अमरावती

राजनीति के अजातशत्रु अटलबिहारी वाजपेयी

आज चौथी पुण्यतिथि पर विशेष

अमरावती -/दि.16 तीन बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनेवाले अजातशत्रु स्वर्गीय श्री अटलबिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो 4 राज्यों के 6 लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर चुके है. उत्तरप्रदेश के लखनऊ तथा बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर व विदिशा और नई दिल्ली संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव जीतनेवाले वाजपेयी देश के एकमात्र नेता रहे हैं. आज स्वर्गीय श्री अटलबिहारी वाजपेयी की चौथी पुण्यतिथि है, श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए प्रस्तुत है उनके जीवन की कुछ विशेष जानकारियां.
जन्म, शिक्षा व जेल यात्रा
भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य भारत के ग्वालियर में कान्यकुब्ज ब्राह्मण पंडित कृष्णबिहारी वाजपेयी और कृष्णादेवी के घर में हुआ था. पंडितजी संस्कृत के विद्वान व अध्यापक थे और कृष्णादेवी घरेलू महिला थी. अटलजी अपने माता पिता की 7 वीं संतान थे, उनसे बड़े 3 भाई और 3 बहनें थी. अटलजी ने स्थानीय विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1941 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर विक्टोरिया कॉलेज में प्रवेश लिया, यहीं से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् कानपुर के डी ए वी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित की. उस समय भारत अंग्रेजी शासकों के अधीन था, गाँधीजी के नेतृत्व में देश को स्वतंत्रता दिलाने का आदोलन चल रहा था तथा क्रांतिकारी युवक भी अंग्रेजी शासन की क्रूर व दमनात्मक नीतियों का विरोध कर देश को स्वतंत्रत कराने संघर्ष कर रहे थे, वाजपेयी विक्टोरिया कॉलेज में अध्ययन के समय ही कॉलेज की राजनीति से जुड़ चुके थे, और वे कॉलेज के सचिव चुने गए. उसी समय वे आर्यकुमार सभा के भी सक्रिय सदस्य बने थे. 1942 में वाजपेयी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलन से जुड़ कर भारत छोड़ो आदोलन में जेल भी गए, कांग्रेस की नरमपंथी नीतियों के फलस्वरूप वो कांग्रेसियों के साथ अधिक दिनों तक नहीं रह सके तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित होकर उसके समर्थक बन गए. संघ के कार्यक्रमों में उनके कविता पाठ व भाषण कला की सराहना होने लगी और वे आम लोगों में लोकप्रिय होने लगे, निर्भीक विचार, सहज, सरल व सौम्य स्वभाव से सभी उनकी ओर आकर्षित होने लगे.
पत्रकारिता, राजनीती, सांसद और नेहरू जी की भविष्यवाणी
कवि ह्रदय वाजपेयी युवा थे व उनकी ओजस्वितापूर्ण वाणी से उनकी प्रतिभा व योग्यता स्पष्ट प्रकट होती थी. वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाद डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सम्पर्क में आए व 1951 में जनसंघ की स्थापना से लेकर डॉ मुखर्जी के साथ उनके अंतिम समय तक रहे. कश्मीर में प्रवेश के लिए लागू किये गए परमिट सिस्टम का विरोध करने पर डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी को शेख अब्दुल्ला सरकार ने गिरफ़्तार किया, तब वाजपेयी उनके साथ थे. डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय मृत्यु के पहले अटलबिहारी वाजपेयी को अलग करके जेल की दूसरी बैरक में रखा गया था. शेख अब्दुला की जेल से रिहा होने के बाद वाजपेयी राजनीतिक गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय हो गए. राष्ट्रवादी विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के उदेश्य से उन्होंने हिंदी साप्ताहिक पांचजन्य, मासिक राष्ट्रधर्म, दैनिक वीर अर्जुन और स्वदेश समाचार पत्र में साहित्यीक संपादक के रूप में सफलतापूर्वक कार्य किया. लेखन के धनी, ओजस्वी व प्रखर वक़्ता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके वाजपेयी 1957 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से जनसंघ प्रत्याशी के रूप में पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. लोकसभा में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सहित सतापक्ष के कई विद्वान मंत्री व सदस्य संसद में थे. विपक्षी पार्टियों के धुरंधर नेताओं की उपस्थिति के बीच नए नवेले सदस्य वाजपेयी के अभ्यासपूर्ण तर्कों और प्रभावी ओजस्वी वाणी से सभी प्रभावित हुए. एक विदेशी प्रतिनिधिमंडल से लोकसभा के प्रमुख सदस्यों का परिचय कराते समय अटलजी के सम्बंध में नेहरूजी ने गौरवोउद्गार प्रकट करते हुए कहा था कि यह युवक आगे चलकर एक दिन भारत का नेतृत्व करेगा, और नेहरूजी की भविष्यवाणी समय के साथ सही साबित हुई.
