
– मानसिक स्वास्थ्य बिगडा.
* क्या करना जरुरी?
– हाईस्कूल से पहले बच्चों को स्मार्ट फोन न दें.
– 16 वर्ष की आयु से पहले कोई सोशल मीडिया नहीं.
– शालाओं में मोबाईल के प्रयोग पर हो पूर्णत: प्रतिबंध.
– बच्चों को पुस्तक वाचन हेतु प्रोत्साहित करना जरुरी.
– बच्चों को खाली समय में मैदानी खेल खेलने हेतु भेजे.
किसी भी आयुवर्ग के लिए स्मार्टफोन का अत्याधिक प्रयोग नुकसान दे ही होता है. विगत 15-20 वर्षो के दौरान मोबाईल एवं स्मार्टफोन का अत्याधिक प्रयोग करने की वजह से होनेवाले दुष्परिणाम अब बडी तेजी के साथ सामने आ रहे है. स्मार्टफोन के जरिए पूरी दुनिया को अपनी मुठ्ठी में समझनेवाला व्यक्ति हकीकत में धीरे-धीरे अकेलेपन का शिकार हो जाता है. साथ ही उसका जमीनी हकीकत से वास्ता टूटने लगता है. जिसकी वजह से वह आगे चलकर तनाव, निराशा व अवसाद का भी शिकार होने लगता है. यह स्थिति कोमल मन मस्तिष्क रहनेवाले 10 वर्ष से कम एवं किशोरवयीन बच्चों के लिए बेहद घातक साबित हो सकती है. इन दिनों हम देखते है कि, महज 12 से 15 वर्ष की आयुवाले बच्चे भी छोटी-छोटी बातों को लेकर अपना मानसिक नियंत्रण खोकर आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा लेते है. यह कहीं न कहीं स्मार्टफोन के अति प्रयोग का दुष्परिणाम है. अत: अब समय रहते सभी ने स्मार्टफोन के अति प्रयोग को लेकर सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि स्मार्टफोन का अति प्रयोग अब मानसिक विकारो की महामारी का वैश्विक स्तर पर कारण बनता जा रहा है.
– अमिता दुबे
क्लिनिकल साईकोलॉजिस्ट
अस्तित्व परामर्श केंद्र.