जिले की 9 में से 5 सीटों पर जीती थी भाजपा सेना युति
कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ था खत्म, महज 2 सीटों पर मिली थी जीत
* तिवसा में भाकपा व मोर्शी में निर्दलीय प्रत्याशी रहे थे विजयी
* राज्य में निर्दलीयों के भरोसे बनी थी कांग्रेस सरकार
* तीन साल बाद सेना में हुई थी बगावत, प्रदीप वडनेरे हुए थे कांग्रेस में शामिल
अमरावती/दि.20 – वर्ष 1990 का दौर आते-आते समूचे देश में रामजन्मभूमि का मुद्दा छाने लगा था. जिसेे भारतीय जनता पार्टी ने समूचे देश में एक आंदोलन का रुप दे दिया था. जिसका भाजपा को सन 1990 के चुनाव में काफी हद तक फायदा भी हुआ. यही वो दौर था कि, जब हिंदुत्व की विचारधारा पर चलनेवाले भाजपा और शिवसेना जैसे राजनीतिक दलों का महाराष्ट्र में गठबंधन हुआ था. जिसे भाजपा-सेना युति के तौर पर जाना गया और अब तक अलग-अलग चुनाव लडने के साथ ही इक्का-दुक्का सीटों पर जीत हासिल करनेवाली भाजपा व शिवसेना ने एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाते हुए राज्य की राजनीति में काफी बडा उलटफेर कर दिया. जिसके तहत भाजपा-सेना युति ने राज्य की 288 सीटों में से 93 सीटे जीती थी. जिनमें अमरावती जिले की 9 में से 5 विधानसभा सीटों का भी समावेश था. वहीं लंबे समय बाद एक बार फिर एकजूट हुई कांग्रेस ने शरद पवार के नेतृत्व तले 288 में से 141 सीटे जीतकर 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करते हुए सरकार स्थापित की.
–
* सन 90 से 95 तक 5 साल रही जबर्दस्त उथल-पुथल
सन 1990 में महाराष्ट्र की 8 वीं विधानसभा हेतु हुए चुनाव के बाद अगले 5 साल जबर्दस्त उथल-पुथल वाले रहे. जिसकी वजह से राज्य सहित देश में काफी हद तक अस्थिरता वाला माहौल रहा. महाराष्ट्र में 27 फरवरी 1990 को हुए विधानसभा चुनाव के बाद शरद पवार ने तीसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली और वे 4 मार्च 1990 से 24 जून 1991 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. इसी दौरान सन 1991 में संसदीय चुनाव की घोषणा हुई और चुनाव प्रचार के दौरान 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरांबदुर में मानवी बम के जरिए किये गये आत्मघाती हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद कांग्रेस पार्टी व संसदीय दल के नेता पद पर पी. वी. नरसिंहराव का चयन हुआ. जिन्होंने शरद पवार को दिल्ली बुलाकर उन्हें रक्षामंत्री का जिम्मा सौंपा. जिसके चलते पवार द्वारा इस्तिफा दिये जाने पर सुधाकरराव नाइक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया, जो 25 जून 1991 से 4 मार्च 1993 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. विशेष उल्लेखनीय है कि, सुधाकरराव नाईक के चाचा वसंतराव नाइक भी इससे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके थे और करीब 30 वर्ष के अंतराल पश्चात वसंतराव नाईक के भतीजे सुधाकर नाईक ने मुख्यमंत्री पद का जिम्मा संभाला. जिसकी वजह से लंबे समय बाद मुख्यमंत्री पद विदर्भ के हिस्से में आया. इसी दौरान भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने समूचे देश में रथयात्रा निकाली. जिसके बाद 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ध्वंस की घटना हुई. जिसका प्रभाव समूचे महाराष्ट्र राज्य, विशेषकर मुंबई में देखा गया. ऐसे में पीएम नरसिंहराव ने शरद पवार को तुरंत मुंबई जाकर महाराष्ट्र संभालने कहा और 6 मार्च 1993 को शरद पवार ने एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पवार के राज्य में लौटते ही केवल 8 दिन के भीतर मुंबई में एक के बाद एक 13 बम विस्फोट हुए थे. वहीं इसके बाद 30 सितंबर 1993 को तडके 3.56 बजे लातूर व उस्मानाबाद जिलों में जोरदार भूकंप आया था. इन दोनों घटनाओं के समय शरद पवार ने अपने जबर्दस्त प्रशासन व व्यवस्थापन कौशल्य का परिचय दिया था.
