रिश्वतखोर आईएएस रामोड ने छीपाया अपना रद्द जाति प्रमाणपत्र?
‘मुनुरवार’ से हुए ‘मन्नेरवारलु’, कार्रवाई के लिए ‘ट्रायबल फोरम’ ने उठाई मांग
अमरावती/दि.17 – 8 लाख रुपए की रिश्वत लेते हुई सीबीआई द्बारा रंगेहाथ पकडे गए पुणे के राजस्व विभागीय आयुक्तालय के अतिरिक्त आयुक्त डॉ. अनिल रामोड का एक ओर सनसनीखेज कारनामा सामने आया है. जिसके मुताबिक डॉ. रामोड ने बडे शातिर तरीके से चालाकी करते हुए ‘मन्नेरवारलु’ अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र हासिल किया था और आरक्षित संवर्ग से सरकारी नौकरी प्राप्त करने के साथ ही आगे चलकर इसी आधार पर प्रमोशन प्राप्त करते हुए आईएएस अधिकारी का दर्जा प्राप्त किया था. लेकिन डॉ. रामोड की करतूत उजागर होते ही ‘ट्रायबल फोरम’ नामक संगठन ने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री आदिवासी विकास मंत्री तथा मुंबई स्थित सीबीआई के संचालक को डॉ. रामोड पर कडी कार्रवाई करने हेतु निवेदन भेजा है.
जानकारी के मुताबिक डॉ. रामोड मुलत: नांदेड जिले के बिलोली तहसील अंतर्गत सायखेड गांव के निवासी है और ‘मुनुरवार’ जाती से वास्ता रखते है. लेकिन उन्होंने बडे शातिर तरीके से फर्जी दस्तावेज जमा कराते हुए बिलोली के तहसीलदार कार्यालय से 5 नवंबर 1980 को ‘मन्नेरवारलु’ जनजाति का जाती प्रमाणपत्र हासिल किया और जाति वैधता प्रमाणपत्र प्राप्त करने हेतु अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र जांच समिति (पुणे) के पास 20 सितंबर 1986 को दावा दाखिल किया था. परंतु समिति ने 10 अप्रैल 1987 को डॉ. रामोड के दावे को खारिज करने के साथ ही उसकी जनजाति के प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया था. साथ ही 13 अप्रैल 1987 को इस निर्णय की प्रतिलिपी डॉ. रामोड को देने के साथ ही नांदेड के जिलाधीश व बिलोली के तहसीलदार को भी आगे की कार्रवाई के लिए इस निर्णय की प्रतिलीपी दी गई थी. इस फैसले के खिलाफ डॉ. रामोड ने आदिवासी विकास विभाग (नाशिक) के अतिरिक्त आयुक्त के पास अपील की थी. परंतु अतिरिक्त आयुक्त ने भी पुणे समिति के निर्णय को कायम रखते हुए डॉ. रामोड की अपील को खारिज कर दिया. जिसके पश्चात डॉ. रामोड ने इसके खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल की थी.
* ‘वैलिडिटी’ के लिए नये सिरे से आवेदन
अदालत में मामला प्रलंबित रहने के बावजूद डॉ. रामोड ने नांदेड जिले के बिलोली तहसीलदार के पास से वर्ष 1987 में एक बार फिर नये सिरे से ‘मन्नेरवारलु’ जनजाति का जाति प्रमाणपत्र प्राप्त किया और इसी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर डॉ. रामोड ने महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग के मार्फत अनुसूचित जनजाति के आरक्षित कोटे से सरकारी नौकरी हासिल की और वर्ष 2020 में पदोन्नति प्राप्त करते हुए आईएएस अधिकारी का दर्जा भी प्राप्त किया.
* हालांकि इसके बाद ‘मन्नेरवारलु’ जनजाति के प्रमाणपत्र की जांच होने पर जाति वैधता प्रमाणपत्र मिलने हेतु डॉ. रामोड ने अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र जांच समिति (नाशिक) के पास भी दावा दाखिल किया, यह विशेष उल्लेखनीय है.
महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग द्बारा सिफारिश किए जाने पर नियुक्ति देते समय यदि राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने उसी समय जाति प्रमाणपत्र व जाति वैधता प्रमाणत्र की सही तरीके से जांच की जाती, तो उस समय डॉ. रामोड की बजाय किसी आदिवासी अभ्यार्थी को सरकारी नौकरी मिलती और आज एक आदिवासी व्यक्ति आईएएस दर्जा प्राप्त अधिकारी रहा होता. परंतु डॉ. रामोड ने फर्जी प्रमाणपत्र के जरिए नौकरी हासिल करते हुए सरकार के साथ जालसाजी करने का काम किया. जिससे एक आदिवासी का हक भी मारा गया. ऐसे में डॉ. रामोड पर कडी कार्रवाई करते हुए आदिवासियों को न्याय दिया जाना चाहिए.
– बालकृष्ण मते,
राज्य उपाध्यक्ष,
ट्रायबल फोरम, महाराष्ट्र.