जिले में भाजपा के पास विधानसभा क्षेत्रों में दमदार चेहरों का टोटा
लोकसभा व विधानसभा चुनाव के लिए कुछ सीटों पर प्रत्याशी ही नहीं
* मविआ की चुनौती रहेगी भाजपा के लिए काफी मुश्किल
* बडनेरा, अचलपुर व मेलघाट में पार्टी को करना पड सकता है समझौता
* धामणगांव में अडसड हो सकते हैं रिपिट, शेष चार सीटों पर नैया डावांडोल
* मंडी चुनाव सहित कर्नाटक की जीत से कांग्रेस पूरे जोश में, मविआ भी उत्साहित
अमरावती/दि.16- आगामी लोकसभा व विधानसभा का चुनाव होने में अब बमुश्किल 1 साल का समय शेष बचा हुआ है. ऐसे में सभी रानीतिक दलों व्दारा आगामी चुनाव के मद्देनजर अपने-अपने दमदार प्रत्याशी खडे करने संभावित नामों को टटोलना शुरु कर दिया जाता है. वहीं चुनाव में खडे रहने के इच्छुक प्रत्याशियों व्दारा भी चुनाव के करीब डेढ-दो वर्ष पहले से अपने पक्ष में माहौल बनाना शुरु कर दिया जाता है. परंतु यदि अमरावती शहर सहित जिले में देखा जाए तो, इस समय भाजपा में एक अजीब किस्म का सन्नाटा है तथा आगामी चुनाव की तैयारियां व संभावित प्रत्याशियों के नामों को लेकर कोई हलचल नहीं है. इसके पीछे सबसे बडी वजह यह भी है कि, भाजपा के पास अमरावती संसदिय क्षेत्र यानी लोकसभा चुनाव के लिए पूरे जिले पर पकड रखनेवाला कोई मजबूत नाम या चर्चित चेहरा नहीं है. साथ ही साथ जिले के 8 निर्वाचन क्षेत्रों में भी इक्का दूक्का सीटों को यदि छोड दिया जाए, तो पार्टी के पास विधानसभा सीटों पर भी खडे करने के लिए नाम आगे बढाने हेतु चर्चित नामों व चेहरों का एक तरह से टोटा है. ऐसे में कहा जा सकता है कि हाल ही संपन्न जिले की 12 फसल मंडियों के चुनाव सहित विगत दिनों हुए कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनाव में मिली शानदार सफलता की वजह से जबरदस्त उत्साहीत कांगेे्रस व कांग्रेस का समावेश रहनेवाली महाविकास आघाडी की चुनौती का समाना करना अमरावती जिले में भाजपा के लिए काफी मुश्किल हो सकता है.
यदि अमरावती जिले की सभी 8 विधासभा सीटों का आकलन किया जाए तो अमरावती में सुलभा खोडके बडनेरा में रवि राणा, तिवसा में यशोमति ठाकुर, धामणगांव रेलवे में प्रताप अडसड, मोर्शी-वरुड में देवेंद्र भुयार, अचलपुर में बच्चू कडू, मेलघाट में राजकुमार पटेल व दर्यापुर में बलवंत वानखडे इस समय विधायक निर्वाचित है. विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिले की 8 में से केवल 1 विधानसभा सीट पर सफलता प्राप्त हुई थी तथा इसके तहत धामणगांव रेलवे निर्वाचन क्षेत्र से प्रताप अडसड ने चुनाव जीता था. जहां पर उन्हें इस बार भी दुबारा प्रत्याशी बनाया जा सकता है. लेकिन जिले की अन्य विधानसभा सीटों पर मौजूदा विधायकों के खिलाफ चुनाव लडने और जीतने वाला प्रत्याशी खडा करने के लिए भाजपा को अच्छी खासी माथापच्ची करनी पड सकती है. साथ ही कुछ सीटें ऐसी भी है, जहां पर भाजपा को अपने चुनाव गठबंधन को ध्यान में रखते हुए मौजूदा विधायकों की दावेदारी के सामने अपनी दावेदारी पीछे लेने का समझौता भी करना पड सकता है. जिसमें बडनेरा, अचलपुर व मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र का समावेश रह सकता है.
