बच्चु कडू अपना हर फैसला लेने के लिए पहले से स्वतंत्र
शिवसैनिकों द्वारा किया जाता विरोध है समझ से परे
* बच्चु कडू की है खुद अपनी पार्टी और वे खुद है पार्टी सुप्रीमो
अमरावती/दि.25– इस समय राज्य में महाविकास आघाडी से बगावत करनेवाले विधायकों के खिलाफ शिवसैनिकों द्वारा उग्र भूमिका अपनायी जा रही है. जिसके तहत गुवाहाटी में बागी सेना विधायकों के साथ मौजूद राज्यमंत्री बच्चु कडू के निर्वाचन क्षेत्र अचलपुर में शिवसैनिकों द्वारा बच्चु कडू के बैनर-पोस्टर फाडे जाने की घटना सामने आयी. जिसे लेकर खुद कई राजनीतिज्ञों द्वारा हैरत जतायी जा रही है. क्योंकि बच्चु कडू ने शिवसेना के साथ कोई बगावत नहीं की है, बल्कि निर्दलीय विधायक होने के नाते वे और राजकुमार पटेल अपना हर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है. इसके अलावा यह भी अपने आप में एक तथ्य है कि, राज्यमंत्री बच्चु कडू की राज्यस्तर पर सशक्त उपस्थिति व ताकत रखनेवाली अपनी खुद की पार्टी है और वे अपनी प्रहार जनशक्ति पार्टी के सुप्रीमो है. ऐसे में उनके द्वारा लिये गये फैसले को किसी अन्य दल के साथ बगावत या गद्दारी नहीं कहा जा सकता.
उल्लेखनीय है कि, प्रहार जनशक्ति पार्टी के संस्थापक बच्चु कडू को युवा व तेज-तर्रार नेता माना जाता है तथा उनके द्वारा किये जानेवाले आक्रामक आंदोलनों की शैली हमेशा ही सबसे अलग रही. जिसने देखते ही देखते बच्चु कडू को शहर व जिले सहित संभाग एवं राज्यस्तर पर युवाओं के बीच लोकप्रिय कर दिया. राजनीति के साथ-साथ जरूरतमंदों की सहायता और मरीजों की सेवा सहित दिव्यांगों व अनाथों के पुनर्वास हेतु बच्चु कडू द्वारा किये जानेवाले कार्य भी हमेशा चर्चा में रहे. इन्हीं कामों के बदौलत बच्चु कडू लगातार चार बार अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडते हुए विधायक निर्वाचित हुए और वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में बच्चु कडू ने प्रहार पार्टी से खुद अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र से लगातार चौथी बार निर्दलीय विधायक के तौर पर जीत दर्ज करने के साथ ही साथ मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र से राजकुमार पटेल को प्रहार के जरिये निर्दलीय विधायक के रूप में जीत दिलवायी. जिसके बाद इन दोनों ने वर्ष 2019 में सत्ता को लेकर चल रही उठापटक के बीच शिवसेना को अपना समर्थन दिया था और महाविकास आघाडी की सरकार बनने के बाद बच्चु कडू को शिवसेना के कोटे से राज्यमंत्री बनाया गया था.
लेकिन यहा इस तथ्य को याद रखा जाना चाहिए कि, शिवसेना के कोटे से राज्यमंत्री का पद मिलने के बाद भी बच्चु कडू ने विधान मंडल सहित राज्य की राजनीति में अपना और अपनी प्रहार जनशक्ति पार्टी का अस्तित्व कायम रखा था और उन्होेंने कभी भी शिवसेना सहित अन्य किसी भी दल की राजनीतिक विचारधारा का समर्थन नहीं किया. चूंकि उस समय शिवसेना सहित कांग्रेस व राकांपा को सरकार बनाने हेतु निर्दलीय विधायकों की जरूरत थी. ऐसे में शिवसेना द्वारा दो विधायक संख्या रहनेवाले बच्चु कडू से समर्थन हेतु संपर्क किया गया और बच्चु कडू ने भी उस समय की राजनीतिक जरूरतों को देखते हुए शिवसेना का समर्थन किया. जिसकी ऐवज में महाविकास आघाडी की सरकार बनने पर बच्चु कडू को राज्यमंत्री बनाया गया. इस मौके का राज्यमंत्री बच्चु कडू ने अपने निर्वाचन क्षेत्र अचलपुर सहित अपने सहयोगी विधायक राजकुमार पटेल के निर्वाचन क्षेत्र मेलघाट के विकास हेतु अच्छा फायदा उठाया और उन्होंने इन दोनों निर्वाचन क्षेत्रों के लिये अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए कई विकास योजनाओं को मंजूरी देते हुए विकास निधी भी खींचकर लायी.
