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भारानी परिवार के नंदा साडी सेंटर ने बढाया अमरावती का नाम

सूरत के बाद ‘अमरावती’ होलसेल कपड़ा व्यापार प्रसिद्ध

* नंदलाल व गोपीचंद भारानी बंधुओं की लगन, दूरदर्शिता
* शानदार परंपरा आगे बढा रही अगली पीढी
* व्यापारे वसते लक्ष्मी का मंत्र
अमरावती/दि.10– व्यापारे वसते लक्ष्मी का मंत्री आत्मसात किए 7 दशक पहले नंदलाल व गोपीचंद भारानी बंधुओं द्वारा शुरु किये गए नंदा साडी सेंटर ने आज न केवल भारत भर में नाम कमाया है अपितू इन बंधुओं की बदौलत अमरावती का कपडा बाजार सूरत के बाद सबसे बडा मार्केट माना जाता है. सन 1952 में परिवार के दो सदस्यों ने आजीविका के लिए साड़ियां बेचने का व्यवसाय शुरू किया था. उन्हें क्या पता था कि यही व्यवसाय गारमेंट व्यवसाय को नये आयाम तक पहुंचायेगा. व्यापार जगत का रंगरुप बदल देगा. ‘नंदा’ के संचालक भारानी परिवार ने यह बखूबी निभाया है. उन्होंने ‘नंदा’ की मदद से महाराष्ट्रीयन पहनावा, जरी काठ, प्युअर सिल्क धर्मावरम और ‘नववारी’ को नये अंदाज में लोगों तक पहुंचाया, बल्कि अमरावती जैसे विदर्भ के छोटे शहर को पूरे महाराष्ट्र में ही नहीं देश में होलसेल कपड़ा व्यापार हब के रूप में पहचान दिलाई है.