* देश व राज्य में उलटफेर
– 21 मई 1991 को हुई थी राजीव गांधी की हत्या
– सन 92 में लालकृष्ण आडवाणी ने निकाली थी रथयात्रा
– 6 दिसंबर 1992 में हुआ था बाबरी मस्जिद का ध्वंस
– जनवरी-93 में मुंबई सहित राज्य में भडके थे जबर्दस्त दंगे
– 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए थे सिलसिलेवार 13 बम विस्फोट
– 1993 में लातूर व उस्मानाबाद जिलों में जोरदार भूकंप आया था
* अमरावती जिले में छाया था भगवा गठबंधन
सन 1990 के दौर में राजनीति काफी हद तक बदलने लगी थी. इसके चलते अब तक एकतरफा जीत हासिल कर लगभग एक छत राज करने वाली कांग्रेस की चूले हिलने लगी थी. जिसके लिए काफी हद तक कांग्रेसियों के बीच शुरु हो चुकी अंतरकलह व आपसी गुटबाजी को जिम्मेदार कहा जा सकता है. वहीं दूसरी ओर भाजपा और शिवसेना द्वारा किये गये गठबंधन और इन दोनों पार्टियों को उस समय के युवाओं की ओर से मिल रहे समर्थन ने भी कांग्रेस के प्रभाव को घटाने का काम किया था. यहीं वजह रही कि, सन 1990 के चुनाव में अमरावती जिले के 9 सीटों में से मात्र 2 सीटों पर कांग्रेस को सफलता मिली थी. वहीं 5 सीटों पर भाजपा सेना प्रत्याशी विजयी हुए थे. जिसमें से 3 सीटों पर भाजपा व 2 सीटों पर शिवसेना प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. इसके अलावा शिवसेना 2 सीटों पर दूसरे व 2 सीटों पर तीसरे स्थान पर थी. जिससे भगवा गठबंधन के बढते प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है.
* बागी व निर्दलीय प्रत्याशियों की पहली बार संख्या बढी
सन 1990 के विधानसभा चुनाव को इसलिए भी खास कहा जा सकता है कि, अब तक जहां प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में प्रत्याशियों की अधिकतम संख्या 5 से 7 हुआ करती थी और कही-कही तो महज 2 या 3 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में हुआ करते थे. वहीं सन 1990 के चुनाव में पहली बार प्रत्याशियों की संख्या ने दहाई का आंकडा पार किया तथा चुनावी मैदान में 30-35 प्रत्याशी दिखाई देने लगे. जिनमें टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बगावत करने वाले प्रत्याशियों के साथ-साथ निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या बढने लगी. सन 90 के चुनाव में अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से सर्वाधिक 35 प्रत्याशियों ने पर्चा भरा था. वहीं अब तक हर चुनाव में ज्यादा से ज्यादा 2 या 3 प्रत्याशी संख्या रहने वाले आदिवासी बहुल मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र में पहली बार 12 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. लगभग यहीं स्थिति जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में थी. जिसकी चलते जमकर वोटों का विभाजन हुआ और इसी चुनाव से आगे चलकर ‘वोट कटूआ’ वाली परंपरा व राजनीति का चलन शुरु हुआ.
