बांबू खेती बनाएगी किसानों को मालामाल
जैविक इंधन, लकडी व कागज के लिए उपयुक्त, अनुदान भी मिलेगी
अमरावती/दि.6 – मौसम में होने वाले बदलाव की वजह से पैदा हुई परिस्थितियों के साथ संतुलन बनाए रखने हेतु अब बांबू यानि बांस की खेती का पर्याय सामने आया है और नानाजी देशमुख कृषि संजीवनी प्रकल्प (पोकरा) में बांबू खेती का समावेश किया गया है. जैव इंधन, लकडी व कागज की प्राप्ति हेतु बांबू बेहद महत्वपूर्ण होता है. अत: बांबू की खेती के लिए सरकार द्बारा अनुदान भी दिया जाता है. जिसके चलते कहा जा सकता है कि, बांबू की खेती से क्षेत्र के किसान मालामाल हो सकते है.
बता दें कि, जमीन तक पहुंचने वाली सूरज की किरणों को रोकने के साथ-साथ जमीन की कसावट को बढाने के लिहाज से बांबू की खेती को महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके अलावा जमीन के जैविक घटकों का संवर्धन करते हुए वातावरण में कार्बन उत्सर्जन की वजह से होने वाले दुष्परिणाम को कम करने के लिए भी बांबू की खेती महत्वपूर्ण मानी जाती है. एसके साथ ही बांबू पर आधारित कई छोटे-बडे उद्योगों को गतिमान करते हुए किसानों का आर्थिक स्तर उंचा उठाने में भी मदद हो सकती है. जिसके चलते किसानों के खेतों में, धुरों पर तथा खेत-तालाब के आसपास बांबू की बुआई को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. इसके लिए प्रति पौधा अनुदान व वित्तीय सहायता भी दी जाती है. उपलब्ध जमीन का अधिक प्रयोग करने के साथ ही फसल उत्पादन के लिए अयोग्य व बंजर पडी जमीन का प्रयोग भी इस कार्य हेतु किया जा सकेगा. उक्ताशय की जानकारी देते हुए कृषि विभाग ने बताया कि, इस प्रकल्प अंतर्गत प्रति पौधा 120 रुपए तक के अनुदान की मर्यादा तय की गई है.
* कैसी भी जमीन चलेगी, कम पानी का प्रयोग
एक बार बांबू का वृक्ष लगाने पर उसके जरिए अगले 40 वर्ष तक उत्पादन हासिल किया जा सकता है. बांबू के एक वृक्ष हेतु केवल 150 रुपए तक खर्च आता है और इसके लिए सरकार द्बारा 50 फीसद तक अनुदान दिया जाता है. खेतीपूरक उद्योग के लिहाज से बांबू की बुआई व खेती काफी महत्वपूर्ण है.