जाति प्रथा से हारे अटलजी राज्यसभा पहुँचे
1962 में हुए आम चुनाव में अटलजी बलरामपुर से पुन: जनसंघ प्रत्याशी के रूप में उतरे चुनाव प्रचार के दौरान विशिष्ट समाज के अटलजी के एक परिचित प्रशंसक ने उनसे मुलाकात कर उनको अपने घर चाय के लिए आमंत्रित किया, तो अटलजी सहर्ष तैयार हो गए, साथियों द्वारा इसका चुनाव में विपक्षियों द्वारा अपप्रचार करने से विपरीत परिणाम आने की आशंका और चेतावनी के बावजूद अटलजी नहीं माने और चाय पीने पहुँचे, और जिस बात का डर था वही हुआ, विपक्षी पार्टीयों ने इस बात को उछालकर अपप्रचार किया और अटलजी चुनाव में पराजित हो गए. कांग्रेस की प्रत्याशी सुभद्रा जोशी चुनाव जीत गई. इंदिरा गांधी ने सुभद्रा जोशी को बधाई देते हुए तार में लिखा था, खूब लड़ी मर्दानी यह तो झांसी वाली रानी है. कुछ वर्ष बाद अटलजी ने अपनी हार के लिए कारणीभूत हुई इस घटना का उल्लेख करते हुए कई समाचारपत्रों में ’आओ क्रांति करें’ शीर्षक से लेख लिखकर समाज में अलग अलग जाति और धर्म के लोगों के व्यक्तिगत आपसी सम्बंधों को कायम रखने व उसे राजनीति से दूर रखने की अपील की थी. उपरोक्त लेख मैने खुद नागपुर से प्रकाशित उस समय के लोकप्रिय दैनिक युगधर्म में 1968 में पढा था. इस हार के बाद अटलजी उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए, अटलजी जनसंघ संसदीय दल के नेता बनकर संसद के गलियारों को अपनी वाणी से गुंजायमान करते रहे. जनसंघ के तत्कालीन अध्य्क्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 11 फेब्रूवारी 1968 को हुई हत्या के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को जनसंध का अध्यक्ष चुना गया.
अटलजी का विदेश मंत्री व प्रधानमंत्री का कार्यकाल
1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल में जयप्रकाश नारायण, अटलबिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरणसिंग, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस, लालकृष्ण अडवाणी, मोहन धारिया तथा देश के कई वरिष्ठ नेता जेल भेजे गए. मार्च 1977 में हुए आम चुनाव में आपातकाल में अति उत्साह में हुए कई अतिरेकी कार्यों से उपजे जनअसंतोष के कारण इंदिरा गांधी व संजय गांधी सहित कांग्रेसी नेताओं व कई मंत्रियों को जनता ने दुत्कार दिया. केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली बार कई दलों को मिलाकर नवनिर्मित जनता पार्टी की सरकार बनी, तो अटलबिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री नियुक्त हुए. विदेश मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने भारत की गरिमा व साख को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया, संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रथम बार उनका राष्ट्रभाषा हिंदी में दिया गया भाषण भारतीयों को गौरवान्वित करने वाली अविस्मरणीय घटना रही. मोरारजी सरकार द्वारा कई अच्छे व जनाभिमुख कार्य करने के बावजूद जनता पार्टी में शामिल विभिन्न विचारों वाली पार्टियों अपने मूल विचारों से हटकर समझौता न कर पाने के कारण पार्टी में सिर फुटौवल होकर ढाई वर्षों में ही सरकार का पतन हो गया. जनता पार्टी से अलग होकर पूर्ववर्ती जनसंघ के धड़े ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया. 6 एप्रिल 1980 को अटलजी को भारतीय पार्टी की स्थापना से प्रथम अध्यक्ष चुना गया.
प्रथम बार पीएम पद की शपथ
16 मई 1996 को अटलबिहारी वाजपेयी प्रथम बार भारत के प्रधानमंत्री बने व 13 दिनों के बाद त्यागपत्र दे दिया. अटलजी ने पुन: दूसरी बार 19 मार्च 1998 के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली व 13 महिनों बाद संसद में मात्र एक वोट कम होने के कारण त्यागपत्र दिया. 13 अक्टूबर 1999 को अटलजी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली व साढे चार साल गरिमामय तरीके से पद पर रहकर समय पूर्व चुनाव करवाने हेतु पद त्याग किया.
कथनी व करनी में अंतर न करनेवाले कर्तृत्वान अटलजी
प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी के कार्यों व उनकी नेतृत्व क्षमता की सभी प्रशंसा करते हैं, कठिन व विपरीत परिस्थितियों का भी उन्होंने बड़ी सहजता व धैर्य के साथ सामना किया. अटलजी सभी पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने व आपसी सहमति से समस्याओं का समाधान करने के सदैव पक्षधर रहे, उनका उदारवादी दृष्टिकोण मानवीय पक्ष को ही दर्शाता है. पड़ोसी देशों से सम्बंध सुधारकर शांति सह अस्तित्व की नीती के अनुरूप उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल सहित लाहौर की बस से यात्रा कर वार्ता को नए सिरे से आगे बढाने के अटलजी के प्रयासों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहना हुई, किन्तु पाकिस्तानी शासकों के अड़ियल रुख से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकले व देश को कारगिल का युद्ध देखना पड़ा.