भारत-पाक विभाजन के दौरान भारानी परिवार को अपना सबकुछ छोड़कर भारत आना पड़ा. यहां न तो उपजीविका का साधन था और ना ही बसेरा. जैसे-तैसे भारानी परिवार के दो मुखिया ने संयुक्त परिवार की जिम्मेदारी अपने कांधों पर लेकर काम खोजना शुरू किया. इस बीच वे अपने किसी रिश्तेदार व जान-पहचान वालों की मदद से अमरावती आये. यहां न केवल रोजी-रोटी हो या बसेरा, दोनों का गुजर बसर होने से भारानी परिवार के उन मुखिया ने अमरावती में रहने का निर्णय लिया और संपूर्ण परिवार अमरावतीवासी बन गया.
* 1963 में बना ‘नंदा साड़ी सेंटर’ का पोस्टर
गोपीचंद व नंदलाल भारानी ने उपजीविका के लिए ही सही स्वतंत्रता के बाद साड़ी बेचने का व्यवसाय शुरू कर एक ब्रान्ड को पहले ही जन्म दे दिया था. साइकिल पर सवार इस दुकान को उन दोनों मुखिया ने ‘नंदा साड़ी सेंटर’ का नाम दिया. जो समय के साथ सबकी जुबान पर कुछ इस प्रकार बस गया कि आज हर किसी की जुबान से केवल ‘नंदा साड़ी सेंटर’ का ही नाम निकलता है.
* 1963 में रायली प्लॉट पहुंचा प्रतिष्ठान
छोटी साइकिल पर स्थापित ‘नंदा साड़ी सेंटर’ धीरे-धीरे ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने लगा था. साल 1963 में इसे स्थायी रूप प्राप्त हुआ. उस समय परकोट के बाहर रायली प्लॉट में जहां कम ही लोग रहते थे. उस दौर में भारानी परिवार ने पहले प्रतिष्ठान ‘प्रकाश साड़ी भंडार’ की स्थापना की. जहां होलसेल साड़ियों का बेहतरीन कलेक्शन उपलब्ध करवाया जाता है.
* चार वर्ष बाद ‘नंदा साड़ी सेंटर’ की स्थापना
शहर विस्तार के साथ व्यापारी क्षेत्र का विस्तार हो रहा था. पहले से ही शहर के बाहर स्थापित जयस्तंभ चौक, चित्रा चौक, इतवारा बाजार परिसर में एक के बाद एक दुकानें बढ़ने लगी. उसी दौर में भारानी परिवार ने ‘प्रकाश साड़ी भंडार’ के बाद ‘नंदा साड़ी सेंटर’ की 1967-68 में स्थापना की और तब से लेकर आज तक महिलाओं के सौंदर्य को निखारने, उन्हें आकर्षक व डिजाइनर कपड़ों द्वारा सजने-संवरने का मौका दिया जा रहा है.
* ‘उस’ दौर में नववारी की सर्वाधिक डिमांड
60, 70 यहां तक के 80 के दशक तक महाराष्ट्र में ट्रेडिशनल ड्रेस को काफी महत्व रहा. जहां फिल्मों में पारंपरिक पोशाख को बढ़ावा देने के साथ ही उसके प्रचार- प्रसार में कई नामी-गिरामी हस्तियां सहभाग लेती थी. उस दौर में भारानी परिवार के ‘नंदा साड़ी सेंटर’ ने महाराष्ट्र के प्रचलित पहनावे ‘नववारी’ को नयी पहचान दिलाई थी. जिसके कारण ‘नंदा साड़ी सेंटर’ की साड़ियां केवल अमरावती या विदर्भ में नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में पहनी जाने लगी. जिसके बाद यहां समय के साथ साड़ियों की डिजाइन, कलेक्शन में बदलाव किया जाने लगा. लेकिन ग्राहकों की विश्वासहर्ता को कभी कम नहीं होने दिया. यहीं कारण है कि आज भी ‘नंदा’ में एक्सक्लूझिव कलेक्शन उपलब्ध है. इस दिवाली भी ग्राहकों को भरपूर वैरायटी मिल रही है.
* 2001 में पारंपरिक व्यवसाय में कदम
जब परिवार के मुखिया आजीविका के लिए साड़ियों के व्यवसाय में अपना जी जान लगा रहे थे, उस समय परिवार के बच्चे मनोज व नरेंद्र भारानी पिता के पारंपरिक व्यवसाय की गतिविधियों के साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी कर रहे थे. नरेंद्र भारानी ने कॉमर्स से अपनी पढ़ाई पूरी की. साल 2001 में परिवार की जिम्मेदारी संभालने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई छोड़कर पिता के व्यापार में हाथ बँटाने का फैसला लिया.
* साड़ियों के साथ वाहन व्यवसाय में रुचि
भारानी परिवार के युवाओं ने पारंपरिक व्यवसाय को बढ़ावा देने के साथ नये-नये व्यवसाय में भी किस्मत आजमाने की कोशिश की. जिसके फलस्वरुप साल 2006 में नंदा मोटर्स की स्थापना की गई. इस समय ‘नंदा साड़ी सेंटर’ का विस्तार नहीं हुआ था. इस कारण भारानी परिवार के युवा ही इस प्रतिष्ठान की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. आज भले ही भारानी परिवार के सदस्य यहां कम ध्यान देते हो, लेकिन नंदा मोटर्स का स्टाफ इतना ट्रेन हो चुका है कि वे कंपनी के फायदे और मुनाफे का ध्यान रखकर ग्राहकों को बेहतरीन सेवा देने की कोशिश करते हैं.
* 2015 में ड्रीम्ज इन्फ्रा की स्थापना
हमेशा ही कुछ हटके करने की चाह में भारानी परिवार ने साड़ियां, लेडिज वेअर, गारमेंट की दुनिया से बाहर निकलकर कन्स्ट्रक्शन की दुनिया में भी अपना कदम रखा है. साल 2015 में ड्रीम्ज इन्फ्रास्ट्रक्चर के जरिये ड्रीम्जलैंड प्रोजेक्ट की स्थापना कर इसे ‘प्राइड ऑफ सिटी’ के रूप में पहचान दी है. इसके अलावा ड्रीम्जपार्क, ड्रीम्ज सिग्नेचर, ड्रीम्ज प्राइड, नंदा हायलाइट्स, ड्रीम्जलैंड बिजनेस पार्क, ड्रीम्जलैंड मार्क रिहायशी प्रोजेक्ट का भी ड्रीम्ज इन्फ्रास्ट्रक्चर के जरिये निर्माण किया है. जीवन में मिली सफलता में नरेंद्र भारानी की पत्नी निशा, बेटा भविष्य, बेटी हितैषी के साथ भारानी परिवार के हर सदस्य ने उनका साथ निभाया है.

