अमरावतीमहाराष्ट्र

ग्रंथ मनुष्य को जीवन जीने का देते है बल : डॉ. गायकवाड

टोम्पे कॉलेज में अभिष्टचिंतन समारोह

चांदूर बाजार/दि.13-मनुष्य का जीवन काफी छोटा है. इस छोटेसे जीवन में दुनिया के सभी अनुभव लेना संभव नहीं. ऐसे समय दुनिया के विविध अनुभवों की भूख को मिटाने का काम ग्रंथ करते है. इसके साथ ही ग्रंथ मनुष्य को चरित्रसंपन्न, नैतिक, ईमानदार और विद्वत बनाते है. मनुष्य के जीवन को आकार, प्रेरणा और बल देने का काम भी पुस्तक करते है. हमें ही हमारे जीवन को अर्थ देना होता है. युवाओं ने संत, महापुरुषों के चरित्र का पठन करना चाहिए. पठन से व्यक्ति बडा बनता है. ग्रंथ मनुष्य को केवल जीने की कला ही नहीं सीखाते अपितु जीवन जीने का बल भी देते है, इस आशय का कथन डॉ.अलका गायकवाड ने किया.
गो.सी. टोम्पे महाविद्यालय में आयोजित दादासाहेब उर्फ केशवरावदादा टोम्पे के अभिष्टचिंतन समारोह में प्रमुख मार्गदर्शक के रूप में वे बोल रही थी. कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजेंद्र रामटेके ने की. इस अवसर पर संस्था के सचिव डॉ. विजय टोम्पे, प्राचार्य डॉ. संजय शेजव, प्राचार्य मनीष सावरकर, डॉ. रवींद्र डाखोरे, निर्मिती पब्लिक स्कूल के प्राचार्य खोंड, डी. फार्मसी महाविद्यालय के प्राचार्य राहुल जोग प्रमुखता से उपस्थित थे. डॉ. अलका गायकवाड इस समय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का उदाहरण देते हुए कहा कि, शरीर पर फटा हुआ अथवा पुराना शर्ट हो तो भी चलेगा, लेकिन हाथ में हर दिन नया ग्रंथ चाहिए. प्रस्तावना में डॉ. रवींद्र डाखोरे ने दादासाहेब टोम्पे की जीवनी पर प्रकाश डाला. इस अवसर पर प्रमुख मार्गदर्शिका डॉ. अलका गायकवाड का महाविद्यालय की ओर से शॉल, श्रीफल व स्मृतिचिन्ह देकर सत्कार किया गया.
अध्यक्षीय भाषण में प्राचार्य डॉ. राजेंद्र रामटेके ने कहा कि, चांदूर बाजार नगरी संतों के चरणस्पर्श से पावन हुई भूमि है. केशवरावदादा ने संतों से प्रेरणा लेकर समाज में एक मानवीयता की छाप निर्माण की. ऐसा कहकर प्राचार्य रामटेके ने केशवरावदादा को जन्मदिन निमित्त हार्दिक शुभकामनाएं दी. इस अवसर पर संस्था के सचिव डॉ. विजय टोम्पे ने भी अभिष्टचिंतन समारोह निमित्त छात्रों का मार्गदर्शन किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रियदर्शनी देशमुख ने किया. आभार प्रा. योगेश सुने ने माना. इस अभिष्टचिंतन समारोह में महाविद्यालय के सभी प्राध्यापक, कर्मचारी, परिसर के नागरिक और विद्यार्थी उपस्थित थे.

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