नए घटनाक्रम से बच्चू कडू समर्थक खफा
स्वयं कडू ने मंत्री पद न मिलने से व्यक्त की नाराजगी
अमरावती/दि.4- राकांपा नेता अजीत पवार के शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल होने के बाद प्रहार जनशक्ति पक्ष के विधायक बच्चू कडू ने भले ही स्वागत किया है. किंतु उनके समर्थक खासे नाराज हो गए हैं. कडू ने भी ताना मारा था कि कल तक जो खोके सरकार कह रहे थे, वह आज ओके कहते हुए सरकार में आ गए. उन्होंने यह भी कहा था कि, विरोध में रहकर कोई फायदा नहीं है, विकास का राजकारण करना चाहिए, अजीत पवार को यह भान हो गया इसलिए एकनाथ शिंदे की विकास लहर पर पवार सवार हो गए.
प्रदेश में सालभर पहले सत्तातंर के समय एकनाथ शिंदे का साथ देने में बच्चू कडू अग्रणी थे. उनके सहयोगी राजकुमार पटेल ने भी सरकार को साथ दिया. उनके समर्थकों को अपेक्षा थी कि बच्चू कडू को पहले ही चरण में मंत्री पद प्राप्त होगा, किंतु कडू को लटकाए रखा गया. कडू ने खुद मंत्री पद नहीं मिलने पर नाराजगी व्यक्त की थी. उन्हें दिव्यांग कल्याण विभाग का अध्यक्ष पद दिया गया है. मंत्री पद की श्रेणी दी गई है, किंतु इतने पर कार्यकर्ता को संतोष नहीं है.
कडू ने जब एकनाथ शिंदे के विद्रोह का समर्थन किया था, गुवाहाटी गए थे, उस समय भी अनेक ने आश्चर्य व्यक्त किया था. कडू का चुनाव के समय कांग्रेस व भाजपा से संघर्ष हुआ अब उन्हें नए समीकरणों में राजकीय कदम उठाने के बारे में सोच विचार करना पड रहा है.
बच्चू कडू महाविकास आघाडी सरकार में राज्य मंत्री थे. उन्हें अकोला जिले का पालकमंत्री बनाया गया था. उस समय उपमुख्यमंत्री रहे अजीत पवार के पास वित्त मंत्रालय था. 9 फरवरी 2021 को अमरावती संभाग वार्षिक नियोजन बैठक में फंड को लेकर अजीत पवार और बच्चू कडू के बीच शाब्दिक जंग देखने मिली थी. अकोला जिले के लिए दिए गए फंड पर कडू को संतोष न था. जिससे उन्होंने आक्रमक होकर नाराजी जताई थी.
जिले से दो निर्दलिय कडू और रवि राणा ने शिंदे-फडणवीस सरकार को समर्थन दिया था. अब राकांपा के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय खोडके भी अजीत पवार के साथ रहने से सत्तारुढ गुट मजबूत हो जाने का दावा किया जा रहा है. दूसरी ओर संजय खोडके की पत्नी सुलभाताई खोडके कांग्रेस की विधायक हैं. सुलभाताई ने कांग्रेस में ही रहने और पंजे पर चुनाव लडने की घोषणा की है. तथापि अनेक नेता संभ्रम अवस्था में हैं. पूर्व मंत्री हर्षवर्धन देशमुख और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष प्रा. शरद तसरे ने शरद पवार के साथ रहने का निर्णय किया है.
चुनाव के लिए 1 साल का समय शेष है. जिससे राजनीतिक समीकरणो को लेकर अटकले शुरु हो गई है. फिलहाल जिले में राकांपा का एक भी विधायक नहीं है. मोर्शी के अपक्ष विधायक देवेंद्र भुयार राकांपा गट में माने जाते हैं. बहरहाल मनपा और जिला परिषद में राकांपा को विशेष सफलता नहीं मिली थी. 2014 में संजय खोडके को पार्टी से निकाला गया था. उसके बाद पार्टी का स्थानीय स्तर पर हुआ नुकसान अब तक पूरा नहीं हो सका है. ऐसी स्थिति में खोडके की भूमिका महत्वपूर्ण है. जिले के राजकारण में शीघ्र ही जोरदार अंतरविरोध एवं दावपेंच देखने मिल सकते हैं.