* सिटीलैंड व ड्रीम्जलैंड देश का गारमेंट हब
नरेंद्र भारानी को ट्रेडिंग व्यवसाय मे अधिक रुचि रही. उन्होंने इसी बात का फायदा उठाकर शहर के सीमित व्यापारी विशेषकर कपड़ा, गारमेंट व्यापार को हब में परिवर्तित करने की संकल्पना रखी. जिसका पहले तो विरोध किया गया. लेकिन आज यहीं होलसेल व्यापारी क्षेत्र यानी सिटीलैंड व ड्रीम्जलैंड देश का गारमेंट हब बन चुका है. शहर से बाहर 10 से 15 किमी दूर स्थित बोरगांव धर्माले में 45 स्क्वे. फीट में बने सिटीलैंड व करीब 85 एकड़ में साकार ड्रीम्जलैंड में भारानी परिवार की भागीदारी रही है. शहर नहीं बल्कि बाहरगांव से आने वाले ग्राहकों को यहां एक ही छत के नीचे होलसेल कपड़ों की खरीदारी का मौका मिलेगा, इस उद्देश्य से इस होलसेल कपड़ा हब की स्थापना की गई. सिटीलैंड हो या ड्रीम्जलैंड यहां के व्यवसासियों को अन्य जिले व प्रांत में व्यापार का अवसर प्राप्त हुआ है.

* परिवार ने किया व्यापार विस्तार
‘नंदा साड़ी सेंटर’ साल 2012-13 के बाद सिटीलैंड व ड्रीम्जलैंड में भव्यता के साथ स्थानांतरित किया गया. यहां जिसे ‘नंदा’ का नाम दिया गया. यहां ‘सीएनसी’ यानी ‘कैश एन्ड कैरी’ प्रतिष्ठान की स्थापना की है. जहां वन पीस से लेकर अपनी जरुरत अनुसार ग्राहक कैश में लेडिज वेअर की खरीदारी कर सकते हैं. यहां मुख्य रूप से साड़ियों के साथ लहंगों का कलेक्शन उपलब्ध है. जबकि ड्रीम्जलैंड स्थित ‘नंदा’ में सलवार सूट, गाऊन, ड्रेस मटेरियल के सेशन उपलब्ध हैं. इसके अलावा प्रतिष्ठान में हर प्रकार की साड़ियां होलसेल दाम में उपलब्ध करवाई जाती हैं. जिसके कारण कई ग्राहक इससे जुड़े हैं. ‘नंदा’ का माल केवल विदर्भ ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक के सीमावर्ती इलाके में जाने लगा है. जिसके मैंटेन्स के साथ नंदा के सभी प्रतिष्ठानों में फिलहाल 300 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं. सभी प्रतिष्ठानों की जिम्मेदारी भारानी परिवार के मनोज भारानी, नरेंद्र भारानी, सरिता भारानी, निशा भारानी, नयन भारानी व ऋषभ भारानी संयुक्त रूप से उठा रहे हैं, जिसके कारण यह व्यवसाय और फलने-फूलने लगा है.

* भारानी बंधुओं की जोडी का करिश्मा
भारानी परिवार के मुखिया गोपीचंद भारानी व नंदलाल भारानी उस समय परकोट से बाहर इतवारा बाजार के किराणा दुकान में काम करते थे. उससे परिवार को गुजर-बसर तो नहीं होता लेकिन चला लेते थे. उस समय नंदलाल भारानी ने किराणा दुकान में काम करने के साथ अपने जान पहचान वालों से कभी उधारी तो कभी नकद में साड़ियां खरीदकर जब समय मिलता उसे साइकिल पर सवार होकर बेचने निकल पड़ते थे. इस काम में उनके भाई गोपीचंद भारानी भी साथ देते. कई बार तो वे शहर के बाहर आसपास के गांव जैसे वरुड़, मोर्शी, मध्यप्रदेश के बैतूल शहर के बाजार में साड़ियां लदी अपनी छोटी साइकिल को दुकान बनाकर उसे बेचा करते थे.

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