अमरावती प्रतिनिधि/दि.३१ – प्राकृतिक आपदाए किसानों का पीछा छोडऩे के संकेत नजर नहीं आ रहे है. खरीफ के शुरूआती दौर से ही अतिवृष्टि से मूंग,उड़द और सोयाबीन का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है. संतोषजनक कपास का उत्पादन होने की उम्मीद किसानों ने लगाई थी. लेकिन बीते ८ दिनों से जिले के बहुतांश इलाको में कपास पर बोंड इल्ली का प्रकोप देखने को मिला है. बोंड इल्ली के प्रकोप से कपास के फूल खराब हो रहे है. १५ दिनों पहले सफेद नजर आनेवाला कपास इल्ली के प्रकोप से काली पड़ गई है. जिससे किसानों को काफी धक्का लगा है.
बता दे कि जिले में खरीफ की मुख्य फसल, कपास होती है. बीते दो वर्षोसे कपास के बुआई क्षेत्र में भी इजाफा हुआ है. वहीं सोयाबीन के उत्पादन में भी कमी आयी है. इस वर्ष खरीफ के शुरूआत से ही बारिश ने किसानों का पीछा नहीं छोड़ा है. शुरूआत में संतोषजनक साबित होनेवाली बारिश मुसीबत बनकर आयी है.
उड़द, मूंग की फसल हाथ से निकल जाने के बाद किसानों को सोयाबीन और कपास पर भी उम्मीदे बनी हुई थी. लेकिन सोयाबीन को बरबाद करने के साथ ही रही सही कसर पर बोंड इल्ली ने कपास पर आंक्रमण कर किसानों की उम्मीदों को तोडऩे का काम किया है. खरीफ की मुख्य फसल रहनेवाले सोयाबीन व कपास का बुआई क्षेत्र जिले में सबसे ज्यादा है.सोयाबीन लगभग २ लाख ६८ हजार हेक्टर क्षेत्र में लिया जाता है. जबकि कपास लगभग २ लाख ४५ हजार हेक्टर पर है.इसके अलावा १.१०लाख हेक्टेयर में उड़द, मूंग, जवार व अन्य फसलों का समावेश हैा. जिले में खरीफ बुआई क्षेत्र औसतन ७ लाख २५ हजार हेक्टेयर रहता है. इस वर्ष मूसलाधार बारिश के चलते जिले मेें खरीफ का लगभग ३ लाख २५ हजार हेक्टेयर की फसलों का नुकसान हुआ हैे.
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कपास के बोंड खराब होने के प्रमाण
जिले के दर्यापुर, चांदुरबाजार, धामणगांव रेल्वे, चांदुर रेल्वे, तिवसा इन तहसीलों में बड़े पैमाने पर है. इस वर्ष बारिश भी भारी मात्रा में हुई हैे. इसलिए शुरूआती दौर में कुछ प्रमाण में कपास की पत्तियां व फूल गिर गये थे. इसके अलावा लगातार बारिश से और कुछ खेतों में पौधों की वृध्दि भी बड़े पैमाने पर हुई है. जिस पर फंगस तैयार होकर बोंड खराब हो रहे है. जिस पर फंगसनाशक छिड़काव करना यही एकमात्र उपाय है.इसके लिए कॉपर आक्सीक्लोराईडा अथवा एम-४५ का छिड़काव किया जाना चाहिए. यह जानकारी जिला कृषि अधीक्षक, अधिकारी विजय चव्हाले ने दी.
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कपास चुनने के लिए नहीं मिल रहे मजदूर
इन दिनों किसान खेतीकार्य में व्यस्त दिखाई दे रहे है. खेतों में जवार, बाजरी की मशीनों द्वारा छानने का काम किया जा रहा है. लगातार बारिश और बदरीले मौसम के चलते कृषि कार्यो को ब्रेक लगा था. लेकिन बीते ४ से ५ दिनों में मौसम में बदलाव हुआ है. जिससे खेती कार्यो को गति मिल गई है. लेकिन मजदूर के अभाव में खेती कार्य निपटाने अनेक दिक्कते आ रही है. ज्यादा मजदूरी देने पर भी मजदूर उपलब्ध नहीं होने से किसानों की परेशानियां बढ़ गई हैे. बता दे कि इस वर्ष फसले अच्छी होने पर भी सितंबर माह में हुई वापसी की बारिश से कपास सहित अन्य फसलों का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है. इसलिए मजदूरों की कमी से ज्यादा मजदूरों देने पर भी खेती कार्यो के लिए मजदूर नहीं मिल रहे है. बीते वर्ष की तुलना में इस वष्र मजदूरी की दरों में वृध्दि हुई है. मकई, बाजरी की छलनी के लिए प्रति एकड़ ३ हजार रूपये लगते है. वहीं खेती काम करने के लिए एक दिन की मजदूरी ३०० रूपये देनी पड़ती है. बीते वर्ष कपास चुनने के लिए ४ से ५ रूपये प्रति किलो भाव दिया जा रहा था. लेकिन कपास चुनने के लिए मजदूर नहीं मिलने से तथा बाहरगांव से मजदूरों को लाया जा रहा है. जिससे कपास चुनने के लिए १० से १२ रूपये प्रति किलो दर किसानों को मजदूरी के लिए देना पड़ रहा है.