* अमरावती से जगदीश गुप्ता ने खोला था भाजपा का खाता
अमरावती विधानसभा क्षेत्रों के नतीजों की ओर सभी का ध्यान लगा हुआ था. क्योंकि यह सीट हमेशा से ही कांगे्रस का मजबूत गढ थी और अब तक कांग्रेस के कई बडे व कद्दावर नेता इस सीट से चुनाव जीत चुके थे. वहीं सन 1990 के चुनाव में कांग्रेस ने अपनी महिला नेत्री पुष्पा बोंडे को बतौर प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारा था. जिनके खिलाफ भाजपा की ओर से राजनीति में बेहद नये नवेले रहने वाले जगदीश गुप्ता को प्रत्याशी बनाया गया था. जिन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को कडी टक्कर देते हुए बेहद कडे मुकाबले ने करीब 4 हजार वोटों की लीड हासिल कर चुनाव जीता था. इसके साथ ही जगदीश गुप्ता की राजनीतिक पारी शुरु हुई थी और अमरावती विधानसभा क्षेत्र में पहली बार भाजपा का खाता खुला था. सन 90 के चुनाव में अमरावती विधानसभा क्षेत्र से कुल 1 लाख 91 हजार 641 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 1 लाख 10 हजार 310 यानि 57.56 फीसद मतदाताओं ने वोट डाले थे और 1 लाख 9 हजार 173 वोट वैध पाये गये थे. जिसमें से भाजपा प्रत्याशी जगदीश गुप्ता को 35 हजार 319 यानि 32.35 फीसद वोट मिले थे. वहीं उनकी निकतटम प्रतिद्वंदी व कांग्रेस प्रत्याशी पुष्पा विजय बोंडे को 31 हजार 133 यानि 28.52 फीसद वोट हासिल हुए थे. इसके साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी रहने वाले भाईजी उर्फ रामकिसन सोमाणी ने 25 हजार 240 यानि 23.12 फीसद एवं समाजवादी कांग्रेस के प्रमोद वानखडे ने 10 हजार 101 यानि 9.25 फीसद वोट झटके थे. खास बात यह रही कि, सन 90 के चुनाव में अमरावती विधानसभा सीट से कुल 35 प्रत्याशी चुनावी अखाडे में थे. जिनमें से इन 4 प्रमुख प्रत्याशियों को छोडकर शेष सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. अमरावती से चुनाव लडने वाले 35 प्रत्याशियों में से 26 प्रत्याशी निर्दलीय थे. यह भी अपने आप में खास बात है.
* बडनेरा से शिवसेना के प्रदीप वडनेरे जीते थे
अमरावती की तरह बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में शुरु से ही कांग्रेस का मजबूत गढ रहा. जहां से पी. के. देशमुख व राम मेघे जैसे कांग्रेस नेता विधायक बनने के साथ ही राज्य के मंत्री भी रहे. लेकिन सन 1990 में चली बदलाव की लहर से बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र भी अछूता नहीं रहे और बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से युति प्रत्याशी के तौर पर प्रदीप बडनेरे ने करीब 12 हजार वोटों की लीड से शानदार जीत हासिल की. जिन्हें 26 हजार 224 यानि 29.77 फीसद वोट मिले थे. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी व कांग्रेस प्रत्याशी पुरुषोत्तम येते को 13 हजार 929 यानि 15.81 फीसद वोट हासिल हुए थे. इस चुनाव में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से 1 लाख 54 हजार 64 मतदाता पंजीकत थे. जिसमें से 90 हजार 276 यानि 57.95 फीसद मतदाताओं ने वोट डाले थे तथा 88 हजार 81 वोट वैध पाये गये थे. जिसमें से जनता दल के प्रकाश इंझालकर ने 12 हजार 125 व भारिपा के पुरुषोत्तम बागडी ने 11 हजार 710 वोट हासिल किये थे. साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी अनिल गोंडाणे ने 6 हजार 826 यानि 7.75 फीसद वोट हासिल करते हुए जैसे-तैसे अपनी जमानत बचायी थी. उस समय बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से कुल 34 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से 29 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. जिनमें 25 प्रत्याशी निर्दलीय थे. बडनेरा के लिहाज से खास बात यह रही कि, आगे चलकर सन 1993 में जब नागपुर शीतसत्र के दौरान उस समय शिवसेना में काफी वरिष्ठ नेता रहने वाले छगन भुजबल ने सेना नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी, तो बडनेरा के सेना विधायक प्रदीप वडनेरे ने भी छगन भुजबल का साथ दिया था और छगन भुजबल के नेतृत्व में प्रदीप वडनेरे सहित शिवसेना के 17 विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाईक का समर्थन करते हुए कांग्रेस में प्रवेश कर लिया था.
