अमरावतीमहाराष्ट्र

इर्विन में प्रतिमाह 150 थैलेसिमिया मरीजों को दिया जाता है रक्त

पॉजिटीव मरीजों के शरीर में नहीं तैयार होती लाल रक्तपेशियां

अमरावती/दि.10– स्थानीय जिला सामान्य अस्पताल स्थित डे केअर यूनिट में प्रतिमाह 150 से 160 थैलेसिमियां ग्रस्त मरीजों को आवश्यक रक्त आपूर्ति की जाती है. इस आशय की जानकारी अस्पताल प्रशासन द्वारा दी गई है.

बता दें कि, थैलेसिमियां ग्रस्त मरीजों के शरीर में लाल रक्तपेशियां तैयार नहीं होती. जिसके चलते उनका जीवन बाहरी रक्त पर ही निर्भर करता है और कई मरीजों को हर महीने ही रक्त चढाने की जरुरत पडती है, ऐसा स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है. जिसकी वजह से थैलेसिमियां ग्रस्त मरीजों का जीवन भी काफी कम होता है और वे 35 से 40 वर्ष की आयु तक ही जीवित रह पाते है. जिसके चलते इस बीमारी को लेकर समाज में जनजागृति करना बेहद आवश्यक हो चला है.

ज्ञात रहे कि, पूरी दुनिया में 8 मई को विश्व थैलेसिमिया दिवस के तौर पर मनाया जाता है. यह एक तरह की आनुवांशिक बीमारी है. यदि माता या पिता मेें से कोई एक अथवा दोनों ही इस बीमारी के वाहक रहते है, तो उनके जरिए पैदा होने वाले बच्चे का थैलेसिमिया ग्रस्त रहने की संभावना काफी अधिक होती है. अमूमन थैलेसिमिया की बीमारी में बीटा चेन अत्यल्प प्रमाण में होती है. यह कभी कभी बीटा चेन ही नहीं रहती. ऐसे में नॉर्मल हिमोग्लोबिन तैयार नहीं होता. जिसके चलते लाल रक्तपेशियां बोन मैरो में ही नष्ट हो जाती है. जिसकी वजह से मरीज को बार-बार बाहर का रक्त देना पडता है. स्थानीय जिला सामान्य अस्पताल के हिमैटोलॉजी विभाग ने अब तक 450 थैलेसिमिया ग्रस्त मरीजों की जानकारी को दर्ज किया है.

* यह है लक्षण
थैलेसिमिया बीमारी के लक्षण बच्चे में 6 माह की आयु से ही दिखने शुरु हो जाते है. जिसके तहत बच्चे के शरीर में हिमोग्लोबिन का प्रमाण तेजी से कम होने, बच्चे का शरीर सफेद पडने, बच्चे के दूध नहीं पीने, सुस्त पडे रहने, पेट फुलने, हमेशा ही सर्दी व खासी रहने, श्वास लेने में दिक्कत होने तथा उम्र के हिसाब से शारीरिक विकास का अभाव रहने जैसे प्रमुख लक्षण दिखाई देते है.

* क्या है इलाज?
थैलेसिमिया की बीमारी को हमेशा के लिए खत्म करने हेतु कोई इलाज उपलब्ध नहीं है. लेकिन रक्त संक्रमण व बोन मैरो ट्रान्सप्लांट जैसे इलाजों से थैलेसिमिया को नियंत्रण में लाया जा सकता है. रक्त में रहने वाले लौहतत्व के प्रमाण को कम करने हेतु आवश्यक दवाईयां लेना बेहद जरुरी है.

* गर्भधारणा के समय ही करें जांच
विवाहित दम्पति यदि थैलेसिमिया के वाहक है और उन्हें बच्चा भी चाहिए है, तो उन्होंने गर्भधारणा के बाद तीन माह के भीतर ही गर्भस्त शिशु की जांच करवानी चाहिए, ताकि यह पता लगाया जा सके कि, बच्चा थैलेसिमिया ग्रस्त या वाहक तो नहीं है, यदि बच्चा थैलेसिमिया ग्रस्त पाया जाता है, तो ऐसी स्थिति में गर्भपात करवाना सबसे आवश्यक होता है.

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