सबसे बडा संभ्रम अमरावती संसदीय सीट को लेकर
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भाजपा-सेना युती रहने के दौरान अमरावती संसदीय सीट युती के तहत शिवसेना के हिस्से में रहा करती थी और इस सीट पर शिवसेना के अनंत गुढे से लेकर आनंदराव अडसूल प्रत्याशी रहने के साथ ही विजयी भी हुए. चूंकि विगत करीब 25 वर्षो तक यह सीट शिवसेना के हिस्से में जाती रही. ऐसे में भाजपा के भीतर लोकसभा चुनाव लडने लायक कोई नेतृत्व ही तैयार नहीं हो पाया. वहीं अब यद्यपि भाजपा और शिवसेना की युती टूट चुकी है तथा निकट भविष्य में युती के दुबारा होने की कोई संभावना नहीं है. साथ ही शिवसेना में भी दो फाड हो चुकी है. परंतु अमरावती जिले में शिंदे गुट वाली शिवसेना का बडे पैमाने पर कोई विशेष असर नहीं है. ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से सांसद पद के लिए प्रत्याशी कौन होगा इसे लेकर काफी हद तक फिलहाल संभ्रम वाली स्थिति है. हालांकि यह भी याद रखा जा सकता है कि, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-सेना युती के प्रत्याशी व तत्कालीन सेना सांसद आनंदराव अडसूल को एकदम नवोदित रहनेवाली नवनीत राणा ने राकांपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडते हुए बेहद कडी टक्कर दी थी. साथ ही नवनीत राणा ने वर्ष 2019 में अपना अगला लोकसभा चुनाव निर्दलिय प्रत्याशी के तौर पर लडते हुए भाजपा-सेना युती के प्रत्याशी आनंदराव अडसूल को करारी शिकस्त देते हुए जीत हासिल की थी. यद्यपि नवनीत राणा ने वह चुनाव कांग्रेस व राकांपा का समर्थन प्राप्त करते हुए जीता था. लेकिन सांसद के तौर पर निर्वाचित होकर दिल्ली पहुंचने के बाद नवनीत राणा ने भाजपा के समर्थन वाली भूमिका अपना ली और उनकी भाजपा के केंद्रिय मंत्रियों व शीर्ष नेतृत्व के साथ नजदिकियां बढने लगी. वहीं दूसरी ओर सांसद नवनीत राणा के प्रति व बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक रवि राणा भी महाराष्ट्र में भाजपा नेताओं के साथ गलबहियां करते देखे जाते हैं और उनके राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले के साथ बेहद नजदीकी संबंध है. साथ ही विगत दिनों राणा दंपति व्दारा अमरावती में आयोजित कार्यक्रम के दौरान पार्टी प्रदेशाध्यक्ष बावनकुले ने इशारों ही इशारों में यह संदेश दिया था कि, वर्ष 2024 के चुनाव दौरान अमरावती संसदीय सीट से बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में ‘कमल खिलेगा’ जिसका सीध मतलब यह निकाला गया कि, या तो नवनीत राणा व रवि राणा व्दारा आगामी चुनाव भाजपा प्रत्याशी के तौर पर लडे जाएंगे, या फिर भाजपा उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारने की बजाए उनकी दावेदारी का समर्थन करेगी. दोनों ही स्थितियों में अमरावती संसदीय सीट और बडनेरा विधानसभा सीट पर पार्टी के पुराने व निष्ठावान कार्यकर्ताओं के लिए कोई गूंजाइश नहीं बचती है. साथ ही पार्टी भी इन दोनों सीटों के लिए प्रत्याशी खोजने व प्रत्याशी का नाम तय करने की मशक्कत से बच सकती है. क्योंकि हकिकत यह है कि भाजपा के पास अमरावती से लोकसभा चुनाव लडने लायक कोई सशक्त चेहरा ही नहीं है. वहीं बडनेरा में विगत चार बार से लगातार विधायक निर्वाचित हो रहे रवि राणा की चुनौती और रणनीतियों का सामना करने लायक प्रत्याशी भी भाजपा के पास नहीं है. ऐसे में कम से कम इन दो सीटों पर तो भाजपा को राणा दंपति नामक आसरे का सहारा लेना होगा.
