अमरावती

बीरवा की महफिल और डफली की ताल पर रंगा ढाल महोत्सव

विदर्भ के साडे पांच हजार गांवों में दो दिन चलेगा काठी नृत्य

अमरावती दि.26 – ‘चका-चका चांदनियों गोवरियों बिनो गायनसे कोटा भरे घर-घर देवो आशिष गा’ ऐसी बीरवा की महफिल और डफली की ताल पर विदर्भ के साडे पांच हजार गांवों में आदिवासी गोंडगोवारी का ढाल महोत्सव सजने वाला है. काठी नृत्य व महफिल दो दिन चलेगी. आदिवासी गोंडगोवारी समाज की संस्कृति यानी ढाल पूजन उत्सव आद्य धर्मगुरु पाहंदी पारी कुपार लिंगो व माता जंगो रायताड के प्रतिक में अपने मृत पूर्वजों के रुप में दो मुखी पुरुष व चार मुखी स्त्री के नाम की ढाल बनाकर हिंदू धर्म की लक्ष्मी पूजा के दिन यह पूजा की गई.
आदिवासी गोंडगोवारी जमाती के युवक व पिता जैसे व्यक्ति पैर में घुंगरु बांधकर पारंपारिक आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया. यह उत्सव पूर्व विदर्भ के 5 हजार गांवों में मनाया गया. ऐतिहासिक परंपरा संजोते हुए आदिवासी गोंडगोवारी जमात आद्य धर्मगुरु पाहंदी पारी कुपार लिंगो व माता जुंगो रायताड ने मिलकर काठ सावरी के पेड के नीचे सगा सामाजिक व्यवस्था निर्माण कर कोया धर्म की स्थापना की. माता काली कंकली के बच्चों को कोया धर्म की दीक्षा प्रदान की थी. जय सेवा के मूल मंत्र के अनुसार समाज की निस्वार्थ सेवा का भाव मन में रखकर कार्य करने वाले समाज की संरचना की थी.
इस वजह से समाज में एक नई दिशा प्रदान की और सगा बिडार (गोंदोला) परिवार में प्रेमभाव और एक दूसरे के निस्वार्थ सेवा का भाव निर्माण हुआ तथा गोवारी (कोपाल) यह जमात गोंदोला परिवार का एक अंग के रुप में आदिवासी गोंडगोवारी जमात यह काठसावरी के पेड के नीचे ढाल पूजा कर खडी करते है. समाज में एक आनंदोत्सव और शांति बनी रहे, इस वजह से ढाल के प्रतिक में जंगो और लिंगों की प्रतिकात्मक पूर्वजों के नाम से ढाल निर्माण कर पूजा व उत्सव मनाया जाता है.

300 वर्ष से ज्यादा समय से शुरु है परंपरा
300 वर्ष से अधिक समय से शुरु रहने वाला आदिवासी गोंडगोवारी जमाती का ढाल पूजर उत्सव आज भी जारी है. विदर्भ के साडे पांच हजार गांवों में यह उत्सव बडे ही आनंद के साथ मनाया जा रहा है.
– सुदर्शन चामलोट, संयोजक ऐल्गार आदिवासी गोंडगोवारी आदिवासी संगठना.

 

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