‘बच्चू’ ने बताया राजनिती क्या होती है?
यदि प्रहार के दिनेश बूब नहीं होते तो शायद जीत जाती नवनीत राणा
* ज्वाईंट किलर साबित हुए बच्चू और प्रहार पार्टी
अमरावती/दि.5- अमरावती लोकसभा सीट न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय थी. नवनीत राणा की हार जीत पर राजनिती के जानकार नजर रखे हुए थे. भारतीय जनता पार्टी और विशेषकर अमित शाह और देवेन्द्र फडणवीस की राजनितीक नजदीकी मानी जाती नवनीत राणा को पार्टी हर हाल में चुनाव जीताना चाहती थी. इसीलिए जिले के अधिकांश स्थानीय नेताओं के विरोध के बावजूद पार्टी प्रवेश के पहले ही नवनीत की उम्मीदवारी घोषित कर दी गई और रात 12 बजे चंद्रशेखर बावनकुले के निवास स्थान पर नवनीत का पार्टी प्रवेश कराया गया. उस समय ऐसा लग रहा था कि नवनीत राणा चुनाव जीत जाएगी. लेकिन प्रहार जनशक्ति पार्टी के मुखीया बच्चू कडू ने ऐन वक्त पर 4 अप्रैल को दिनेश बूब की उम्मीदवारी दाखिल कर भाजपा और नवनीत राणा का खेल बिगाडने की शुरूआत कर की.
पाठकों को याद होगा कि चुनाव घोषित होते ही मार्च माह में बच्चू कडू लगातार अमरावती लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार खडा करने की बात कहते रहे. शुरू-शुरू में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को लगा की बच्चू राजनितीक सौदेबाजी कर रहे है और उन्हें मना लिया जाएगा. लेकिन भाजपा के राज्य के नेता बच्चू को मनाने में नाकामयाब रहे. क्योंकि बच्चू और राणा दंपत्ती की अदावत बढती जा रही थी. दोनों ने राजनिती से परे जाकर एक दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत अदावत पाल ली. एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनते समय बच्चू कडू के गुवाहाटी जाने पर रवी राणा व्दारा बच्चू पर लगाया गया 50 खोके के आरोप का विवाद इतना गर्माया कि बच्चू और राणा दंपत्ती एक दूसरे को देख लेने की भाषा करने लगे. इस वर्ष की शुरूआत में विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान राणा दंपत्ती ने बच्चू कडू के विधानसभा क्षेत्र में जाकर तीन बार विधायक रहे और राज्य में पार्टी के मुखीया बच्चू कडू को जोरदार निशाना बना कर लताडा.
बच्चू मौके की फिराक में थे. अंदरबट्टे यह बताया जाता है कि अमरावती लोकसभा से उम्मीदवार खडा करने के लिए बच्चू ने राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पहले ही मना लिया था.
बच्चू ने दिनेश बूब पर दांव साधा. वे दिनेश बूब जिनकी पहले से ही रवी राणा से जबरदस्त अदावत थी. लगभग तीन वर्ष पहले दिपावली मिलन के एक कार्यक्रम में रवी राणा और दिनेश बूब के बीच मारपीट हो चुकी थी. दिनेश बूब भी चाहते थे कि राणा की राजनिती खत्म हो. सूत्रों के अनुसार जब बलवंत वानखडे की टिकट घोषित हुई. उसके दो दिन बाद यानी 30 मार्च के लगभग बच्चू और दिनेश बूब की उम्मीदवारी को लेकर पहली और अंतिम बैठक हुई. पूरे चुनाव में बच्चू कडू और दिनेश बूब दोनों कहते रहे कि वे चुनाव में जीत के लिए खडे है. लेकिन चार दशकों से राजनिती मे सक्रिय बच्चू और दिनेश दोनों जानते थे कि प्रहार का उम्मीदवार आना लगभग ना मुमकिन है. इन दोनों का उद्देश्य था राणा को गिराना. चुनावी परिणामों में दोनों अपने उद्देश्य में सफल साबित हुए.
यदि प्रहार की उम्मीदवारी नहीं होती तो नवनीत और रवी राणा की लोकप्रियता के सामने बलवंत वानखडे तथा महाविकास आघाडी फिकी पड जाती. क्योंकि नवनीत और रवी राणा का चेहरा मीडिया के लिए हमेशा पहली पसंद रहा है. लेकिन प्रहार की उम्मीदवारी आते ही प्रादेशिक चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया में राणा के बराबर बच्चू चलने लगे. दोनों के आरोप-प्रत्यारोप, बयान बाजीयां मीडिया में हावी रही. कुछ दिनों के लिए लोगोें को लगा कि बच्चू और राणा में ही फाईट है. परंतु जमीनी हकीकत कुछ और थी. यशोमती ठाकुर के नेतृत्व में चुनाव लड रही महाविकास आघाडी अंदर ही अंदर मजबूूत होती जा रही थी. दूसरी तरफ बच्चू ने राणा दंपत्ती को उलझाए रखा. चुनावी परिणाम के आंकडे बताते है कि दिनेश बूब के 88 हजार वोटों में लगभग 70 से 80 प्रतिशत मतदाता हिंदूत्ववादी मानसिकता वाले रहे हैं. इसका मतलब दिनेश बूब नहीं होते तो राणा कम से कम 50 हजार वोटों से आसानी से चुनाव जीत जाती. इस बात को इसलिए भी बल मिलता है कि प्रहार के दिनेश बूब ने अपना पूरा चुनाव टारगेट रुप में लडा. बच्चू कडू ने 100 जाहिर सभाएं की जिनमें से केवल 3 सभाएं मुस्लिम दलित इलाकों में हुई. इसका मतलब कांग्रेस का गठ्ठा वोंट जिन इलाकों में था, वहां प्रहार ने प्रचार ही नहीं किया. मतदान का दिन आते-आते बच्चू के पैंतरे समझ में आने लगे थे. परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी. हालांकि बच्चू कडू को खुद को भी विश्वास था कि उनके उम्मीदवार को डेढ लाख के लगभग वोट मिलेंगे. लेकिन प्रहार जनशक्ति पार्टी और बच्चू कडू तथा दिनेश बूब के समर्थित समझदार मतदाताओं को जब यह समझ में आया कि दिनेश बूब की उम्मीदवारी राणा को गिराने के लिए है तो प्रहार का वोंट बैंक कम होने लगा. जानकारी तो यह भी है कि मतदान के दिन भी प्रहार के कई पदाधिकारियों ने एक दूसरे को दर्यापुर और अचलपुर विधानसभा क्षेत्र में पंजा चलाने के लिए फोन किए.