* चांदूर रेल्वे से चौथे प्रयास में अरुण अडसड को मिली थी सफलता
चांदूर रेल्वे विधानसभा क्षेत्र में भी सन 1990 के चुनाव में जबर्दस्त उलटफेर हुआ, जब 2 बार चांदूर रेल्वे क्षेत्र से चुनाव जीत चुके और एक बार मंत्री बनने में कामयाब रहे कांग्रेस प्रत्याशी यशवंत शेरेकर अपना तीसरा चुनाव हारते हुए हैट्रीक बनाने से चूक गये. वहीं सन 78 से लगातार जनसंघ व भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड रहे अरुण अडसड ने अपने चौथे प्रयास में सफलता हासिल की थी और वे सन 1990 के चुनाव में करीब 12 हजार वोटों की लीड से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर जीते थे. उस समय चांदूर रेल्वे निर्वाचन क्षेत्र में कुल 1 लाख 32 हजार 293 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 89 हजार 290 यानि 67.89 फीसद मतदाताओं ने वोट डाले थे और 88 हजार 78 वोट वैध पाये गये थे. इसमें से भाजपा प्रत्याशी अरुण अडसड को 36 हजार 201 यानि 41.10 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी व कांग्रेस प्रत्याशी यशवंत शेरेकर को 23 हजार 997 यानि 27.25 फीसद वोट मिले थे. इसके अलावा जनता दल प्रत्याशी अरुण दुबे ने 16 हजार 904 यानि 19.19 फीसद और निर्दलीय प्रत्याशी पांडुरंग ढोले ने 7 हजार 693 यानि 8.73 फीसद वोट झटके थे. उस समय चांदूर रेल्वे निर्वाचन क्षेत्र से कुल 16 प्रत्याशियों ने चुनाव लडा था. जिसमें से इन 4 प्रमुख प्रत्याशियों को छोडकर शेष 12 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. जिनमें सर्वाधिक 9 प्रत्याशी निर्दलीय थे.
* दर्यापुर से शिवसेना के प्रकाश भारसाकले हुए थे विजयी
– विधायक हाडोले की कटी थी टिकट, कांग्रेस थी चौथे नंबर पर
सन 1985 में दर्यापुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल करने वाले रावसाहब हाडोले का टिकट सन 1990 के चुनाव में पार्टी ने काट दिया था. ऐसे में हाडोले ने निर्दली प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडा. हालाकि वे खुद तीसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस को चौथा स्थान मिला. वहीं भगवा गठबंधन की ओर से शिवसेना प्रत्याशी प्रकाश भारसाकले ने सर्वाधिक वोट हासिल करते हुए करीब 9 हजार वोटों की लीड से जीत हासिल की थी. उस चुनाव में दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र में कुल 1 लाख 40 हजार 314 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 95 हजार 553 यानि 68.10 फीसद मतदाताओं ने अपने वोट डाले थे और 94 हजार 416 वोट वैध पाये गये थे. इसमें से शिवसेना प्रत्याशी प्रकाश भारसाकले को 25 हजार 682 यानि 27.20 फीसद वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर रहे भारिप-बमसं प्रत्याशी देवराव वानखडे ने 16 हजार 996 यानि 18 फीसद वोट हासिल किये थे. साथ ही कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडने वाले तत्कालीन विधायक रावसाहब हाडोले को 13 हजार 260, कांग्रेस प्रत्याशी हरिभाउ बारब्दे को 11 हजार 897 व जनता दल प्रत्याशी अरविंद नलकांडे को 10 हजार 847 वोट मिले थे. साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी रहने वाले अ. कदीर शेख नजीर ने 7 हजार 253 यानि 7.68 फीसद वोट हासिल करते हुए जैसे-तैसे अपनी जमानत बचाई थी. उस समय दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र से कुल 27 प्रत्याशियों ने चुनाव लडा था. जिसमें से इन 6 प्रत्याशियों को छोडकर शेष 21 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. जिनमें सर्वाधिक 17 प्रत्याशी निर्दलीय थे.
