अमरावती

विजयादशमी पर शस्त्र पूजा

अमरावती- /दि.4  शारदीय नवरात्रि के बाद दशमी तिथि को विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है. सनातन हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार यह जगतजननी माँ भगवती ने अलग-अलग अवतार लेकर दानवों का संहार कर सृष्टि और मानवता की रक्षा करने और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के लंकेश, दशानन रावण पर विजय के पर्व के रूप में शस्त्र पूजा कर मनाया जाता है.
हमारे सभी देवता और अवतार जिनकी हम अर्चना, आराधना करते है वह शस्त्रधारी है. सभी शस्त्र आत्म रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए होते है इसलिए हमारी सभ्यता और संस्कृति में शस्त्रों को पवित्र मानकर इसके पूजन का विधान है इसलिए राष्ट्र की रक्षा में अपनी जान न्योछावर करनेवाली हमारी जल, थल और वायु सेना में शस्त्र पूजन किया जाता है.
सभी सनातनी नवरात्रि में भक्ति भाव से उपवास के साथ हमारे देवताओं की पूजा, अर्चना, आराधना तो करते है लेकिन दशमी को शस्त्र पूजन नहीं करते. शस्त्र पूजन के बिना विजयादशमी का पर्व अधूरा है. यह सनातन हिंदू धर्म के नवजागरण की वेला है. शस्त्र पूजा हमारे पुरुषार्थ को जागृत कर हमारे भीतर आत्मविश्वास और सुरक्षितता का भाव जगाती है. अपनी धार्मिक आस्था और विश्वास के इस पर्व को पुनर्जीवित करने के लिए हमने इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और हर सनातनी धर्म के अनुयायी ने शस्त्र पूजन कर विजयादशमी का पर्व मनाना चाहिए. तभी हम विजयादशमी पर्व को सार्थकता प्रदान कर सकेंगे वर्ना यह पर्व किस्से-कहानियों, कागजों और कहावतों तक सीमित होकर रह जाएगा.
धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर, अच्छाई की बुराई पर, मानव की दानव पर, जीत का महापर्व विजयादशमी पर हम, हमारे धर्म और राष्ट्र की विजय के लिए निस्वार्थ भावना से सदा समर्पित रहें इसी मंगलकामना के साथ जय माता दी, जय श्री राम.
– पवन नयन जायसवाल

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