चुनाव के दौरान बच्चू कडू यह संभ्रम फैलाने में भी सफल रहे कि उनकी उम्मीदवारी से भाजपा को भी फायदा हो सकता है. परंतु असल में प्रहार की उम्मीदवारी का पूरा फायदा बलवंत वानखडे को मिला. क्योंकि दलित-मुस्लिम इलाकों में दिनेश बूब बिल्कूल नहीं चले. अमरावती विधानसभा में जहां पंजे को 40 हजार से अधिक की लीड है. वहां दिनेश बूब को केवल 6 हजार के लगभग वोट मिले है. दर्यापुर विधानसभा क्षेत्र जहां ऐसा कहा जा रहा था कि पांढरी खानापुर के विषय के कारण मराठा वोट कांग्रेस को कम मिलेगे, वहां बच्चू ने खूब जोर लगाया और दिनेश बूब को सबसे अधिक दर्यापुर विधानसभा क्षेत्र में 20 हजार से अधिक वोंट मिले. मेलघाट विधानसभा में राणा का दावा था कि भाजपा को यहां 70 हजार की लीड मिलेगी. इसलिए एक विधायक होने के बावजूद मेलघाट विधानसभा में भी प्रहार के उम्मीदवार कम सक्रिय रहे. इस विधानसभा में भी प्रहार केवल 10 हजार वोट ही ले पाई और कांग्रेस 70 हजार से उपर पहुंची. भाजपा की लीड के दावे कम होकर 30 हजार तक आ गए. यदि भाजपा को यहां 50 हजार से अधिक की लीड मिलती तो भी शायद नवनीत राणा जीत सकती थी.
साईंसकोर मैदान का विवाद भी नवनीत राणा के वोट कम कर गया. राजनिती के जानकारों के लिए अब तक यह समझना मुश्किल है कि साईंसकोर मैदान के विवाद को भाजपा ने जानबुझ कर इतना बडा क्यों किया. इस विवाद के कारण बच्चू कडू और दिनेश बूब को जबरदस्त माईलेज मिला. बच्चू कडू टीवी चैनलों पर खबरों में बने रहने के लिए पैंतरे अपनाने वाले पुराने खिलाडी है. बच्चू कडू ने साईंसकोर का विवाद दो दिन जिंदा रखा और अंत में एकनाथ शिंदे के फोन पर पीछे हट गए, लेकिन इसका फायदा यह हुआ कि प्रचार की अंतिम रैली में लगभग 50 हजार प्रहार कार्यकर्ता अमरावती पहुंचे थे.
बच्चू कडू ने अमरावती लोकसभा से जब भी अपना उम्मीदवार खडा किया तो वह 75 हजार के लगभग वोट पाते है. डॉ. राजू जामठे को 75 हजार ही वोट मिले थे. 10 साल बाद दिनेश बूब के खाते मेें 13 हजार वोट अधिक पडे. लेकिन बच्चू कडू और दिनेश बूब अपना कांटा निकालने में सफल हो गए.
चुनाव के पूर्व बच्चू ने नवनीत राणा को गिराने और राणा दंपत्ती ने पूरे एनडीए को अमरावती में एक मंच पर बिठाने की कसमें खायी थी, दावे-प्रतिदावे किए थे. राणा दंपत्ती अपने दावों में खोडके और बच्चू को छोडकर लगभग सफल रही. लेकिन बच्चू अपनी घोषणा और दावों पर शतप्रतिशत खरे उतरे. कल परिणाम के दिन बच्चू कडू ने दैनिक अमरावती मंडल से बातचीत में कहा कि नवनीत राणा के हारने के बाद अभी आधा काम पूरा हुआ है. भविष्य में बचा हुआ काम पूरा करेगें. बच्चू कडू का इशारा साफ तौर पर रवी राणा के चुनाव की ओर था. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि रवी राणा के विधानसभा चुनाव के समय क्या राणा एनडीए के घटक दल के रुप में चुनाव लडते है या युवा स्वाभिमान पार्टी के उम्मीदवार कहलाएगें. इस बार विधानसभा चुनाव में भी रवी राणा की डगर आसान नहीं होगी.