* मेलघाट में तु. रु. काले ने बचाया था कांग्रेस का गढ
जिस समय राज्य सहित जिले में चारों ओर बदलाव की लहर चल रही थी और कांग्रेस के कई मजबूत किले ढह रहे थे. उस समय भी आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र के मतदाताओं ने कांगे्रस का भरपूर साथ दिया. जिसके चलते कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर तुलसीराम रुपना उर्फ तु. रु. काले ने करीब 12 हजार वोटों की लीड के साथ जीत हासिल की और वे मेलघाट में कांग्रेसी किला बचाने में सफल रहे. उस समय मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र से कुल 1 लाख 58 हजार 497 मतदाता पंजीकृत थे और 69 हजार 775 यानि मात्र 44.02 मतदाताओं ने वोट डाले थे तथा 67 हजार 439 वोट वैध पाये गये थे. जिसमें से कांग्रेस प्रत्याशी तु. रु. काले को 28 हजार 98 यानि 41.66 फीसद वोट मिले थे. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी व शिवसेना प्रत्याशी रमेश राईकवार को 16,186 यानि 24.00 फीसद वोट मिले थे. साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर किसन कास्देकर ने 6 हजार 826 यानि 10.12 फीसद, पटल्या गुरुजी ने 5 हजार 761 यानि 8.54 फीसद और जनता दल प्रत्याशी के तौर पर फुलकाई भिलावेकर ने 4 हजार 110 यानि 6.09 फीसद वोट हासिल करते हुए अपनी जमानत बचाई थी. इसके अलावा चुनावी अखाडे में रहने वाले कुल 12 में से 7 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. जिसमें सर्वाधिक 5 प्रत्याशी निर्दलीय थे. खास बात यह रही कि, सन 1952 सेलेकर सन 1985 के चुनाव तक मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र से कोई भी चुनाव लड सकता था. इसके बावजूद मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र में हमेशा ही प्रत्याशियों की संख्या 2 या 3 ही हुआ करती थी. वहीं सन 1990 के चुनाव में मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र पहली बार एसटी संवर्ग यानि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हुआ था और मेलघाट से पहली बार चुनावी अखाडे में 12 प्रत्याशी थे.
– 12 वर्ष बाद दूसरे प्रयास में कोरडे को मिली थी सफलता
सन 1990 के विधानसभा चुनाव दौरान प्रमुख प्रत्याशियों के नामों तथा हार जीत के समीकरण को लेकर सबसे बडा उलटफेर अचलपुर विधानसभा क्षेत्र में दिखाई दिया. जहां पर कांग्रेस ने सन 72 के चुनाव में अमरावती विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके दत्तात्रय उर्फ बबनराव मेटकर को अपना प्रत्याशी बनाया था. वहीं भाजपा ने इससे पहले सन 78 का चुनाव अचलपुर से ही जनसंघ प्रत्याशी के तौर पर लड चुके विनायक कोरडे को युति प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतारा था. इन दोनों पुराने व दिग्गज नेताओं के बीच हुए मुकाबले में भाजपा प्रत्याशी विनायकराव कोरडे ने करीब 19 हजार वोटों की लीड के साथ जीत हासिल की थी. उस समय अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र से कुल 1 लाख 59 हजार 593 मतदाता पंजीकृत थे तथा 97 हजार 576 यानि 61.14 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. जिसमें से 96 हजार 144 वोट वैध पाये गये थे. इसमें से भाजपा प्रत्याशी विनायक कोरडे ने 37 हजार 287 यानि 38.78 फीसद तथा कांग्रेस प्रत्याशी बबनराव उर्फ दत्तात्रय मेटकर को 18 हजार 476 यानि 19.22 फीसद वोट मिले थे. इसके अलावा निर्दलीय प्रत्याशी एम. जाहीरुल हसन को 15 हजार 684 यानि 16.31 फीसद व इजाजोद्दीन उर्फ बाबूभाई को 7 हजार 225 यानि 7.51 फीसद और भाकपा प्रत्याशी नानासाहब आदमने 6 हजार 38 यानि 6.28 फीसद वोट हासिल हुए थे. जिसके चलते उनकी जमानत बच गई. वहीं चुनावी अखाडे में रहने वाले कुल 25 प्रत्याशियों में से इन 5 प्रत्याशियों को छोडकर शेष 20 की जमानत जब्त हुई थी. जिनमें 16 निर्दलीय प्रत्याशी थे.
