
* दिग्गज कलाकारों के शास्त्रीय संगीत से सजी महफिल
अमरावती/दि.25-‘जाओ बलमा नाही बोलू ….हमसे …’ उसका लाड भरा नखरा, स्नेह के रंग उछालता ‘बलमवा तुम क्या जानो प्रीत…’ कहते हुए कभी उनका किया गया प्रेमयुक्त निषेध ऐसे प्रेेम रंग विरह …भावपूर्ण , शब्द प्रधान गायन यानी ठुमरी . खूबसूरत हकीकत फेम आयवी बैनर्जी के ठुमरी गायन ने उपरोक्त रंग उडेंले. अपनी खनकदार किंतु मधुर आवाज से ठुमरी जागृत की. ठुमरी सुनने का कर्णप्रिय आनंद सैकडों रसिकों ने रविवार शाम लूटा.
श्री अंबादेवी संस्थान द्बारा 22 से 24 नवंबर तीन दिनों तक आयोजित शास्त्रीय संगीत सेवा समारोह में रसीक श्रोता सराबोर हो गये. रविवार को समापन सत्र में आयवी बैनर्जी ने गायन प्रस्तुत किया. उनका संस्थान की ओर से स्वागत दीपा खांडेकर ने किया. दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ.
उत्तर भारत में ठुमरी प्रसिध्द
ठुमरी गायन का लखनवी अंदाज, पूरब अथवा बनारसी ढंग, पंजाबी और ,ख्याल अंग की ठुमरी एवं राजस्थानी ढंग की ठुमरी गायी जाती है. प्रत्येक शैली की अपनी विशेषता है. स्वर, लय, बोल से भाव पैदा करना यह ठुमरी के मुख्य लक्षण है. शब्द प्रधान और भावना प्रधान ऐसे गीतों की रचना हुई है. ठुमरी में प्रेम के अनेक रंग, श्रृंगार के विविध रंग, छटा , विरह, माधुर्य यानि ठुमरी. इसे संपूर्ण परिवेश में प्रस्तुत किया. आयवी बैनर्जी ने. पहली ही प्रस्तुति ने रसीक श्रोताओं की तालियां बटोरी.्उपरांत रंगतदार दादरा प्रस्तुत किया. ‘ जरा धीरे बोलो कोई सुन लेगा…तेरी कंटीली निगाहों ने मारा… अदाओं ने मारा…’ मुजफ्फर अली तथा राही मासूम रजा की स्मृतियों को ताजा करते हुए लोकप्रिय रचना ‘सैयां निकस गये…मैं ना लडी थी…’ एक से बढकर एक रचनाओं से आयवी बैनर्जी ने उपस्थितों को रिझा लिया. प्रियतम चले गये. किंतु मैंने लडाई नहीं की. यह उनकी सफाई श्रोताओं को पसंद आयी.
‘हमरी अटरियां पे आओ सावंरिया….’ देखा देखी बलम होई जाय …. तसव्वुर मे ंचले आते हो, कुछ बाते भी होती है. शबे फुर्रक भी होती है, मुलाकाते भी होती है, आयवी के साथ ही पिनाकी द्बारा तबले पर की गई संगत श्रोताओं को बडी पसंद आयी.
सांझ भई घर आओ नंदलाला …एक भावना प्रधान अनुुरोध… राधा कृष्ण के अमर प्रेम यह ठुमरी का पसंदीदा विषय. ‘जमुुना किनारे मोरा गांव … सांवरे आ जाइयो… ’ उसे स्नेह का खुला निमंत्रण देनेवाली यह श्रीमंत दीवानी. राधा कृष्ण के प्रेम पर आधारित अजरामर रचना. उसे अनेक प्रकार से मनाने का प्रयत्न करती है.
‘वो जो हममे करार था…तुम्हे याद हो कि ना हो… उनका प्रेम इतना सच्चा कि याद न रहे तो भी चलता… किंतु उसे भूलना असंभव… आंखे सजल कर देनेवाली सच्चाई जीवंत की.
फिर से झूला झूूलाओ बनवारी… झूला उस पर धीमे से झूले लेने वाले राधाकृष्ण आंखों के सामने दिखाई देने लगे. यही उनका गायन सामर्थ्य ! बंगाली सुंदरता और प्रसन्न मुद्रा से आयवी बैनर्जी के गायन ने, लटको झटको ने श्रोताओं को प्रेम से अतर बतर कर दिया. े तबला और हार्मोनियम की सुरीली संगत ने दूध में शक्कर का काम किया. ठुमरी, दादरा यानि आयवी. आयवी को संवादिनी पर संगत करनेवाले देश के विख्यात देवाशीष अधिकारी और तबले पर संगत राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता पिनाकी चक्रवर्ती ने की. जिससे कार्यक्रम की शान दुगुनी हो गई थी. उनका स्वागत डॉ. जैन पांढरीकर ने किया. श्रोताओं की तालियों की गडगडाहट के साथ पूर्ण हुई श्रवणीय महफिल दिलों में लंबे समय तक रहेगी, निसंशय !