अमरावती

सीएस निकम पर सनसनीखेज आरोप लगाकर स्वास्थ्य महकमे का मनोबल तोडा भाजपा जिलाध्यक्ष निवेदिता चौधरी ने

  • वर्ष 2013 के कुछ पुराने दस्तावेजों को आधार बनाकर लगाया घोटाले का आरोप

  •  दस्तावेजों में घोटाले का कोई सबूत नहीं

  • कोविड महामारी के दौरान गैर जिम्मेदाराना रवैय्ये का उदाहरण

अमरावती/प्रतिनिधि दि.22 – गत रोज भाजपा की ग्रामीण जिलाध्यक्ष निवेदिता चौधरी ने एक प्रेस विज्ञप्ती और वर्ष 2013 के कुछ पुराने दस्तावेजों को मीडिया के नाम जारी करते हुए जिला शल्य चिकित्सक डॉ. श्यामसुंदर निकम पर 100 करोड रूपयों का घोटाला करने का आरोप लगाया गया है. साथ ही कहा गया है कि, सीएस डॉ. निकम ने विगत 14 माह में केवल कोविड संक्रमण काल के दौरान ही रेमडेसिविर इंजेक्शन सहित अन्य कई दवाईयों में हेराफेरी करते हुए 12 करोड रूपये का घोटाला किया है. लेकिन निवेदिता चौधरी द्वारा उपलब्ध कराये गये दस्तावेजों में किसी भी तरह के घोटाले के कोई सबूत नहीं है. बल्कि उन्होंने केवल घोटाले का आरोप लगाने में ही अपनी धन्यता मान ली है. भाजपा ग्रामीण जिलाध्यक्ष निवेदिता चौधरी द्वारा गत रोज अचानक जारी की गई प्रेस विज्ञप्ती को स्थानीय मीडिया द्वारा बडे जोर-शोर और प्रमुखता के साथ प्रकाशित भी किया गया. जिससे आम जनता में यह संदेश गया है कि, सीएस डॉ. निकम बेहद भ्रष्ट व्यक्ती है और उन्होंने कोविड संक्रमण काल के साथ ही अपने सेवा काल के दौरान जमकर चांदी काटी है. किंतु किसी भी आरोप में उस समय तक कोई दम नहीं होता, जब तक उसके साथ तथ्य प्रस्तुत न किये जाये और निवेदिता चौधरी ने अपनी प्रेस विज्ञप्ती के साथ वर्ष 2013 के कुछ कार्यालयीन पत्रों तथा विधानसभा के प्रश्नोत्तर संबंधी दस्तावेज जोडे है. जबकि हकीकत यह है कि, वर्ष 2013 में डॉ. श्यामसुंदर निकम अमरावती के जिला शल्य चिकित्सक भी नहीं थे और उनकी नियुक्ती वर्ष 2014 के बाद हुई थी, जब राज्य में खुद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्ववाली सरकार थी. ऐसे में अब निवेदिता चौधरी को इस बात का जवाब देना चाहिए कि, यदि डॉ. श्यामसुंदर निकम वर्ष 2013 से घोटालों में लिप्त है और उनके खिलाफ स्वास्थ्य संचालक कार्यालय के पास शिकायतें पहुंचने के साथ ही उनके द्वारा कथित तौर पर किये गये घोटालों की चर्चा वर्ष 2013 के दौरान विधानसभा में भी हुई थी, तो फिर खुद उनकी ही पार्टी की सरकार ने डॉ. श्यामसुंदर निकम को अमरावती का सीएस क्यों बनाया और 58 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद 60 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहने का मौका क्यों दिया. इस खबर का मकसद सीएस डॉ. निकम का पक्ष लेना या उन्हें क्लिनचिट देना नहीं है. बल्कि हम यह चाहते है कि, निवेदिता चौधरी अपने द्वारा लगाये गये आरोपों को तथ्यों के साथ साबित करे और प्रेस विज्ञप्ती जारी करने की बजाय बाकायदा पत्रकार परिषद लेकर स्थानीय मीडिया के सामने सभी तथ्यों को रखें. बता दें कि, सरकारी पदों पर अधिकारियों का आना-जाना लगा रहता है और कई अधिकारी अपने उल्लेखनीय कामों की वजह से लंबे समय तक क्षेत्र की जनता द्वारा याद भी रखे जाते है. इसमें कई नामों को गिनाया जा सकता है. उस समय तो हालात पूरी तरह से सामान्य थे. किंतु इस समय हम सभी कोविड-19 जैसे खतरनाक वायरस की जानलेवा संक्रामक महामारी से जूझ रहे है. इस समय जहां हर कोई इस बीमारी की चपेट में आने से बचने हेतु अपने-अपने घरों में दुबका हुआ है. वहीं जिला एवं मनपा प्रशासन सहित पुलिस तथा स्वास्थ्य महकमे के लोग विगत 14-15 माह से इस संक्रमण काल के दौरान अपने प्राणों की परवाह किये बिना सभी लोगोें को सुरक्षित रखने हेतु काम कर रहे है. इसमें सबसे उल्लेखनीय भुमिका स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ से जुडे लोग निभा रहे है. जिनका सीधा वास्ता कोविड संक्रमित मरीजों के साथ आता है. किंतु बावजूद इसके यह सभी लोग बिना डरे अपने कर्तव्य पर तैनात है और इन सैंकडों डॉक्टरों व हजारों मेडिकल स्टाफ की अगुआई 60 वर्ष की आयु रहनेवाले जिला शल्य चिकित्सक डॉ. श्यामसुंदर निकम द्वारा की जा रही है, जिन पर तथ्यविहिन आरोप लगाकर भाजपा की ग्रामीण जिलाध्यक्षा निवेदिता चौधरी ने एक तरह से स्वास्थ्य महकमे का मनोबल तोडने का काम किया है. जबकि इस समय जरूरत इस बात की है कि, सभी लोग प्रशासन, पुलिस व स्वास्थ्य महकमे का पूरी तरह साथ देते हुए उनका मनोबल बढाए.