लेकिन राजनीति में स्थितियां कभी भी सम-समान नहीं रहती है और राजनीति का पहिया बडी तेजी से घुमता है. जिसके चलते समीकरण पूरी तरह से उलट-पुलथ होकर बदल जाते है. ऐसा ही इस बार भी हुआ और अब सेना नेता एकनाथ शिंदे द्वारा शिवसेना के करीब 40 विधायकों को अपने साथ लेकर बगावत कर दी गई है. जिसके चलते महाविकास आघाडी सरकार खतरे में आ गई है और बागी गुट का पलडा भारी हो गया है. रविवार की सुबह शिवसेना में बगावत होने और महाविकास आघाडी सरकार के अस्थिर हो जाने की खबर सामने आने के बाद प्रहार संस्थापक व राज्यमंत्री बच्चु कडू ने रविवार व सोमवार तक पूरे हालात की समीक्षा की तथा राज्य के राजनीतिक भविष्य और अपनी पार्टी व अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए बेहतरीन मौके देखते हुए उन्होंने अपने सहयोगी विधायक राजकुमार पटेल के साथ गुवाहाटी पहुंचकर सेना के बागी विधायकों के गुट को अपना समर्थन दे दिया. साथ ही राज्यमंत्री बच्चु कडू ने यह भी कहा कि, वे सरकार बनने के पहले दिन से सरकार में भेदभावपूर्ण तरीके से काम होने की बात कह रहे थे. उस समय उनकी बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. लेकिन आज खुद शिवसेना विधायकों द्वारा कहा जा रहा है कि, मुख्यमंत्री के पास उनसे मिलने के लिए वक्त नहीं हुआ करता था. ऐसे में अन्य दलों से वास्ता रखनेवाले विधायकों की स्थिति को लेकर कल्पना की जा सकती है.
लेकिन राज्यमंत्री बच्चु कडू द्वारा अपने सहयोगी विधायक राजकुमार पटेल के साथ गुवाहाटी जाकर सेना के बागी गुट का समर्थन करना शिवसेना के स्थानीय पदाधिकारियों को बेहद नागवार गुजरा है. यही वजह है कि, अचलपुर शहर में शिवसैनिकों ने कई स्थानों पर लगे राज्यमंत्री बच्चु कडू के बैनर व पोस्टर फाड दिये है और बच्चु कडू को गद्दार बताते हुए उनके खिलाफ नारेबाजी की जा रही है, लेकिन सबसे मुख्य सवाल यही है कि, जब राज्यमंत्री बच्चु कडू शिवसेना के विधायक ही नहीं है, तो उनके द्वारा उठाये गये कदम को शिवसेना के साथ बगावत कैसे कहा जा सकता. खुद एक पार्टी के मुखिया रहनेवाले बच्चु कडू ने किसी समय तत्कालीन राजनीतिक जरूरतों को देखते हुए शिवसेना को अपना समर्थन दिया था और अब बदली हुई राजनीतिक स्थितियों में उन्होंने शिवसेना से अपना समर्थन वापिस लेते हुए किसी अन्य गुट को अपना समर्थन दिया है. ऐसे में स्थानीय शिवसैनिकों द्वारा उनका विरोध किया जाना समझ से परे है.
यहां इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि, प्रहार जनशक्ति पार्टी के मुखिया बच्चु कडू की पार्टी केवल अचलपुर व मेलघाट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि संभाग सहित राज्य के कई स्थानीय स्वायत्त निकायों में बच्चु कडू की पार्टी ने बडे सशक्त ढंग से अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और कई स्थानीय स्वायत्त निकायों में उनकी पार्टी के प्रत्याशियों ने शानदार जीत भी हासिल की है. ऐसे में राज्यमंत्री बच्चु कडू की ताकत को हलके में नहीं लिया जा सकता. साथ ही उल्लेखनीय तो यह भी है कि, मंत्री पद मिलने के बाद भी ‘ग्राउंड लेवल’ पर काम करनेवाले और हमेशा ‘लो प्रोफाईल’ रहनेवाले बच्चु कडू एकमात्र नेता है. जिन्होंने राज्यमंत्री पद मिलने के बाद अचलपुर व मेलघाट में ‘सरकार आपके द्वार’ जैसा उपक्रम चलाते हुए आम नागरिकों के प्रलंबित सरकारी व प्रशासकीय कामों को मौके पर तुरंत पूरा करवाने का अभियान भी शुरू किया था. ऐसे में राज्यमंत्री बच्चु कडू द्वारा उठाये गये कदम को अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखते हुए उठाया गया कदम माना जा सकता है, क्योंकि निर्दलीय विधायक होने के नाते बच्चु कडू किसी राजनीतिक दल के प्रति नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्र के प्रति जवाबदेह है. ऐसे मेंं उनकी भूमिका पर किसी अन्य राजनीतिक दल के पदाधिकारियों को आपत्ति व आक्षेप उठाने का अधिकार ही नहीं है.