अटलजी के कार्यकाल में ही प्रकृति के प्रकोप से हर वर्ष आनेवाली बाढ व सूखे से किसानों को होनेवाले नुक़सान से बचाने हेतु देश की सभी नदियों को आपस में जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना अटलजी के कार्यकाल में ही आई जिसको नदी जोड़ो नाम दिया गया. इसके अलावा देश के चारों कोनों को आपस में जोड़नेवाले स्वर्णिम चतुरभुज राष्ट्रीय महामार्ग का निर्माण भी अटलजी के कार्यकाल में ही किया गया था. उसी योजना के अनुरूप सभी राज्यों की राजधानीयों को उपरोक्त महामार्ग से जोड़ा गया था.
राजनीति से परे राष्ट्र प्रथम को दिया बल
भारतीय लोकतंत्र में लगभग हर पक्ष कभी सता में तो कभी विपक्ष में रहता ही है. बहुत बार हम देखते है कि, एक ही मुद्दे पर विपक्ष और सत्ता में रहते हुए लगभग सभी दलों के नेताओं के सुर अलग अलग होते हैं. अटलजी इसके अपवाद रहे हैं. इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार है. हिंदी के प्रबल पक्षधर अटलजी ने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिलाने हेतु विदेश मंत्री रहते समय संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा को हिंदी में सम्बोधन करके हिंदी व भारतीयों का गौरव बढ़ाया. व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा राष्ट्र हो, यह बात सदा अटलजी कहते रहते थे. उसी के अनुरूप पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्रीजी का पूर्ण समर्थन करके अटलजी ने अपनी नीति व राष्ट्रवादिता का परिचय दिया. अटलजी ने बंगलादेश युद्ध के समय भी इंदिरा गांधी का पूर्ण समर्थन ही नहीं किया, बल्कि भारत की विजय पर इंदिराजी को संसद में दुर्गा का अवतार कह कर संबोधित किया था. कांग्रेस की नीतीयों के प्रखर आलोचक रहने के बावजूद इंदिरा जी के समय स्वीकृत की गई राष्ट्रीय नीती के अनुसार पोखरण में किए गए पहले अणु परीक्षण का वाजपेयी जी ने खुलकर समर्थन करने के साथ ही इंदिराजी की तारीफ की थी. यहां इस बात का उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है कि अटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के अनुरूप पोखरण में दूसरा अणु परीक्षण करने पर कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए अपनी घटिया मानसिकता का परिचय दिया था, जिस पर अटलजी ने दुख व्यक्त किया था.
प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव ने कार्यकाल में कश्मीर के विषय पर भारतीय पक्ष मज़बूती से रखने व पाकिस्तान के कुतर्कों को सटीक उत्तर देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में जानेवाले प्रतिनिधी मंडल का नेतृत्व करने की जवाबदारी प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने अटलबिहारी वाजपेयी को सौंपी थी. जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. विशेष उललेखनीय है कि उपरोक्त प्रतिनिधि मंडल रवाना होने के पूर्व उसमें अटलजी शामिल रहने की खबर जब पाकिस्तान पहुँची, तो पाकिस्तानियों में खुशी की लहर दौड़ी कि वर्तमान सरकार के विरोधी वाजपेयी का आना पाकिस्तान को फ़ायदा पहुँचाएगा. किन्तु राष्ट्रीय अस्मिता के रक्षक की भूमिका में अटलजी ने नरसिंहराव सरकार की हर बात को संयुक्त राष्ट्र संघ में उचित ठहराकर भारत का सम्मान ही बढ़ाया व पाकिस्तान को नीचा साबित किया. अटलजी सता में रहे हों, या विपक्ष में विचारों में मतभेद होने के बावजूद उनके सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से व्यक्तिगत सम्बन्ध बेहद मधुर रहे, इसीलिए ही अटलजी को अजात शत्रु कहा जाता था.
अस्वस्थता, निधन व सम्मान
स्वास्थ्य समस्याओं के चलते अटलजी सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त होकर कई दिनों तक एकांतवास में रहे और मधुमेह व अन्य बीमारियों से पीड़ित होने के कारण 16 अगस्त 2018 को उन्होंने इस संसार से बिदा ली. अपने जीवन में कई पुस्तकें लिखनेवाले कवि व राष्ट्रीय विचारक श्रद्धेय अटलबिहारी वाजपेयी को भारत के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया था. उनके सम्मान में वर्तमान सरकार ने कई योजनाएँ उनके नाम से प्रारंभ की है, सबसे उल्लेखनीय है कश्मीर में नवनिर्मित ऐतिहासिक सुरंग, जिसे अटल टनल नाम दिया गया है, उनके जन्मदिन को गुड गवर्नेंस डे के रुप में मनाने की भी घोषणा सरकार ने की है.
अजातशत्रु महामानव अटल बिहारी वाजपेयी को आज उनकी चतुर्थ पुण्यतिथी पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नमन.
– दयाराम अमलानी, अमरावती.
9422880026

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