महज तीन मिनट में काले घोडे की नाल तैयार
अंधश्रद्धा के चलते लोगबाग खरीदते है काले घोडे की नाल
अमरावती/दि.01– घर में सुख-शांति और दुकान में सुरक्षा व उन्नति के लिए लोगबाग अपने मकानो व दुकानो में अंधश्रद्धा के चलते काले घोडे की नाल लगाते है. जिसके चलते लोगबाग काले घोडे रहनेवाले लोगों को खोजकर उनसे घोडे की नाल मांगते है. इसे ध्यान में रखते हुए काला घोडा पालनेवाले कुछ लोग शहर के विभिन्न रिहायशी इलाको में अपने काले घोडे को लेकर घुमते हुए उसकी नाल को बेचते है. साथ ही काले घोडे की नाल इंस्टंट तैयार करने और उसे बेचने के लिए घोडे के मालिक द्वारा घोडे के खुरो में दिनभर के दौरान अनेको बार नाल लगाने व निकालने के लिए खीलें ठोंकी व निकाली जाती है. प्राणीक्लेश के जरिए हासिल की गई इस नाल को लोग अपने घर की सुख-शांति के लिए महज 300-350 रुपयों में हासिल करते है.
घोडे की नाल घर पर आए संकटो को दूर करती है. इस श्रद्धा व भावना के चलते पुराने जमाने में लोगबाग अपने घरो के मुख्य द्वार पर घोडे की नाल को लगाया करते थे. उसमें भी काले घोडे की नाल का विशेष महत्व हुआ करता था. हालांकि उसके लिए वह नाल कुछ समय तक घोडे के खुरो में लगी रहने के साथ ही घोडे की टापो में घिसी रहना जरुरी हुआ करता था. वहीं अब विज्ञानवादी हो चुके दौर में भी कई परिवारो को घोडे की नाल, विशेषकर काले घोडे की नाल ही अपने घरो और दुकानो के लिए चाहिए होती है. परंतु यदि एक ही दिन में कई नई व कोरी नाल घोडे के खुरो में ठोंककर और तुरंत ही निकालकर उन्हें बेचा जाता है. तो उस नाल में रहनेवाले ‘कथित तत्व’ कैसे मिल सकते है, यह बात अंधश्रद्धा से ग्रस्त लोगों द्वारा कभी सोची ही नहीं जाती और इसी बात का फायदा उठाते हुए काले घोडे के मालिको द्वारा अंधश्रद्धा से ग्रस्त लोगों से एक ही दिन के दौरान 300-300 रुपए के हिसाब से हजारो रुपए कमा लिए जाते है.
उल्लेखनीय है कि, घोडा यह तेज रफ्तार से दौडनेवाला प्राणी है. लेकिन इसके बावजूद भी इसके पांव काफी नाजूक होते है. जिसके चलते उसके पैरो का ध्यान रखना बेहद जरुरी होता है. घोडे के पैरो के नीचले हिस्से को खुर कहा जाता है. जो सींग की तरह सख्त रहनेवाली सामग्री से तैयार होता है और उसमें नियमित रुप से वृद्धि भी होती है. जिसके चलते जिस तरह से इंसानो द्वारा अपने नाखूनो को काटा जाता है, उसी तरह घोडे के खुरों को भी नियमित रुप से काटना पडता है. साथ ही घोडे के खुरों पर नाल लगाने से उनके खुरों का आकार बराबर रहता है. लगातार दौडते रहने की वजह से जब घोडे की नाल घिंसकर पतली हो जाती है, तब उसे निकालकर दूसरी नाल लगाई जाती है. परंतु अमरावती शहर में विगत दो दिनों से एक युवक अपने साथ काला घोडा लेकर घूम रहा है और घोडे के खुरों में लगी नाल को बेच रहा है. लेकिन पहली नाल के बिकते ही वह तुरंत घोडे के खुरों में दूसरी नाल ठोंक देता है और अगला ग्राहक आते ही फिर इसी प्रक्रिया को दोहराता है. लेकिन घोडे के खुरों का भितरी हिस्सा काफी नाजूक होता है, जिसमें बार-बार खीलें ठोंके जाने की वजह से उसे काफी तकलिफ और दर्द भी होता है. ऐसे में इसे घोडे के साथ क्रुरता कहा जा सकता है.
* प्राणीक्लेश प्रतिबंधक सोसायटी कब देगी ध्यान
जिलाधीश की पदसिद्ध अध्यक्षतावाली जिला प्राणीक्लेश प्रतिबंधक सोसायटी ने प्राणियों को लेकर क्रुरता व अंधश्रद्धा को बढावा देनेवाले इस कृत्य के खिलाफ मैदान में उतरना चाहिए. साथ ही घोडों के साथ अपने फायदे के लिए क्रुरता करनेवाले लोगों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जानी चाहिए, ऐसी उम्मीद अमरावती शहर के प्राणी प्रेमी नागरिकों द्वारा की जा रही है.