भाजपा ने खेला विदर्भ में ‘कुणबी-मराठा कार्ड’
आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए तय की गई व्यूहरचना
अमरावती/दि.1– लोकसभा व विधानसभा के अगले दृष्टि से तैयारी करने के लिए भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में ‘कुणबी-मराठा कार्ड’ खेलते हुए अपनी व्यूहरचना तैयार की है. जिसके तहत विदर्भ क्षेत्र से डॉ. अनिल बोंडे को राज्यसभा की उम्मीदवारी देते हुए भाजपा ने सभी को अनपेक्षित झटका दिया है. राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक डॉ. बोंडे का एक तरह से राजनीतिक पुनर्वसन करते हुए भाजपा द्वारा कुणबी व मराठा समुदाय में अपने जनाधार को मजबूत करने का प्रयास किया गया है.
बता दें कि, भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव रहनेवाले 62 वर्षीय डॉ. अनिल बोंडे ने फडणवीस सरकार के कार्यकाल दौरान राज्य में कृषि मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी. वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में मोर्शी-वरूड निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय विधायक चुने गये डॉ. बोंडे ने वर्ष 2014 में भाजपा में प्रवेश किया था और वे भाजपा विधायक के तौर पर सदन में पहुंचे. हालांकि वर्ष 2019 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पडा, लेकिन चुनाव में पराजीत होने के बाद भी डॉ. अनिल बोंडे चुपचाप व शांत नहीं बैठे, बल्कि उन्होंने खुद को भाजपा के कई आंदोलनों में सक्रिय रखा और शिवसेना के कई नेताओं को हमेशा अपने निशाने पर रखा. उनके कई बयान विवादास्पद भी साबित हुए. डॉ. बोंडे को पूर्व मुख्यमंत्री देवेेंद्र फडणवीस का बेहद नजदिकी भी माना जाता है.
उल्लेखनीय है कि, छह वर्ष पूर्व भाजपा ने डॉ. विकास महात्मे को राज्यसभा में भेजकर जातिय समीकरण को साधने का प्रयास किया था. वहीं इस बार डॉ. अनिल बोंडे को राज्यसभा के लिए मौका देते हुए कुणबी-मराठा कार्ड खेला गया.
ज्ञात रहे कि, विगत विधानसभा चुनाव में जहां विदर्भ क्षेत्र में अन्य स्थानों पर भाजपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा, वहीं अमरावती जिले में पार्टी को केवल एक सीट पर ही संतोष करना पडा. जिसकी टीस भाजपा के वरिष्ठ नेताओें में अब तक है. इसे लेकर किये गये चिंतन में यह तथ्य सामने आया कि, कुणबी और मराठा समाज के दूर चले जाने से अमरावती जिले में भाजपा प्रत्याशियों को नुकसान का सामना करना पडा है. ऐसे में जातिय व धार्मिक धृ्रवीकरण के जरिये अपने वोट बैंक को मजबूत करने की नीति भाजपा द्वारा बनाई जा रही है.
ज्ञात रहें कि, विगत पांच वर्षों के दौरान अमरावती महानगरपालिका में भाजपा की स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता थी, लेकिन जिला परिषद में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस व शिवसेना ने हाथ मिला लिया था. जिला परिषद के विगत चुनाव में भाजपा भी जिले में कोई विशेष प्रदर्शन नहीं कर पायी थी. ऐसे में अनुकूल स्थिति रहने के बाद भी अमरावती जिले में भाजपा को अच्छा-खासा प्रतिसाद क्योें नहीं मिलता. इस सवाल से भाजपा नेता हमेशा ही जुझते रहते है. इसमें भी अब अमरावती जिले की सांसद नवनीत राणा तथा विधायक रवि राणा के भाजपा में लगातार बढते प्रभाव की वजह से भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता काफी आहत है, ऐसा कहा जा रहा है. ऐसे में राजनीतिक संतुलन को साधने हेतु भी डॉ. बोंडे का नाम राज्यसभा के लिए तय किया गया, ऐसी चर्चा है.
अमरावती जिले में कुणबी-मराठी समुदाय की ओर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा सबसे अधिक ध्यान केंद्रीत किया जा रहा है. यह बात राकांपा अध्यक्ष शरद पवार की उपस्थिति में अमरावती में आयोजीत विभागीय सम्मेलन के निमित्त दिखाई दी. वहीं आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिवसेना के साथ कडा मुकाबला करना पडेगा. ऐसे में अभी से ही भाजपा द्वारा कुणबी-मराठा कार्ड का प्रयोग करने की नीति पर काम किया जा रहा है.
* राज्यसभा में दिखेगा विदर्भ का दबदबा
– 3 सीटों पर होंगे वैदर्भिय सांसद
इस बार राज्यसभा में विदर्भ का अच्छा-खासा दबदबा दिखाई देगा. महाराष्ट्र के कोटे में रहनेवाली 6 सीटों में से 2 सीटों पर विदर्भ क्षेत्र से वास्ता रखनेवाले प्रफुल्ल पटेल को राकांपा व डॉ. अनिल बोंडे को भाजपा द्वारा अपना प्रत्याशी बनाया गया है. वहीं राजस्थान की एक सीट से कांग्रेस द्वारा मुकूल वासनिक को राज्यसभा में भेजा जा रहा है, जो विदर्भ क्षेत्र से ही वास्ता रखते है. ऐसे में डॉ. अनिल बोंडे के साथ प्रफुल्ल पटेल व मुकूल वासनिक राज्यसभा में अलग-अलग राजनीतिक दलों से विदर्भ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे.
* भाजपा कर रही पश्चिम विदर्भ में पकड मजबूत करने की जद्दोजहद
उल्लेखनीय है कि, लोकसभा के लिए अमरावती संभाग के चार सांसद चुने गये है. जिसमें से तीन सांसद शिवसेना के है और अमरावती से नवनीत राणा निर्दलीय सांसद चुनी गई है. पूर्वी विदर्भ की तुलना में पश्चिम विदर्भ यानी अमरावती संभाग में भाजपा की मजबूत पकड दिखाई नहीं देती, क्योंकि शिवसेना के साथ लंबे समय तक युती रहने के चलते अमरावती संभाग में संसदीय चुनाव के लिहाज से भाजपा कभी अपनी जडे नहीं जमा पायी. ऐसे में किसी समय शिवसेना में रहनेवाले और पश्चात बगावत करते हुए निर्दलीय विधायक निर्वाचित होकर बाद में भाजपा का दामन थामनेवाले डॉ. अनिल बोंडे जैसे आक्रामक नेता को पार्टी द्वारा राज्यसभा के लिए आगे किया गया है, ताकि पश्चिम विदर्भ क्षेत्र में अपनी पकड को मजबूत बनाया जा सके.