* मोर्शी से निर्दलीय के तौर पर हर्षवर्धन देशमुख ने जीता था चुनाव
– आगे चलकर हुए थे कांगे्रस में शामिल, मंत्री पद मिला था
जिले का मोर्शी विधानसभा क्षेत्र लगभग शुरु से ही कांग्रेस की अंतर्गत गुटबाजी का शिकार रहा. जहां पर सन 1952 के दौर से ही टिकट कटने पर कांग्रेस प्रत्याशियों द्वारा बगावत करते हुए चुनाव लडे और जीते गये. इसके तहत सन 1962 में कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रतापसिंह देशमुख ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडा और जीता था. वहीं इसी परंपरा को आगे चलकर उनके बेटे हर्षवर्धन देशमुख ने सन 1990 में आगे बढाते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडा व जीता. जबकि इससे पहले वर्ष 1980 का चुनाव हर्षवर्धन देशमुख ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर लडा था और वे दूसरे स्थान पर रहे थे. पश्चात सन 90 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल करने के बाद सन 1993 में जैसे ही शरद पवार ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद का जिम्मा संभाला, तो हर्षवर्धन देशमुख ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया और वे सरकार में शामिल हो गये. जिसके चलते हर्षवर्धन देशमुख को मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री के तौर पर शामिल किया गया था. सन 90 के चुनाव में मोर्शी निर्वाचन क्षेत्र से कुल 1 लाख 37 हजार 403 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 94 हजार 454 यानि 68.74 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और 93 हजार 233 वोट वैध पाये गये थे. जिसमें से निर्दलीय प्रत्याशी हर्षवर्धन देशमुख को 38 हजार 014 यानि 40.77 फीसद तथा उनके निकटतम प्रतिद्वंदी व कांग्रेस प्रत्याशी पुरुषोत्तम मानकर को 26 हजार 509 यानि 28.43 फीसद वोट मिले थे, जो इससे पहले सन 1985 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल करते हुए जीत हासिल की थी. वहीं इस चुनाव में मोर्शी सीट से शिवसेना प्रत्याशी अशोक खवले को 16 हजार 216 यानि 17.39 फीसद व निर्दलीय प्रत्याशी पांडुरंग महाजन को 5 हजार 982 यानि 6.42 फीसद वोट मिले थे. जिससे उनकी जमानत बच गई थी. वहीं चुनावी मैदान में रहने वाले कुल 15 प्रत्याशियों में से इन 4 प्रत्याशियों को छोडकर शेष 11 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. जिनमें सर्वाधिक 8 प्रत्याशी निर्दलीय थे.
* वलगांव सीट से लगातार दूसरी बार जीते थे अनिल वर्हाडे
जिले में मेलघाट के बाद वलगांव निर्वाचन क्षेत्र ही दूसरी ऐसी सीट रही, जहां सन 1990 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को जीत मिली. साथ ही विशेष यह रहा कि, बदलाव की लहर के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी अनिल वर्हाडे ने वलगांव सीट से लगातार दूसरी जीत हासिल की थी. हालांकि मुकाबला बेहद कडा था और अनिल वर्हाडे बमुश्किल डेढ हजार वोटों की लीड हासिल करते हुए जीत पाये थे. उस चुनाव में वलगांव सीट से कुल 1 लाख 34 हजार 172 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 83 हजार 623 यानि 62.33 फीसद ने वोट डाले थे और 82 हजार 349 वोट वैध पाये गये थे. इसमें से कांग्रेस प्रत्याशी 20 हजार 983 यानि 25.48 फीसद तथा उनके निकटतम प्रतिद्वंदी व शिवसेना प्रत्याशी सुभाष महल्ले को 19 हजार 373 यानि 23.53 फीसद वोट मिले थे. जबकि रिपाई प्रत्याशी दे. झा. वाकपांजर को 18 हजार 504 यानि 22.47 फीसद और जनता दल प्रत्याशी श्रीकांत तराल को 9 हजार 815 यानि 11.92 फीसद वोट मिले थे. उस समय वलगांव सीट से कुल 31 प्रत्याशी मैदान में थे. जिनमें से इन 4 प्रमुख प्रत्याशियों को छोडकर शेष 27 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. जिनमें सर्वाधिक 23 प्रत्याशी निर्दलीय थे.
