अमरावती/दि.31 – विगत कुछ वर्षों के दौरान कोयले और लकडी के दामों में जबर्दस्त इजाफा हुआ. साथ ही गौणखनिज पर लगनेवाली सरकारी रॉयल्टी भी बढी. इसके अलावा मिट्टी और राख के गिलावे पर लगनेवाला खर्च भी बढा. साथ ही मजदूरी और मालढुलाई का खर्च भी बढ गया. ऐसे में विगत पांच वर्षों के दौरान मिट्टी से बनी ईटों के दाम दोगुना अधिक बढ गये है. जिसके परिणाम स्वरूप अब घरों व भवनों के निर्माण में लगनेवाली लागत भी काफी अधिक बढ गई है. पांच वर्ष पहले प्रति एक हजार ईंट के लिए साढे 4 हजार रूपये अदा करने होते थे, जो अब बढकर 8 हजार रूपये के आसपास जा पहुंचे है. ऐसे में अब अपने सपनों का आशियाना बनाना काफी महंगा हो गया है.
साल-दरसाल क्यों बढी ईटों की दरें
पांच वर्ष पहले कोयला 6 हजार रूपये प्रति टन था, जो आज 10 हजार रूपये प्रति टन के दाम पर पहुंच गया है. इसी तरह ढाई हजार रूपये प्रति टन के दाम पर मिलनेवाला लकडा अब 4 हजार रूपये प्रति टन के दाम पर मिल रहा है.
– मिट्टी व रॉयल्टी का खर्च बढ गया है. साथ ही बारिश के मौसम दौरान ईटों का बडे पैमाने पर नुकसान होता है. इन सब बातों के चलते मिट्टी से बनी ईटों की कीमतें बढ गई है.
2017 – 4,500
2018 – 5,500
2019 – 6,500
2020 – 7,300
2021 – 7,700
सिमेंट ईटों में 30 फीसद बचत
सिमेंट से बनी ईटों से घरों का निर्माण करते समय जुडाई के लिए रेती व सिमेंट का प्रयोग काफी कम करना होता है. बल्कि एक विशेष किस्म के लिक्विड के जरिये ईटों की जुडाई की जाती है और काम भी जल्दी पूरा होता है. जिससे मजदूरी का खर्च भी कम होता है. सिमेंट से बनी ईटों से निर्माण कार्य करने में करीब 30 फीसद की बचत होती है, ऐसा भवन निर्माण क्षेत्र से जुडे लोगों का कहना है.