हम यहां इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर रहे कि, पिछले दिनों सरकारी अस्पताल से जुडे कुछ एक-दो लोगोें को रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने के मामले में पकडा गया. इस तरह की प्रवृत्तिवाले लोग लगभग सभी संस्था में होते है. किंतु इसका यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि, पूरे संस्था में ही सभी लोगों द्वारा गडबडियां की जा रही है. जिस डॉ. अक्षय राठोड को रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में पकडा गया, वह ठेकेपर नियुक्त था और गडबडी सामने आते ही तुरंत प्रभाव से उसकी सेवा समाप्त कर दी गई. इसी तरह तिवसा स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. पवन मालुसरे व इर्विन अस्प्ताल की नर्स पूनम सोनवने को भी निलंबित कर दिया गया है. साथ ही पवन मालुसरे द्वारा अनिल पिंजरकर के साथ मिलकर सलुजा सेलिब्रेशन हॉल में चलाये जा रहे निजी कोविड अस्पताल में अब एक भी कोविड संक्रमित मरीज भरती नहीं है, यानी यह निजी कोविड अस्पताल लगभग बंद हो चुका है. गडबडी सामने आते ही की गई इन कार्रवाईयों से प्रशासन व स्वास्थ्य महकमे की गंभीरता व प्रतिबध्दता दिखाई देती है.
इसी तरह निवेदिता चौधरी ने पीएम केयर फंड से मिले 91 वेंटिलेटरों में से कुछ वेंटिलेटर निजी अस्पतालों को दिये जाने को भी घोटाला कहा है. शायद उन्हें नहीं पता कि, जिस समय सुपर कोविड अस्पताल शुरू हुआ था, तब यहां वेंटिलेटरोें व बेड की काफी कमी थी और उस वक्त शहर के कई निजी अस्पतालों से बेड व वेंटिलेटर हासिल किये गये थे. साथ ही इस वक्त सरकारी अस्पताल से किन-किन निजी कोविड अस्पतालों को कितने वेंटिलेटर दिये गये है, इसकी जानकारी भी सुपर कोविड अस्पताल में दर्ज है. ऐसे में इसे घोटाला नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह घोटाला तब होता, जब सरकारी अस्पताल के वेंटिलेटर निजी अस्पतालों को दे दिये जाते और उसकी किसी को कोई जानकारी ही नहीं होती. सबसे बडी बात यह है कि, 2013 से अबतक 100 करोड रूपये और कोविड संक्रमण काल के दौरान 12 करोड रूपये का घोटाला सीएस निकम द्वारा किये जाने का आरोप लगानेवाली निवेदिता चौधरी की ओर से उपलब्ध कराये गये दस्तावेजों के जरिये यह बात साबित ही नहीं होती कि ऐसा कोई घोटाला हुआ है. खासकर तब, जब 2013 में डॉ. श्यामसुंदर निकम अमरावती के जिला शल्य चिकित्सक ही नहीं थे.
सीएस डॉ. निकम पर आरोप लगाने के साथ-साथ निवेदिता चौधरी ने उनके बेटे डॉ. अमित निकम को भी यह कहते हुए आरोपों के घेरे में लिया कि, वर्धा के कॉलेज से एमडी की शिक्षा प्राप्त करने के दौरान डॉ. अमित निकम तिवसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्य अधिकारी के तौर पर नौकरी पर कैसे लगे, साथ ही इस समय मोर्शी के उपजिला अस्पताल में कैसे कार्यरत है. शायद निवेदिता चौधरी यह भूल गई कि, एमडी करने से पहले डॉ. अमित निकम ने बाकायदा एमबीबीएस की पदवी हासिल की थी और वे पेशेवर डॉक्टर है. जिन्हें सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में अपनी सेवा प्रदान करनी होती है और इस काम की ऐवज में उन्हें मानधन भी प्रदान किया जाता है. काम करने के दौरान एमबीबीएस डॉक्टरों को वैद्यकीय क्षेत्र की उच्च शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार होता है. ऐसे में निवेदिता चौधरी के इस आरोप को भी तथ्यहिन कहा जा सकता है.
कुल मिलाकर एक राष्ट्रीय दल के जिलाध्यक्ष जैसे जिम्मेदारीपूर्ण पद पर रहने के बावजूद निवेदिता चौधरी ने अपने गैरजिम्मेदाराना रवैये और संवेदनहीनता का ही परिचय दिया है. जिसकी किसी भी राजनीतिक दल के पदाधिकारी की ओर से मौजूदा संकटकाल के समय अपेक्षा नहीं की जा सकती. ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ती नहीं होगा कि, निवेदिता चौधरी ने अपनी किसी पुरानी खुन्नस के चलते कुछ पुराने दस्तावेजों को आधार बनाकर सीएस डॉ. निकम पर निशाना साधा है. जिसकी वजह से इस समय सीएस निकम के नेतृत्व में काम कर रहे सभी डॉक्टरों व मेडिकल स्टाफ के मनोबल का स्तर काफी हद तक टूट चुका है. जिसे जिले के लिहाज से अच्छी स्थिति नहीं कहा जा सकता.

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