* तिवसा में जीते थे भाकपा के भाई मंगले
– भैया ठाकुर की दोबारा कटी थी टिकट, तसरे की हुई थी हार
तिवसा निर्वाचन क्षेत्र में लगातार दूसरी बार पूर्व विधायक भैयासाहब ठाकुर की टिकट काटकर कांग्रेसने एक बार फिर शरद तसरे को अपना प्रत्याशी बनाया था. जिनके खिलाफ मैदान में एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी के भाई मंगले चुनावी मैदान में थे. ऐसे में कांग्रेस के असंतुष्ट गुट ने एक तरह से भाई मंगले के पक्ष में अपना समर्थन दे दिया था. जिसके चलते तिवसा में हुए बेहद रोचक व कांटे के मुकाबले में करीब 1300 वोटों की लीड से भाकपा प्रत्याशी भाई मंगले विजयी हुए थे और कांग्रेस प्रत्याशी शरद तसरे को दूसरे स्थान पर रहते हुए हार का सामना करना पडा था. उस चुनाव में तिवसा निर्वाचन क्षेत्र से कुल 1 लाख 31 हजार 719 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 84 हजार 66 यानि 63.82 फीसद मतदाताओं ने वोट डाले थे और 82 हजार 343 वोट वैध पाये गये थे. जिसमें से भाकपा प्रत्याशी भाई मंगले को 24 हजार 459 यानि 29.70 फीसद तथा कांग्रेस प्रत्याशी शरद तसरे को 23 हजार 154 यानि 28.12 फीसद वोट मिले थे. साथ ही शिवसेना प्रत्याशी दिनेश वानखडे को 11 हजार 934 यानि 14.49 फीसद, रिपा.कवाडे प्रत्याशी गोपीचंद मेश्राम को 7 हजार 224 यानि 8.77 फीसद वोट हासिल हुए थे. उस समय तिवसा सीट से कुल 21 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 4 प्रत्याशियों को छोडकर शेष 17 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. जिनमें सर्वाधिक 11 प्रत्याशी निर्दलीय थे.
* विधानसभा निहाय हुए मतदान तथा वैध मतदान व प्रतिशत की स्थिति
विधानसभा क्षेत्र कुल मतदाता प्रत्यक्ष मतदान वैध वोट मतदान प्रतिशत
अमरावती 1,91,641 1,10,310 1,09,173 57.56
बडनेरा 1,54,064 89,276 88,081 57.95
दर्यापुर 1,40,314 95,553 94,416 68.10
मेलघाट 1,58,497 69,775 67,439 44.02
चांदूर रेल्वे 1,32,293 89,290 88,078 67.49
अचलपुर 1,59,593 97,576 96,144 61.14
मोर्शी 1,37,403 94,454 93,233 68.74
वलगांव 1,34,172 83,623 82,349 62.33
तिवसा 1,31,519 84,066 82,346 63.82
कुल 13,39,496 8,13,923 7,27,259 61.24
* सन 90 के चुनाव में विजयी प्रत्याशी व उनके हासिल वोट
निर्वाचन क्षेत्र विजयी प्रत्याशी प्राप्त वोट वोट प्रतिशत
अमरावती जगदीश गुप्ता (भाजपा) 35,319 32.35
बडनेरा प्रदीप वडनेरे (शिवसेना) 26,224 29.77
दर्यापुर प्रकाश भारसाकले (शिवसेना) 25,682 27.20
मेलघाट तुलसीराम काले (कांग्रेस) 28,098 41.66
चांदूर रेल्वे अरुण अडसड (भाजपा) 36,201 41.10
अचलपुर विनायक कोरडे (भाजपा) 37,287 38.78
मोर्शी हर्षवर्धन देशमुख (निर्दलीय) 38,014 40.77
वलगांव अनिल गोपालराव वर्हाडे (कांग्रेस) 20,983 25.48
तिवसा नत्थुजी उर्फ भाई मंगले (भाकपा) 24,459 29.70
* विधानसभा क्षेत्र निहाय प्रमुख प्रत्याशियों की स्थिति (हासिल वोट व प्रतिशत)
– अमरावती
जगदीश गुप्ता (भाजपा) 35,319 32.35
पुष्पा विजय बोंडे (कांग्रेस) 31,133 28.52
रामकिशोर सोमाणी (निर्दलीय) 25,240 23.12
प्रमोद वानखडे (कांग्रेस एस) 10,101 9.25
कुल 35 प्रत्याशी मैदान में थे. जिनमें से 31 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी.