अमरावती शहर में है एक अनार सौ बीमार
भाजपा के लिए करो या मरो वाली सबसे खतरनाक स्थिति अमरावती शहर का प्रतिनिधत्व करने वाली अमरावती विधानसभा सीट पर है. जहां पर एक तरह से पार्टी का अस्तित्व ही दांव पर लगा हुआ है. वर्ष 1999 से 2009 के विधानसभा चुनाव तक इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को जीत मिलती रही और करीब 15 साल यहां पर कांग्रेस का राज रहा. इस दौरान वर्ष 1999 के चुनाव को छोडकर भाजपा कभी भी कांग्रेस प्रत्याशी के सामने अपना दमदार प्रत्याशी नहीं उतार पाई. वहीं 2014 व 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस छोडकर बाहर निकले डॉ. सुनील देशमुख को अपना प्रत्याशी बनाया था. जिसमें से डॉ. देशमुख ने वर्ष 2014 का विधानसभा चुनाव जीता था. लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी सुलभा खोडके हाथों हार का सामना करना पडा. जिसके बाद डॉ. सुनील देशमुख एक बार फिर अपने तमाम समर्थकों व कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा छोडकर कांग्रेस में वापीस चले गए. ऐसे में जाहिर है कि आगामी विधानसभा चुनाव के समय कांगे्रस की ओर से डॉ. सुनील देशमुख व सुलभा खोडके इन दो में से कोई एक नाम प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में रहेगा. परंतु कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ भाजपा की ओर से प्रत्याशी कौन हो सकता है इस बात को लेकर फिलहाल दूर-दूर तक कोई चर्चा सुनाई नहीं दे रही, न ही कोई चेहरा अथवा नाम भी खुद को चर्चा में बनाए रखने के लिए प्रयासरत दिखाई दे रहा है. हालांकि अमरावती शहर में भाजपा के भीतर ‘कार्यकर्ता कम, नेता ज्यादा’ वाली है और खुद को नेता समझने वाला हर व्यक्ति ‘छपास’ की बीमारी से भी पीडित है. जिसके तहत अंगुली कटाकर शहीदों में नाम लिखानेवालों की तादाद सबसे ज्यादा है. इसकी वजह से जमीनी हकिकत और यर्थात के धरातल पर पार्टी काफी हद तक बिखराव से जूझती नजर आ रही है. अमरावती से लेकर बडनेरा तक पार्टी की शहर ईकाई में शामिल रहनेवाले कई पदाधिकारी यद्यपि अभी से खुद को अमरावती विधानसभा सीट के लिए पार्टी का सबसे दमदार कैंडिडेट मानकर चल रहे है और आपसी बातचीत में ऐसा बता भी रहे है, लेकिन उनमें से कुछ की स्थिति यह भी है कि यदि मनपा के चुनाव एकल वार्ड पद्धति से भी कराए जाए तो, उनकी सीट निकलना मुश्किल है. ऐसे में विधानसभा का चुनाव जीतना तो बहुत दूर की बात है.
मंडी चुनाव के नतीजों और मनपा चुनाव से बदल सकते है समीकरण
यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि हाल ही में अमरावती फसल मंडी के चुनाव हुए. जिसमें कांग्रेस प्रणित व महाविकास आघाडी समर्थित सहकार पैनल ने शानदार जीत हासिल की. इसके अलावा विगत करीब सवा साल से अमरावती महानगरपालिका में प्रशासक राज चल रहा है. ऐसे में पूर्व सभी दलों से वास्ता रखने वाले पूर्व पार्षदों सहित चुनाव लडने के सभी इच्छुक चुनाव का इंतजार करते-करतें थक गए हैं और उनका मतदाताओं से संपर्क भी काफी हद तक टूट गया है. इस बात का खामियाजा भी काफी हद तक भाजपा को उठाना पडेगा. क्योंकि विगत वर्ष तक मनपा में भाजपा की सत्ता थी तथा उन 5 वर्षो के दौरान मनपा पर कई बार भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे थे. वहीं यह भी नहीं भूला जाना चाहिए कि वर्ष 2017 का मनपा चुनाव भाजपा ने अपने तत्कालीन विधायक डॉ. सुनील देशमुख की अगुवाई में लडा था और डॉ. देशमुख की रणनीतियों पर अमल करते हुए पार्टी ने मनपा के इतिहास में पहली बार सर्वाधिक 45 सीटें जीती थी. लेकिन अब डॉ. सुनील देशमुख एक बार फिर कांगे्रस में हैं. जिसकी वजह से भाजपा को उन्हीं डॉ. सुनील देशमुख की रणनीतियों का चुनौती के तौर पर सामना मनपा चुनाव में करना पडेगा. जिसके बाद भाजपा को इसी स्थिति से अगले वर्ष लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भी दो-चार होना होगा. ऐसे में देखने वाली बात यह होगी, भाजपा व्दारा अमरावती विधानसभा सीट पर कांग्रेस की ओर से पेश होने वाली चुनौती व दिक्कतों का समाना करने के लिए अपने खेमे में से किसे आगे बढाया जाता है. हालांकि फिलहाल भाजपा के खेमे में अमरावती विधानसभा सीट पर ऐसी चुनौतियों का सामना करने लायक कोई मजबूत नाम या सशक्त चेहरा दिखाई नहीं दे रहा.
(क्रमश: – अन्य विधानसभा सीटों पर भाजपा की स्थिति का हाल अगले अंक में)