– बडनेरा
प्रदीप वडनेरे (शिवसेना) 26,224 29.77
पुरुषोत्तम येते (निर्दलीय) 13,929 15.81
प्रकाश इंजालकर (जनता दल) 12,125 13.77
पुरुषोत्तम बागडी (भारिपा) 11,710 13.29
अनिल गोंडाणे (निर्दलीय) 6,826 7.75
कुल 34 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 5 को छोडकर शेष 29 की जमानत जब्त हुई थी.
– दर्यापुर
प्रकाश भारसाकले (शिवसेना) 25,682 27.20
देवराव वानखडे (भारिपा) 16,996 18.00
रावसाहब हाडोले (निर्दलीय) 13,260 14.04
हरिभाउ बारब्दे (कांग्रेस) 11,897 12.60
अरविंद नलकांडे (जनता दल) 10,847 11.49
अ. कदीर शेख नाजीर (निर्दलीय) 7,253 7.68
कुल 27 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 6 को छोडकर शेष 21 की जमानत जब्त हुई थी.
– मेलघाट
तुलसीराम काले (कांग्रेस) 28,098 41.66
रमेश राईकवार (शिवसेना) 16,186 24.00
किसन कास्देकर (निर्दलीय) 6,826 10.12
पटल्या गुरुजी (निर्दलीय) 5,761 8.54
कुल 12 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से 5 को छोडकर शेष 7 की जमानत जब्त हुई थी.
– चांदूर रेल्वे
अरुण अडसड (भाजपा) 36,201 41.10
यशवंत शेरेकर (कांग्रेस) 23,997 27.25
अरुण दुबे (जनता दल) 16,904 19.19
पांडुरंग ढोले (निर्दलीय) 7,693 8.73
कुल 16 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 4 को छोडकर शेष 12 की जमानत जब्त हुई थी.
– अचलपुर
विनायक कोरडे (भाजपा) 37,287 38.78
बबनराव मेटकर (कांग्रेस) 18,476 19.22
मो. जाहीरुल हसन (निर्दलीय) 15,684 16.31
इजाजोद्दीन उर्फ बाबूभाई (निर्दलीय) 7,225 7.51
नानासाहब आदमने (भाकपा) 6,038 6.28
कुल 25 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 5 को छोडकर शेष 20 की जमानत जब्त हुई थी.
– मोर्शी
हर्षवर्धन देशमुख (निर्दलीय) 38,014 40.77
पुरुषोत्तम मानकर (कांग्रेस) 26,509 28.43
अशोक खवले (शिवसेना) 16,216 17.39
पांडुरंग महाजन (निर्दलीय) 5,982 6.42
कुल 15 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 4 को छोडकर शेष 11 की जमानत जब्त हुई थी.
– वलगांव
अनिल वर्हाडे (कांग्रेस) 20,983 25.48
सुभाष महल्ले (शिवसेना) 19,373 23.53
देवीदास वाकपांजर (रिपाई) 18,504 22.47
श्रीकांत तराल (जनता दल) 9,815 11.92
कुल 31 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 4 को छोडकर शेष 27 की जमानत जब्त हुई थी.
– तिवसा
नत्थुजी उर्फ भाई मंगले (भाकपा) 24,459 29.70
शरद तसरे (कांग्रेस) 23,154 28.12
दिनेश वानखडे (शिवसेना) 11,934 14.49
गोपीचंद मेश्राम (रिपा.कवाडे) 7,224 8.77
कुल 21 प्रत्याशी मैदान में थे. जिसमें से इन 4 को छोडकर शेष 17 की जमानत जब्त हुई थी.